Thursday 30 December 2021

नेताओं के जलसों का बहिष्कार भी कोरोना से बचाव में सहायक होगा



 

वर्ष 2020 का अंत आते तक ये विश्वास हो चला था कि कोरोना विदा हो गया है | टीके की खोज होने के कारण लोगों का आत्मविश्वास भी बढ़ गया था | लॉक डाउन हटने के बाद  दीपावली के साथ  ब्याह – शादी पर बाजारों तथा जलसों में  भीड़ होने के बावजूद सब कुछ सामान्य लगने लगा था | ऐसा लग रहा था कि कोरोना नामक महामारी अलविदा कह चुकी है  किन्तु कुछ समय बाद ही वह दबे पाँव लौटी  और फिर ऐसा तांडव मचाया कि चारों तरफ मौत मंडराने लगी | लगभग 100 साल बाद मानव जाति के सामने महामारी की इतनी विशाल चुनौती आने से पूरी दुनिया हलाकान हो उठी | ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि कोरोना ने न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य पर हमला किया अपितु पूरे विश्व की  अर्थव्यवस्था को भी हिलाकर रख दिया  | बीते कुछ महीने राहत के जरूर बीते लेकिन कोरोना के पीछे ओमिक्रोन नामक नया वायरस आ धमका | इसकी दहशत इतनी जबर्दस्त थी कि दक्षिण अफ्रीका में दो – चार मरीज मिलते ही दुनिया भर के शेयर बाजार गोते खाने लगे | इसकी संक्रमण क्षमता कोरोना से ज्यादा बताई गई | प्रारंभिक तौर पर ये भी कहा गया कि इसका इलाज फिलहाल उपलब्ध नहीं है और कोरोना का टीका लगवा चुके व्यक्ति को भी ये लपेटे में ले सकता है | इसी दौरान यूरोप के अनेक विकसित देशों में कोरोना की वापिसी हो गई | उल्लेखनीय है कुछ समय पहले ही अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें शुरू हुई थीं | जिनकी वजह से एक देश से दूसरे में लोगों का आना – जाना प्रारम्भ हो गया | भारत में चूंकि टीकाकरण जोरों से चल रहा था इसलिए ये विश्वास होने लगा था कि कोरोना विरोधी रोग प्रतिरोधक क्षमता का सामूहिक विस्तार होने से अब ये महामारी बेअसर हो जायेगी | लेकिन तमाम उम्मीदें और कयास संदेह के घेरे में आते जा रहे हैं | देश में ओमिक्रोन के मरीजों की संख्या में तो धीमी वृद्धि दिखाई दी तथा मृत्यु दर भी नहीं के बराबर देखी जा रही है | संक्रमित व्यक्ति की हालत भी ज्यादा गंभीर नहीं होती और न ही ऑक्सीजन की जरूरत ही पड़ती है | लेकिन ये संतोष ज्यादा समय तक बना नहीं रह सका क्योंकि बीते कुछ ही दिनों कोरोना के मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि होने लगी | ताजे आंकड़ों के अनुसार लगभग एक महीने के बाद कोरोना के कुल मरीजों की संख्या 10 हजार हो गई | ये देखने के बाद टास्क फ़ोर्स ने तीसरी लहर आने का ऐलान भी कर दिया | अनेक राज्यों में  रात्रिकालीन कर्फ्यू पहले से ही लागू किया जा चुका है | यद्यपि सरकार लॉक डाउन जैसी किसी स्थिति के पुनरागमन से इंकार कर रही है किन्तु जैसी खबर मुंबई से गत दिवस मिली वह आगे भी जारी रही तब ये मान लेना पड़ेगा कि ओमिक्रोन के हल्ले के बीच कोरोना एक बार फिर आ धमका है  | ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है क्योंकि अभी तक पूरी आबादी को कोरोना का दूसरा टीका नहीं लग सका है | आने वाले साल में बच्चों के टीकाकरण का अभियान शुरू होने वाला है | बुजुर्गों को बूस्टर डोज लगाने की तैयारी भी सरकारी एजेंसियाँ कर रही हैं | ऐसे में तीसरी लहर के आ जाने से एक बार फिर देश संकट में फंस सकता है | नए साल के जश्न पर तो पहले से ही पाबंदियां लगा दी गई हैं लेकिन सबसे ज्यादा चिंता पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव को लेकर हैं | चुनाव आयोग ने तो उनको रद्द न करने का संकेत दे दिया है वहीं  नेताओं की सभाएं और रैलियां भी जारी हैं |  देश भर के पर्यटन स्थलों में सैलानियों की भीड़ बढ़ गई है | मकर संक्रांति के बाद विवाह शुरू हो जायेंगे | शालाएं और महाविद्यालय भी खोले जा चुके हैं | अनेक कम्पनियों ने वर्क फ्रॉम होम नमक व्यवस्था खत्म कर दी है | उद्योग - व्यापार भी लम्बे गच्चे के बाद पटरी पर लौट रहे हैं | आर्थिक विशेषज्ञ विकास दर के 9 फीसदी रहने का अनुमान लगाकर आशावादी बने हुए हैं | लेकिन क्या ये सब इतना आसान है जितना दिखाई दे रहा है क्योंकि कोरोना की तीसरी लहर की पदचाप सुनाई देने के बाद भी यदि जनता और सरकार दोनों सच्चाई से आँखें मूंदे  रहीं तो फिर 2021 के हालात दोहराए जा सकते हैं | भले ही चिकित्सा तंत्र पहले से ज्यादा सक्षम हो लेकिन ये बात बिलकुल सच है कि देश फ़िलहाल महामारी के तीसरे दौर को झेलने की हालत में नहीं है | दुर्भाग्य से वह आ गया तो भले ही मौतें कम हों और संक्रमण उतना गम्भीर न रहे लेकिन अर्थव्यवस्था के बढ़ते कदम न सिर्फ रुकने अपितु उनके पीछे लौटने का भी  अंदेशा है | ऐसे में अब जनता को चाहिए वह पिछले अनुभवों से सीखकर कोरोना , ओमिक्रोन अथवा इनसे जुड़े अन्य संक्रमणों से बचाव के प्रति पूरी सतर्कता बरते | देखने में आ रहा है कि मास्क के उपयोग जैसी सावधानी के प्रति भी लोगों  में अव्वल दर्जे का उपेक्षाभाव है | हमारे देश में  एक वर्ग ऐसा भी है  जो कोरोना को कपोल - कल्पित मानकर मास्क और  शारीरिक दूरी के प्रति तो लापरवाह है ही किन्तु टीका लगवाने को भी तैयार नहीं है | और की तो छोड़िये अखिलेश यादव जैसे सुशिक्षित नेता तक टीके का भी राजनीतिकरण करने में नहीं शर्माये | मुस्लिम समुदाय में भी बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो  कोरोना को सरकार द्वारा खड़ा किया गया  भय का भूत मानते हैं | बहुसंख्यक वर्ग में भी अशिक्षा के कारण कोरोना के प्रति सावधान रहने के प्रति हद दर्जे की लापरवाही है | ये कहने वाले भी मिल जाते हैं कि भारत में  आम आदमी जिस बदहाली में रहता है उसके कारण उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित देशों की तुलना में कहीं ज्यादा है | इस दावे की पुष्टि में ये तर्क दिया जाता है कि विशाल आबादी के बावजूद भारत में कोरोना से हुई मौतें अनेक यूरोपीय देशों से कम रहीं | इस बारे में विचारणीय बात ये है कि कोरोना के दो हमलों के बाद अब तीसरे के प्रति जन सामान्य में भी आवश्यक जागरूकता आ जानी चाहिए | आदर्श स्थिति तो वह होगी जब आम जनता नेताओं के जलसों का बहिष्कार करते हुए उनको ये एहसास करवाए कि उसे अपनी जान की कीमत समझ में आ गई है | कोरोना अब अपरिचित नहीं रहा | उसके खतरे से समाज का बड़ा वर्ग पूरी तरह परिचित है | करोड़ों लोग उसके संक्रमण का दंश भोग भी चुके हैं |  इसके बाद भी अगर लापरवाही दिखाई जाती है तब वह आत्मघाती होगी | कोरोना या उस जैसी महामारी केवल लोगों के स्वास्थ्य पर ही बुरा असर नहीं डालती अपितु उससे सामाजिक जीवन अस्त व्यस्त होने के अलावा अर्थव्यवस्था को भी बड़ा नुकसान होता है जो बमुश्किल रफ़्तार पकड़ रही है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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