Wednesday 1 December 2021

सवाल ये है कि पराग विदेश जाते ही क्यों हैं ....



जब अपना कोई कहीं जाकर उपलब्धियां अर्जित करता है तब न केवल परिवार अपितु समूचे मोहल्ले , गाँव और शहर को खुशी मिलती है | लेकिन जब देश का कोई व्यक्ति विशेष तौर पर युवा  सात समंदर पार जाकर बाद बड़ा मुकाम हासिल करता है तब उसकी कामयाबी पूरे देश को गौरवान्वित करती है | निश्चित रूप से भारत के लिए बीते कुछ वर्षों में ऐसे अवसर लगातर आते रहे हैं जब हमारे किसी व्यक्ति को अमेरिका जैसे विकसित देश में कोई ऐसा बड़ा पद मिला  जिसकी वैश्विक प्रासंगिकता हो | उस दृष्टि से सोशल मीडिया के चर्चित माध्यम ट्विटर के सीईओ पद पर भारतीय मूल के पराग अग्रवाल की नियुक्ति निश्चित तौर पर खुशी के साथ ही गौरव का विषय है | ट्विटर विश्व की 500 बड़ी कंपनियों में गिनी जाती है और पराग इस पद पर पहुंचने वाले सबसे युवा व्यक्ति हैं | ट्विटर का उपयोग संवाद सम्प्रेषण के लिए दुनिया भर के दिग्गज राष्ट्रप्रमुख , राजनेता , अभिनेता , खिलाड़ी , उद्योगपति , कलाकार और विचारक करते हैं | इसमें किसके कितने प्रशंसक या फालोअर हैं इससे उसकी लोकप्रियता का अंदाज  लगाया जाता है | यद्यपि इसकी विश्वसनीयता संदिग्ध है क्योंकि ये संख्या प्रायोजित भी होती है | लेकिन ट्विटर की विश्व्यापी मौजूदगी और उसके महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता | उस दृष्टि से पराग का उसके प्रशासनिक मुखिया पद पर पहुंचना गर्व का विषय है | अपने जीवन में प्रगति के उच्च शिखर पर जाने के इच्छुक युवाओं के लिए वे  प्रेरणा का नया स्रोत बन गये हैं | हालाँकि ये उपलब्धि हासिल करने वाले वे पहले भारतीय नहीं हैं | उनसे पहले भी विश्व की सबसे बड़ी अनेक कम्पनियों में भारतीय पेशेवर उच्चतम पदों पर आसीन होने में सफल रहे और उन्होंने अपने कृतित्व से देश  की छवि को चमकाया भी | उनकी कामयाबी असंख्य भारतीय युवाओं की प्रेरणा का स्रोत बनी और उसी का परिणाम है कि विश्व की  आर्थिक महाशक्ति अमेरिका की बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उच्च प्रबन्धन में भारतीय पेशेवरों की संख्या बढ़ती जा रही है | पराग के  पूर्व माइक्रोसाफ्ट में सत्या नडेला , गूगल की अभिभावक कम्पनी अल्फाबेट में सुंदर पिचाई , अडोब में शांतनु नारायण और  आईबीएम में अरविन्द कृष्णा भी उच्चतम पदों को हासिल कर भारत की गौरव पताका फहरा चुके हैं | पेप्सी जैसी लोकप्रिय कम्पनी की प्रशासनिक मुखिया का पद भी इंदिरा नूयी ने बहुत ही कुशलता से संभाला था | अमेरिका की अन्य बड़ी कम्पनियों के अलावा वहां की सरकार में अब उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के अलावा अनेक मुख्य पदों पर भारतीयों की नियुक्ति भारत के बढ़ते प्रभाव और महत्व को साबित करती है | लेकिन इस सबके बीच एक सवाल रह – रहकर उठता है कि  इन मेधावी प्रतिभाओं को देश में ही रहकर काम करने के वैसे अवसर क्यों नहीं मिलते जिनके लिए वे अमेरिका या अन्य देशों में जाते हैं | एक जमाना था जब विदेश  जाना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी किन्तु आज भारतीय वैश्विक नागरिक के रूप में जाने जाते हैं | दुनिया के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में उनकी उपस्थिति देखी जा सकती है | न केवल शिक्षा , शोध और  नौकरी , अपितु व्यवसाय के क्षेत्र में भी वे  सफलतापूर्वक कार्यरत हैं | वाजपेयी सरकार के समय जब परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका सहित तमाम देशों  ने भारत पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये तब विदेशों में कार्यरत इन्हीं भारतीयों ने अपनी देशभक्ति का उदाहरण पेश करते हुए विदेशी मुद्रा के भण्डार को लबालब कर दिया जिसकी मदद से देश वैश्विक बिरादरी में सिर ऊंचा करते हुए खड़ा रहा | आज हमारी अर्थव्यवस्था जिस आत्मविश्वास से ऊंचाई की ओर बढ़ती जा रही है उसमें अप्रवासी भारतीयों का योगदान बहुत बड़ा है | लेकिन ये अफ़सोस भी इसी के साथ होता है कि हमारे देश में इन प्रतिभाओं को चमकने का वैसा अवसर क्यों नहीं मिलता जिसके लिए वे विदेश भागते हैं | आईआईटी , आईआईएम, और एम्स जैसे संस्थानों से शिक्षित इंजीनियर , वैज्ञानिक , प्रबंधन विशेषज्ञ और चिकित्सा विज्ञान की जो हस्तियाँ उच्च शिक्षा हेतु विदेश जाती हैं उनमें से कितनी वापिस लौटकर भारत को अपना कार्यक्षेत्र बनाती हैं ये अध्ययन का विषय है | पराग अग्रवाल भी इसी श्रेणी में आते हैं | देश में उद्योग – व्यवसाय लगाने  वाले उद्यमियों को शासन की ओर से तरह – तरह के प्रोत्साहन और सहायता दी जा रही है | ये भी उल्लेखनीय है कि विदेशों में कार्यरत अनेक युवा वहां से अच्छे अवसर छोड़कर देश में  सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं | विदेशों की चमक – दमक और सुख – सुविधा से भरी ज़िन्दगी को त्यागकर कुछ युवाओं नें तो अपने गाँव में आकर विकास का जो बीड़ा उठाया उसने पूरे इलाके की तकदीर संवार दी | लेकिन ऐसे  लोगों की संख्या बेहद कम है | यदि भारत को वाकई विश्व महाशक्ति बनना है तो इसके लिए दुनिया भर की बड़ी कंपनियों को भारत में कारोबार ज़माने के लिए आमंत्रित करने से ज्यादा जरूरत इस बात की है कि भारत के उद्योगपति और नव उद्यमी ऐसी कम्पनियाँ खड़ी करें जो बहुराष्ट्रीय बने सकें | टाटा सहित अनेक उद्योगपतियों ने देश के बाहर जाकर अपनी धाक जमाई है लेकिन ऐसा सुनने में नहीं आता कि किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी का दिग्गज भारतीय अधिकारी उसकी नौकरी छोड़कर भारत के किसी प्रतिष्ठान में आया हो | रघुराम राजन जैसे अनेक आर्थिक विशेषज्ञ भारत आये और कुछ समय बाद लौट गये | हमारी जो प्रातिभायें दूसरे देशों में कार्यरत हैं उनकी मेहनत और कार्यकुशलता का लाभ उनको ही मिलता है | ऐसे में उनकी पेशेवर उपलब्धियां हमारे लिये केवल भावनात्मक संतोष और खुशी का तात्कालिक विषय तो बनती हैं  लेकिन देश को विकसित करना है तो हमें ऐसा वातावरण और परिस्थितियां उत्पन्न करना पड़ेंगी जिसके आकर्षण में उच्च शिक्षित युवा जन्मभूमि को ही अपनी कर्मभूमि बनायें | इतिहास इस बात का प्रमाण है कि गुलाम होने के पहले भारत विश्व व्यापार में बड़ा हिस्सेदार हुआ करता था | ज्ञान – विज्ञान , उद्योग – व्यापार सभी में हमारा बोलबाला था | भारत में हुनर की कोई कमी नहीं  है , यहाँ की संतुलित जलवायु पूरे साल काम करने का अवसर प्रदान करती है | खनिज , वन और जलसंपदा के मामले में भी  देश काफी समृद्ध है | बड़ी आबादी के कारण  विशाल मानव संसाधन उपलब्ध है  | सबसे बड़ी बात तमाम विसंगतियों के बाद भी भारत में देशभक्ति को लेकर जबरदस्त भावनात्मक एकता है | इन सब खूबियों के कारण यदि हम अपने मेधावी लोगों को देश में ही काम करने के लिए समुचित अवसर और सुविधाएं दें तो पराग जैसी अनगिनत प्रतिभाएं भारत को वैश्विक  महाशक्ति बनाने के लिए अपना योगदान दे सकती हैं | ट्विटर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी के तौर पर एक भारतीय युवा का पदासीन होना निश्चित रूप से हर्षोल्लास का अवसर है लेकिन इसी के साथ ये भी विचारणीय है कि ऐसी प्रतिभाएं देश के बाहर जाकर ही क्यों निखरती हैं ? जिस दिन इस सवाल का समुचित उत्तर खोजकर प्रतिभा पलायन रोकने में भारत कामयाब हो जायेगा तब विश्व की बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का मुख्यालय भारत में होने के साथ ही उनके सीईओ ही नहीं , मालिक भी भारतीय होंगे | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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