Saturday 11 December 2021

हेलीकाप्टर दुर्घटना पर निष्कर्ष निकालने की जल्दबाजी ठीक नहीं



हेलीकाप्टर दुर्घटना में चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ जनरल बिपिन रावत और दर्जन भर लोगों की मौत के बाद दुर्घटना के कारणों को लेकर कुछ लोग जिस तरह की प्रतिक्रियाएं व्यक्त कर रहे हैं उनसे लगता है जैसे वे ऐसे मामलों के जन्मजात विशेषज्ञ हों। इनमें कुछ राजनेता, पत्रकार और सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले वे लोग हैं जिन्हें हर मामले में टांग अड़ाने की आदत है। कुछ लोगों को इस बात का भी दर्द है कि समाचार माध्यमों में उक्त दुर्घटना को लेकर वैसी चर्चा नहीं हो रही जैसी सुशांत राजपूत और आर्यन खान के मामले में हुई थी। सांसद डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने इस घटना में षडयंत्र की आशंका जताते हुए सर्वोच्च न्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायाधीश से जांच कराये जाने की मांग कर डाली ताकि किसी तरह का दबाव न आये। उनके अलावा अनेक लोगों का कहना है कि हादसे के पीछे चीन, पाकिस्तान और श्री लंका के तमिल उग्रवादी संगठन लिट्टे का हाथ हो सकता है जो दोबारा जीवित हो रहा है। कुछ लोगों ने ताईवान में हुई इसी तरह की दुर्घटना के तार इससे जोड़ते हुए अपना निष्कर्ष निकाल लिया। रूस के राष्ट्रपति पुतिन के संक्षिप्त भारत दौरे के फौरन बाद हुई उक्त दुर्घटना को हथियारों के सौदों में चल रही प्रतिद्वंदिता से जोड़कर भी देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है भारत ने रूस से हाल ही में रक्षा प्रणाली खरीदने का जो सौदा किया उससे अमेरिका बहुत नाराज है। साथ ही चीन को भी ये डर है कि भारत इसका उपयोग उसके विरुद्ध करेगा। स्व. रावत द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध की गई जमीनी सर्जिकल स्ट्राइक से उत्पन्न उसकी नाराजगी को भी इस दुर्घटना की वजह मानने वाले कम नहीं है। सबसे नया कयास लेसर तकनीक से हेलीकाप्टर गिराये जाने के तौर पर लगाया जा रहा है। तीनों सेनाओं के प्रमुख के तौर पर स्व. जनरल रावत सेना के आधुनिकीकरण के अभियान से करीबी से जुड़े रहे। रक्षा उपकरणों के सौदों में भी उनकी सलाह काफी महत्वपूर्ण मानी जाती थी। सबसे प्रमुख बात ये है कि उनके सरकार के साथ काफी नजदीकी सम्बन्ध होने से रक्षा मामलों में निर्णय प्रक्रिया तेज हुई थी। गत वर्ष गर्मियों में चीन द्वारा लद्दाख क्षेत्र की गलवान घाटी में की गई घुसपैठ का भारतीय सेना ने दबंगी से जवाब देने के बाद पूरे इलाके में जबरदस्त मोर्चेबंदी की उसकी वजह से चीन को काफी शर्मिन्दगी झेलनी पड़ी और वह बजाय अकड़े रहने के वार्ता करने राजी हुआ जिसका सिलसिला अभी भी जारी है। केंद्र सरकार द्वारा तीनों सेनाओं का एक स्थायी प्रमुख (सीडीएस) नियुक्त करने से सेना के तीनों अंगों में तालमेल और अच्छा हुआ जिसके कारण ही लद्दाख जैसे दुर्गम इलाके में हवाई पट्टी बनाकर आधुनिक लड़ाकू विमान और मिसाइलें लगाई जा सकीं। जाहिर है शत्रु राष्ट्र इससे परेशान होकर ऐसा कुछ करने की ताक में रहते हैं जिससे हमारी सैन्य तैयारियों में व्यवधान आये। जनरल रावत बीते कुछ समय से भारत की रक्षा नीति में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहे थे और उस लिहाज से उनका दुश्मनों की नजर में खटकना स्वाभाविक ही था। दुनिया भर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के पास आजकल अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र और तकनीक आ गयी है। अफगानिस्तान जैसे गरीब देश में सड़क चलते लोगों के कन्धों पर रखे रॉकेट लांचर इसके जीवंत सबूत है। ऐसे में ये सोचना पूरी तरह निराधार नहीं है कि जनरल रावत के हेलीकाप्टर की दुर्घटना के पीछे कोई शत्रु देश अथवा ऐसा आतंकवादी संगठन हो सकता है जो भारत की रक्षा तैयारियों में खलल डालने के साथ देश को आन्तरिक तौर पर कमजोर करना चाहता हो। लेकिन ऐसे मामलों में सार्वजनिक चर्चा और अनधिकृत टिप्पणियों से बचा जाना चाहिए। जिस हेलीकाप्टर में स्व. रावत और उनका दल सवार था वह अपनी गुणवत्ता और विश्वसनीयता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। युद्ध के अलावा अति विशिष्ट व्यक्तियों के आवागमन के लिए भी उसका उपयोग किया जाता है। हालाँकि वह अनेक बार दुर्घटना का शिकार हो चुका है किन्तु तकनीकी श्रेष्ठता और सुरक्षा मानकों पर खरा साबित होने के कारण उसकी साख पर असर नहीं पड़ा। दुर्घटना के फौरन बाद सरकार और वायुसेना ने जांच शुरू कर दी। चूँकि हादसे में सीडीएस भी जान से हाथ धो बैठे और हेलीकाप्टर भी उच्च कोटि का था इसलिये जांच भी उसी स्तर की होगी। ये देखते हुए अनुमानों के दिशाहीन तीर छोड़ना जल्दबाजी के साथ ही गैर जिम्मेदार रवैया ही है। किसी तोड़फ़ोड़ या आतंकवादी हरकत की आशंका अपनी जगह स्वाभाविक है लेकिन जिस जगह और मौसम में हादसा हुआ उन्हें देखते हुए यही सम्भावना ज्यादा है कि पायलट हेलीकाप्टर को सामान्य ऊंचाई से भी कम पर उड़ाने बाध्य हुआ और वही जानलेवा बना। उड़ान का समय यद्यपि बहुत ही संक्षिप्त था किन्तु हवाई यातायात का नियन्त्रण बहुत ही सावधानी से किया जाता है। और फिर जब जिस उड़ान में देश की सुरक्षा से जुड़ा बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति बैठा हो तब सतर्कता और भी ज्यादा रखी जाती है। जिस इलाके में दुर्घटना घटित हुई वह घने जंगलों वाला है। इस तरह की उड़ान का जो मार्ग है वह सार्वजानिक भी नहीं किया जाता। ऐसे में बेहतर यही होगा कि वायुसेना द्वारा की जा रही जाँच के परिणामों का इंतजार किया जावे। उससे निकलने वाले निष्कर्षों का विश्लेषण जरूर किया जा सकता है। बहरहाल किसी के पास या उसके दिमाग में ऐसी कोई बात हो जो दुर्घटना के कारणों को पता लगाने में सहायक हो सकती है तब उसे जाँच एजेंसियीं तक पहुंचाना समझदारी होगी। लेकिन बैठे-बैठे अन्दाजिया तीर छोड़ते रहने से हासिल तो कुछ होता नहीं, उलटे जांच करने वाले दबाव में आ जाते हैं। इस बारे में ये भी ध्यान रखना चाहिए कि हादसे का शिकार हुआ हेलीकाप्टर वायुसेना का था जिसमें तीनों सेनाओं के प्रमुख सवार थे। सेना, सुरक्षा और सेनापति से जुड़े इस घटनाक्रम में बहुत सी बातें ऐसी हैं जिन्हें सार्वजनिक करना देशहित में नहीं होगा। ये देखते हुए अति उत्साह में अपनी काल्पनिकता का उपयोग करने की बजाय जिम्मेदारी के साथ धैर्य रखने में ही बुद्धिमत्ता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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