अब इस बारे में किसी भी प्रकार के शक की गुंजाईश नहीं रह गई कि कोरोना का नया संस्करण ओमिक्रोन भारत में विधिवत प्रवेश कर चुका है | ये बात भी सामने आई है कि विदेशों से आ रहे यात्री ही इसके संवाहक बन रहे हैं | कोरोना की विदाई के प्रति आश्वस्त अनेक लोगों में इस नए संक्रमण को लेकर सतर्कता भी दिखाई देने लगी है | अपने और दूसरों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहने वाले जिम्मेदार किस्म के लोग मास्क सहित अन्य सावधानियों का पालन भी करने लगे हैं | लेकिन ऐसे लोगों की संख्या उँगलियों पर गिनने योग्य ही है | हालाँकि सरकारी स्तर पर हो रही हलचल से ये तो लगता है कि दूसरी लहर के कटु अनुभवों को सरकारी अमला अब तक भूला नहीं है किन्तु इसी के साथ ये भी समझने वाली बात है कि तमाम चेतावनियों के बावजूद राजनीतिक पार्टियां इस बारे में बेहद लापरवाह या यूँ कहें कि असहयोगात्मक हैं | आज ही म.प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोगों को तीसरी लहर के प्रति आगाह करते हुए सतर्कता बरतने कहा जिससे लॉक डाउन की स्थिति न आये | दूसरी तरफ इन्डियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी साफ़ शब्दों में कहा है कि यूरोप में ओमिक्रोन का कहर जारी रहने से भारत में सतर्कता न रखी गई तो तीसरी लहर का आना अवश्यम्भावी है जो पहले से भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है क्योंकि इस संक्रमण की चपेट में बच्चे भी आ रहे हैं | भारत में अभी तक बच्चों को कोरोना का टीका लगाये जाने की तैयारी ही चल रही है और देश के बड़े हिस्से में शिक्षण संस्थान खोल दिए गये हैं | कोरोना काल में लगाई गईं अधिकतर पाबंदियां तो पहले ही हटाई जा चुकी हैं जिसके कारण बाजार , मॉल , सिनेमागृह आदि में लोगों की आवाजाही शुरू हो चुकी है | शादी जैसे अन्य आयोजनों में उपस्थित जनों की संख्या को सीमित रखने संबंधी आदेश भी वापिस ले लिया गया है | ऐसे में जनजीवन पूरी तरह सामान्य हो चला है | रेल गाड़ियों में भी पूर्ववत भीड़ नजर आ रही है जिसकी वजह से आरक्षित टिकिट में प्रतीक्षा सूची की नौबत आने लगी है | अर्थव्यवस्था की दृष्टि से ये सब शुभ संकेत हैं किन्तु कोरोना संक्रमण के नए रूप के सामने आने के बाद चिकित्सा जगत और वैज्ञानिक जिस तरह की चेतावनियाँ लगातार दे रहे हैं उनके मद्देनजर ये देखने पर कि सामाजिक जीवन की वे कौन सी गतिविधियाँ हैं जिनमें कोरोना संबंधी शिष्टाचार की सबसे ज्यादा धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं तो राजनीतिक जलसों पर ही नजर जाती है | चूँकि उन पर रोक – टोक का साहस प्रशासन में नहीं होता इसलिए नेता और उनके उत्साही समर्थक पूरी तरह स्वछंद हो जाते हैं | इसी वर्ष की शुरुवात में प.बंगाल सहित चार राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए तब कोरोना की पहली लहर बिदाई के कगार पर थी किन्तु जब देश भर के दिग्गज नेता चुनाव मैदान में उतरकर सभा और रैलियों के माध्यम से प्रचार करने उतरे तब भारी भीड़ उनको सुनने और देखने आई | सबसे लंबा चुनाव प. बंगाल का था जिसके आधे चरण पूरे होते – होते ही कोरोना ने दूसरा हमला कर दिया था | इसे लेकर प्रधानमन्त्री सहित अन्य नेताओं की काफी आलोचना भी हुई | ममता बैनर्जी ने आखिर – आखिर में बचे हुए चरणों का मतदान एक साथ करवाने का आग्रह तक कर डाला | चुनाव के बाद प. बंगाल में कोरोना का प्रकोप बढ़ा ये किसी से छिपा नहीं है | उल्लेखनीय है तमिलनाडु , पुडुचेरी और केरल में मतदान एक दिन में ही संपन्न हो गया था | इस विषय को दोहराने का उद्देश्य आगामी वर्ष फरवरी माह में उ.प्र , उत्तराखंड , पंजाब , मणिपुर और गोवा में होने जा रहे विधानसभा चुनाव और कोरोना की तीसरी लहर के संयोग पर ध्यान आकर्षित करना है | इन राज्यों में चुनावी तैयारियों के मद्देनजर राजनीतिक गतिविधियाँ पूरे शबाब पर हैं | नेताओं की यात्रायें और रैलियां जमकर हो रही हैं | सरकारी जलसों में नए विकास कार्यों का शिलान्यास और पूरे हो चुके प्रकल्पों का उद्घाटन किया जा रहा है | ज्यों – ज्यों चुनाव की तारीख नजदीक आयेगी राजनीतिक सरगर्मियां भी बढेंगी जिनके वजह से भीड़भाड़ होना स्वावाभाविक होगा | पिछले अनुभव बताते हैं कि राजनीतिक जलसों में कोरोना संबंधी सावधानियों के प्रति जबर्दस्त उपेक्षा भाव नजर आता है | जनता तो छोडिये , नेता गण खुद उनका पालन नहीं करते | चूंकि चुनाव आयोग इस बारे में पूरी तरह अधिकारविहीन है इसलिए राजनेताओं को किसी भी प्रकार का भय भी नहीं रहता | इस बारे में सबसे प्रमुख बात गंभीरता से विचारयोग्य है कि उ.प्र देश का सबसे अधिक आबादी वाला प्रदेश है जहाँ घनी बसाहट होने से शारीरिक दूरी का पालन करना असंभव होता है | इसी तरह पंजाब में विदेशों से आने - जाने वालों की संख्या काफी है जिससे वहां संक्रमण की आशंका वैसे भी ज्यादा है | उत्तराखंड में भी जनवरी – फरवरी महीना त्यौहारों और यात्राओं का होता है | गोवा में इन महीनों में विदेशी पर्यटकों की भरमार के होने से वहां सतर्कता की बेहद जरूरत है | ऐसे में इन राज्यों में चुनाव की तैयारियों में जुटा प्रशासन तीसरी कहर से बचाव के उपाय किस तरह कर सकेगा ये यक्ष प्रश्न है | सत्ता में बैठे नेतागण भी चुनावी अभियान के कारण इस तरफ ज्यादा ध्यान देने में असमर्थ होंगे | और फिर आचार संहिता लग जाने से भी शासन का काम प्रभावित होता ही है | इन सब हालातों को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग को चाहिए वह सर्वदलीय बैठक बुलाकर उक्त राज्यों के चुनाव टालने पर सहमति बनाये | देश के करोड़ों लोग इन राज्यों में रहते हैं | यदि चुनाव के दौरान तीसरी लहर का विस्फोट हुआ तो लेने के देने पड़ जायेंगे | और फिर जो सरकारी अमला चुनाव प्रबंध में जुटता है उसकी जान भी फालतू तो हैं नहीं | स्मरणीय है उ.प्र के पंचायत चुनाव में बड़ी संख्या में उन सरकारी कर्मचारियों की जानें गईं थी जो मतदान केन्द्रों पर तैनात थे | अब जबकि केंद्र से लेकर राज्य और इन्डियन मेडिकल एसोसिएशन तक ओमिक्रोन के आने की पुष्टि करते हुए जनवरी – फरवरी में सबसे ज्यादा संक्रमण होने के प्रति आगाह कर ही रहे हैं तब पांच राज्यों के चुनाव आग में घी डालने की कोशिश होगी | राजनीतिक जमात इस सुझाव को संविधान और लोकतंत्र विरोधी बताकर विरोध व्यक्त करने में पीछे नहीं रहेगी किन्तु संविधान जिन भारत के लोगों के लिए बनाया गया है उनके प्राण खतरे में डालकर किसी प्रक्रिया को पूरा करने की जिद जनविरोधी है | इस बारे में एक बात और भी ध्यान देने योग्य है कि बीमार होने पर नेताओं का इलाज तो वीआईपी के तौर पर देश – विदेश में सरकारी खर्च पर हो भी जाता है लेकिन आम जनता को पैसे होने के बाद भी अस्पताल में बिस्तर नसीब हो सकेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है | पिछले अनुभवों के बाद भी यदि कोई सबक न लिया गया तब ये मान लेने में कुछ भी गलत न होगा कि राजनीतिक नेता आम जनता को कीड़े –मकोड़े से ज्यादा नहीं समझते | -रवीन्द्र वाजपेयी
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