Monday 20 December 2021

पंजाब में खालिस्तानी आतंक के लौटने का खतरा



 जो लोग पंजाब की राजनीति के बारे में जानते हैं उन्होंने ये भी सुना होगा कि नब्बे के दशक में वहां जरनैल सिंह भिंडरावाले नामक जो व्यक्ति  उग्रवाद का प्रवक्ता बन गया था उसे तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने ही ज्ञानी जैल सिंह की राजनीतिक वजनदारी कम करने  के लिए बढ़ावा दिया था किन्तु बाद में वही उनके लिए समस्या बन गया जिसकी दुखद परिणिति अंततः श्रीमती गांधी की नृशंस हत्या के तौर पर सामने आई | उल्लेखनीय है अमृतसर के विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर में घुसे बैठे भिंडरावाले को ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार नामक फौजी कार्रवाई में मार गिराया गया था जिसकी प्रतिक्रियास्वरूप ही श्रीमती गांधी को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने ही मार दिया और तब दिल्ली में हुए दंगों में हजारों सिखों की हत्या कर दी गई | धीरे –  धीरे  पंजाब में शांति लौट आई और ऐसा लगने  लगा कि उस दौर को भुला दिया गया है | जिस कांग्रेस से सिख समुदाय बेहद नाराज था उसी की सरकार भी कालान्तर में बनीं और खालिस्तान नामक देश विरोधी आन्दोलन पर भी विस्मृति की धूल जम गई | लेकिन ऐसा लग रहा है राख के नीचे दबी चिंगारी फिर  भड़क सकती है | इसके अनेक संकेत बीते कुछ समय से मिल रहे हैं | 13 अप्रैल 2020 को पटियाला के सनौर नामक स्थान में कोरोना के कारण लगाये गये कर्फ्यू का उल्लंघन कर रहे निहंगों ने उनको रोकने वाले पुलिस इंस्पेक्टर  का हाथ तलवार से काट दिया  और भागकर समीपवर्ती गुरूद्वारे में जा घुसे | बाद में किसी तरह उन्हें पकड़ा जा सका | उनके पास से जो चीजें मिलीं वे किसी धार्मिक व्यक्ति से अपेक्षित नहीं थीं |  उस घटना को साधारण अपराध मानकर भुला देने की जो गलती की गई उसके दुष्परिणाम जल्द सामने आने लगे | तीन कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब  की जत्थेदारियों ने जो आन्दोलन शुरू किया उसका केंद्र बाद में दिल्ली बन गया  |  धरना देने वालों में  चूँकि सिख किसान ज्यादा थे  इसलिए उनके भोजन की व्यवस्था हेतु जो लंगर शुरू हुए उनके जरिये सिखों के बीच घुसे अलगाववादी तत्व भी आन्दोलन का हिस्सा बन बैठे | धरनास्थल पर भिंडरावाले के पोस्टर और खलिस्तानी झंडे जैसे सबूतों की आन्दोलन के नेताओं द्वारा की गई  उपेक्षा के  कारण ही 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर निहंग द्वारा शस्त्र प्रदर्शन  का दुस्साहस किया गया |राष्ट्रध्वज के अपमान और धार्मिक ध्वज फहराए जाने के दृश्य भी पूरे देश ने देखे | किसान नेताओं ने उस घटना की निंदा तो की लेकिन वे उपद्रवी तत्वों को धरना स्थल से हटाने का साहस नहीं जुटा सके | उस आन्दोलन के समर्थन में कैनेडा और ब्रिटेन में जो प्रदर्शन हुए उनमें भी खालिस्तानी नारे लगे | लेकिन जब भी इस बारे  में किसान नेताओं का ध्यान आकर्षित किया गया तो वे बहकी – बहकी  बातें करने लगे | जिससे उपद्रवी तत्वों का हौसला मजबूत हुआ और आन्दोलन के  अंतिम चरण में कुछ निहंगों द्वारा  धार्मिक प्रतीक के अपमान के आरोप में एक व्यक्ति की बेरहमी से हत्या कर दी गयी । उनकी गिरफ्तारी भी बड़ी मुश्किल से हो सकी | उस घटना के बाद योगेन्द्र यादव ने  निहंगों से धरना स्थल खाली  करने की मांग की जिसे  ठुकरा दिया गया  | खैर , किसान आन्दोलन तो खत्म हो गया लेकिन उसकी आड़ में नये सिरे से सिख उग्रवाद का जो बीज पनपा उसका असर सामने आने लगा है | विगत दो दिनों में पंजाब से निहंगों द्वारा बेअदबी के नाम पर की गई हत्याओं की जो खबरें आईं वे इस राज्य में पुराना दौर लौटने की आशंका को मजबूत कर रही हैं | कुछ महीनों बाद  विधानसभा चुनाव होने वाले हैं |  फिलहाल वहां जबरदस्त  राजनीतिक अनिश्चितता है | किसान आन्दोलन के जरिये सक्रिय हुई कुछ जत्थेदारियां राजनीतिक महत्वाकांक्षा के संकेत दे रही हैं | उनके एक नेता ने तो बाकायदे अपने उम्मीदवार उतारने  का ऐलान कर दिया है | सत्ताधारी कांग्रेस अपनी अंतर्कलह से जूझने के काण इस सम्वेदनशील मुद्दे पर ध्यान नहीं दे रही | उसके प्रदेश अध्यक्ष नवजोत  सिंह सिद्धू  और मुख्यमंत्री के बीच खींचातानी की वजह से  प्रशासनिक व्यवस्था चौपट हो रही है | निहंगों द्वारा बेअदबी के नाम पर की जा रही हत्याओं को केवल धार्मिक कट्टरवाद से जोड़कर देखना गलत होगा क्योंकि अतीत में जो कुछ हो चुका है उसके मद्देनजर इन घटनाओं की उपेक्षा पंजाब को एक बार फिर अलगाववाद की  आग में झोंकने का कारण बन सकती है | आश्चर्य की  बात है लिंचिंग  के मामले में चिल्लाने वाली कांग्रेस अपने शासन वाले राज्य में धार्मिक उन्माद के विरुद्ध बोलने से डर रही है | ये कहना भी गलत न होगा कि किसान आन्दोलन का सहारा लेकर पंजाब में धार्मिक कट्टरवादी गुटों और अलगाववादी ताकतों का अघोषित गठबंधन आंतरिक शान्ति के लिए बड़ा खतरा बनने जा रहा है | चुनाव तो आते – जाते रहेंगे लेकिन पंजाब देश का सीमावर्ती राज्य होने से बेहद संवेदनशील है |  खालिस्तानी आतंक को प्रश्रय और प्रशिक्षण देने में पाकिस्तान की  सक्रिय भूमिका किसी से छिपी नहीं है | ये भी ध्यान देने योग्य है कि भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध लड़ने की जो रणनीति बांग्लादेश बनने के बाद पाकिस्तान ने बनाई थी उसी के तहत अस्सी और नब्बे के दशक में पंजाब में आतंकवाद की शुरुवात हुई थी | जिसके  नियंत्रण में आते ही पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने की योजना पर अमल किया | धारा 370 हटने के बाद बीते दो वर्ष में वहां के  हालात पर काफी हद तक काबू किया जा सका  , जिससे पाकिस्तान परेशान हो उठा | ऐसा लगता है उसने उसके बदले पंजाब की धरती में दबे पड़े खालिस्तान के बीज को पुनः दाना - पानी देने की कार्ययोजना बनाई है | निहंगों का अचानक बदला व्यवहार बेअदबी के नाम पर किया जाने वाला उन्माद न होकर किसी बड़े षडयंत्र का सूत्रपात हो तो आश्चर्य नहीं होगा | इसके जरिये पंजाब में सिख और हिन्दुओं के बीच खाई पैदा करने का खतरनाक खेल भी हो सकता है | निहंग  , सिखों के संघर्षशील इतिहास का प्रतीक हैं  | लेकिन हाल  की  घटनाओं में उनमें से कुछ का आचरण ये साबित कर रहा है कि वे   सिख गुरुओं के बताये रास्ते से भटककर आतंक  और स्वेच्छाचरिता के प्रतीक बन बैठे हैं | सिख समुदाय में जो विवेकशील लोग हैं उनको निहंगों के इस आतंक के विरूद्ध आवाज उठानी चाहिए | गुरूद्वारों को उनकी पवित्रता और सिख समाज को उसकी  सेवा भावना के लिए पूरी दुनिया में सम्मान की नजर से देखा जाता है | ऐसे में कतिपय निहंगों द्वारा की जा रही हत्याओं से सिख कौम की  छवि पर आंच न आये ये देखा जाना जरूरी है | राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे अपने क्षणिक स्वार्थवश इस आग को भड़काने से बाज आयें वरना  उनके हाथ भी जले बिना नहीं रहेंगे | अतीत की गलतियों की मंहगी कीमत चुकाने के बाद भी  उसे दोहराना किसी दल या नेता से ज्यादा इस देश के लिए हानिकारक होगा |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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