Thursday 9 December 2021

हेलीकाप्टर तो और भी आ जाएंगे पर किसी फौजी का जाना अपूरणीय क्षति है


हेलीकाप्टर तो एक मानव निर्मित मशीन है जो पैसे से बनाई और खरीदी जा सकती है। लेकिन सेना का एक प्रशिक्षित जवान तैयार करने में जितना समय और प्रशिक्षण लगता है उसका पैसे से मूल्यांकन संभव नहीं है। और जिस हेलीकाप्टर पर देश की तीनों सेनाओं का प्रमुख सवार हो , यदि वह दुर्घटनाग्रसित हो जाए तथा एक को छोड़ उसमें सवार शेष सभी सैन्य अधिकारी और सैनिक जान गँवा बैठें तो उस क्षति का आकलन करना असम्भव है। गत दिवस तमिलनाडु की कुन्नूर घाटी में सेना का एक अत्याधुनिक हेलीकाप्टर दुर्घटना का शिकार हो गया जिसमें देश के चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी के अलावा सेना के अनेक अधिकारी तथा निचले स्तर के सैन्यकर्मी थे। कुल 14 लोगों में से केवल एक ही जीवित बच सका। हादसे का प्रारम्भिक कारण खराब मौसम बताया जा रहा है। हालाँकि सरकार और सेना द्वारा गठित उच्चस्तरीय जाँच टीम की रिपोर्ट आने तक पक्के तौर पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी किन्तु विश्व के बेहतरीन सैन्य हेलीकाप्टर का इस तरह दुर्घटनाग्रस्त हो जाना चिंता का विषय है। इसका उपयोग कारगिल युद्ध में भी सफलतापूर्वक किया जा चुका था। अति विशिष्ट व्यक्तियों के आवागमन हेतु इसकी सेवाएँ ले जाती हैं और अनुभवी पायलट ही इसे उड़ाते हैं। प्रधानमन्त्री के लिए भी इसका प्रयोग होने की जानकारी आई है। जो पायलट उक्त हेलीकाप्टर उड़ा रहे थे वे भी काफी अनुभवी बताये जा रहे हैं। इसलिए ये माना जा रहा है कि मानवीय गलती की सम्भावना बेहद कम है। एमआई श्रेणी का ये हेलीकाप्टर तकनीकी दृष्टि से इतना उन्नत है कि उसे कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सुरक्षित उतारा जा सकता है। ये सब देखते हुए दुर्घटना की तह में जाना सेना के लिए भी बहुत जरूरी है। लेकिन इससे अलग हटकर देखें तो तीनों सेनाओं के मुखिया जनरल रावत की इस तरह से मृत्यु से देश को जो क्षति हुई उसकी पूर्ति बेहद कठिन होगी। वे इस ओहदे को सुशोभित करने वाले वाले पहले सैन्य अधिकारी थे। थल सेनाध्यक्ष बनने से पूर्व भी श्री रावत ने सेना के विभिन्न पदों पर रहते हुए जिस जिम्मेदारी, साहस और सूझबूझ का परिचय दिया वह उन्हें उच्चस्तरीय सैनिक साबित करने के लिए पर्याप्त थी। पाकिस्तान प्रवर्तित आतंकवादियों के हमले के जवाब में भारतीय कमांडो सैनिक सीमा पार बैठे आतंकवादियों के अड्डों को नष्ट करने घुसे और सफल होने के बाद बिना किसी मानवीय हानि के सुरक्षित लौट आये। उस सर्जिकल स्ट्राइक के पहले म्यांमार की सीमा में घुसकर आतंकवादी दस्तों को मार गिराने का पराक्रम भी उनकी अगुआई में किया गया। ये कहना गलत न होगा कि उसके बाद ही बालाकोट जैसी सर्जिकल स्ट्राइक करने का हौसला हमारी सेना और राजनीतिक नेतृत्व में पैदा हुआ। भारत में जनरल करिअप्पा और जनरल मानेक शॉ नामक दो फील्ड मार्शल हुए लेकिन तीनों सेनाओं के प्रमुख का जो पद लंबे समय से विचाराधीन था उसे मोदी सरकार ने सृजित किया और थल सेनाध्य्क्ष पद से निवृत्त होते ही जनरल रावत को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ नियुक्त कर उनकी योग्यता और अनुभव का लाभ लेने का रास्ता साफ़ किया। श्री रावत का थल सेनाध्यक्ष और बतौर सीडीएस कार्यकाल ऐसा रहा जब सीमा पर पाकिस्तान और चीन दोनों ने बड़े पैमाने पर आक्रामक रवैया दिखाया। चीन के साथ तो लद्दाख सेक्टर में काफी हद तक युद्ध के हालात बन गये थे। उसकी शह पर नेपाल तक भारत को ऑंखें दिखाने लगा । लेकिन जनरल रावत ने संकट की उन घडिय़ों में सेना का नेतृत्व जिस आत्मविश्वास से करते हुए आक्रामक शैली में चीन, पाकिस्तान और नेपाल को कड़ा जवाब दिया उससे पूरे विश्व में भारतीय सैन्य बल और कुशल नेतृत्व की धाक जमी। विशेष रूप से चीन के साथ लगी सीमा पर जिस तरह की मोर्चेबंदी भारत द्वारा की गई वह राजनीतिक नेतृत्व की दृढ़ता के साथ ही जनरल रावत के लम्बे अनुभव और साहसिक स्वभाव का परिणाम ही थी। मृत्यु से ठीक पहले उन्होंने जैविक हथियारों के उपयोग के प्रति जो चिंता व्यक्त की वह भविष्य को देख पाने की उनकी क्षमता का प्रमाण है। उनके कार्यकाल में सेना के आधुनिकीकरण के साथ ही साजो-सामान की दृष्टि से आत्मनिर्भरता जैसी उपलब्धि भी हासिल हुईं। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि 2004 से 2014 तक के यूपीए सरकार के कार्यकाल में रक्षा सौदों पर विवाद की जो छाया पड़ी रही उसके कारण सेना के तीनों अंगों की मारक क्षमता पर बुरा असर पड़ा था। नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आते ही इस कमी को पूरा करने का बीड़ा उठाया जिसकी वजह से ही आज भारतीय सेना चीन जैसी महाशक्ति को उसी की शैली में जवाब देने का साहस जुटा सकी। इस उपलब्धि का काफी श्रेय श्री रावत को भी जाता है जिनके बारे में ये प्रसिद्ध रहा कि वे युद्ध का अर्थ केवल जीत ही मानते थे। यही कारण है कि असमय और दुर्भाग्यपूर्ण हालत में उनका निधन होने से पूरे देश में शोक की लहर व्याप्त है। भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में सेना प्रमुखों का जनता से सीधा जुड़ाव नहीं होता। पड़ोसी पाकिस्तान की तरह पद पर रहते हुए सेनाध्यक्ष राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते। चुनी हुई सरकार के प्रति वफादारी सेना का चारित्रिक गुण है। इसी के साथ ये कहना भी पूरी तरह सही है कि राजनीतिक नेतृत्व भी सेना के उच्च अधिकारियों को पूरा सम्मान देता है। इसी का परिणाम है कि नेताओं के प्रति जनता की धारणा भले बदलती रहे लेकिन सेना की वर्दी धारण करने वाले सैनिक से लेकर सेनाध्यक्ष तक को हर देशवासी सम्मान देता है। जनरल रावत के निधन पर आम जनता की जो प्रतिक्रिया आ रही है उससे यह पूरी तरह से प्रमाणित भी हो गया। उनके साथ हेलीकाप्टर में उनकी पत्नी के साथ जितने भी सैन्य अधिकारी और जवान थे सब देश की सेवा के प्रति समर्पित रहे। ऐसे में जितना नुकसान श्री रावत के जाने से हुआ उतना ही उन सबके न रहने से होगा क्योंकि सेना दरअसल सेनापति और सैनिक की सामूहिक शक्ति से बनती है। इसीलिए ये हादसा दोहरी चिंता का विषय है क्योंकि जो हेलीकाप्टर इसका कारण बना एक तो वह तकनीकी दृष्टि से उच्च कोटि का होने से अति विशिष्ट लोगों के आवगमन हेतु उपयोग में आता रहा और दूसरी ये कि सेना ने अपने बेहद अनुभवी और योग्य सेनापति के साथ कुछ अधिकारियों और जवानों को भी खो दिया जिन्हें तैयार करने में केवल धन ही नहीं, बरसों का समय और मेहनत लगती है। इस लिहाज से ये देश के लिए गहन शोक की घड़ी है। हर देशवासी की आंख उन फौजियों के सम्मान में नम है जिन्होंने सुख-सुविधाओं की जि़न्दगी छोड़ देश की रक्षा करने जैसा चुनौतीपूर्ण दायित्व ग्रहण किया।
भारत माता के इन सपूतों को अश्रुपूरित श्रद्धान्जलि।

No comments:

Post a Comment