Monday 6 December 2021

चुनाव जनता के लिए बने या जनता चुनाव के लिए?



चुनाव लोकतंत्र की मूलभूत आवश्यकता है। इसकी जड़ों को मजबूत करने के लिए ही नगरीय निकायों के चुनाव भी कराए जाते हैं। भारत में चूँकि अधिकांश आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है इसलिए ग्राम पंचायत नामक प्रशासनिक व्यवस्था सदियों से लागू रही जिसे कालान्तर में वैधानिक स्वरूप दे दिया गया है। महात्मा गांधी ने तो ग्राम स्वराज की कल्पना तक कर डाली थी। स्व. राजीव गांधी ने पंचायती राज व्यवस्था लागू करते हुए ग्राम पंचायत के चुनावों को भी लोकसभा और विधानसभा की तरह संवैधानिक आवश्यकता बनाया। हालाँकि अनेक विसंगतियों के कारण इस व्यवस्था के अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहे लेकिन उसके कारण शासन-प्रशासन का विकेंद्रीकरण तो हुआ ही है। इसी के चलते म.प्र सरकार ने पंचायत चुनाव करवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इसके लिए कमर कसने का ऐलान भी कर दिया है। वैसे तो नगरीय निकायों के चुनाव भी होने हैं लेकिन आरक्षण प्रक्रिया को लेकर अदालतबाजी होने से उन पर रोक लगी हुई है। यद्यपि वैसी ही सुगबुगाहट पंचायत चुनावों को लेकर भी है किन्तु सरकारी स्तर पर तैयारियां शुरू करते हुए मतदान की तारीख भी घोषित हो गई। उसके कुछ दिन पहले ही प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना काल में लगाई गईं तमाम पाबंदियां हटाने की घोषणा की थी ताकि जनजीवन सामान्य हो और अर्थव्यवस्था पुरानी रफ़्तार से दौड़ सके। निश्चित तौर पर ऐसा करना हालात का तकाजा था लेकिन ये बात भी ध्यान देने वाली है कि जिस कोरोना के कारण वह सब करना पड़ा वह हमारे बीच अभी भी मौजूद है। उससे बचाव के लिए शुरू किये गये टीकाकरण अभियान की वजह से अब तक तो तीसरी लहर से बचाव होता रहा है लेकिन प्रतिबन्ध हटाते ही लोगों ने लापरवाही शुरू कर दी। विवाह सहित अन्य जलसों में लोगों की उपस्थिति की सीमा खत्म कर देने से भी भीड़ बढ़ने लगी। यद्यपि मुख्यमंत्री द्वारा मास्क सहित अन्य सावधानियां जारी रखने की अपील किये जाने के साथ ही मास्क न लगाये जाने पर जुर्माने जैसी कार्रवाई भी की जा रही है किन्तु ये बात बेहिचक स्वीकार करनी होगी कि इस बारे में आम जनता में अव्वल दर्जे की लापरवाही है। यहाँ तक कि नेता और शासकीय अधिकारी तक इस बारे में बहुत ही गैर जिम्मेदार बने हुए हैं। जहां तक बात टीकाकरण अभियान की है तो उसमें हो रहा फर्जीबाड़ा जिस तरह सामने आ रहा है उससे लगता है कि सरकारी आंकड़ों पर भरोसा करते हुए ये मान लेना गलत होगा कि अधिकांश लोगों को कोरोना के दोनों टीके लगते ही हर्ड इम्युनिटी (सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता) विकसित हो चुकी है जिससे तीसरी लहर जैसा कोई खतरा नहीं रहेगा। लेकिन कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बीच में भी इसी तरह का आशावाद सर्वत्र दिखाई देने लगा था जिसका परिणाम कितना भयावह निकला ये किसी से छिपा नहीं है। हालाँकि चिकित्सा विशेषज्ञ ये कहते रहे हैं कि कोरोना की तीसरी लहर पहले जैसी जानलेवा नहीं होगी क्योंकि देश में आक्सीजन और वेंटीलेटर की समुचित व्यवस्था कर ली गई है। लेकिन ऐसा कहते समय किसी को नहीं पता था कि उससे भी ज्यादा खतरनाक ओमीक्रोन नामक वायरस आ टपकेगा जिस पर न कोरोना के टीके का असर होता है और न ही प्रतिरोधक क्षमता काम आती है। बीते कुछ ही दिनों में इसका संक्रमण देश के विभिन्न हिस्सों में तेजी से फैलने लगा है। पड़ोसी राज्यों में ओमिक्रोन के नये-नये मरीजों का पता चलने से म.प्र में भी खतरा बढ़ गया है। ये भी उल्लेखनीय है कि प्रतिबन्ध शिथिल किये जाते ही प्रदेश के भीतर कोरोना के नये मरीज मिलना शुरू हो गये हैं जिसमें इंदौर और भोपाल सबसे आगे हैं। चूँकि विदेशों से लोगों का आगमन शुरू हो गया है इसलिए ओमिक्रोन की आशंका बढ़ रही है। पर्यटन का मौसम होने से विदेशी सैलानी प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में सैर हेतु आ रहे हैं। हालांकि बाहर से आने वालों की जाँच के प्रबंध किये जा रहे हैं लेकिन इनमें कितनी पोल होती है ये किसी से छिपा नहीं है। ऐसी हालत में जब कोरोना के साथ ओमिक्रोन जैसे नए संक्रमण का हमला होने की पूरी आशंका है तब पंचायत चुनवा करवाने का औचित्य समझ से परे है। निश्चित तौर पर ये एक संवैधानिक व्यवस्था है जिसका पालन लोकतंत्र को देश के ग्रामीण इलाकों तक पहुँचाने के लिए आवश्यक है परन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात है उस जनता की सुरक्षा जिसके लिए पंचायती राज और चुनाव बनाये गए हैं। जनता के स्वास्थ्य और जि़न्दगी से बढ़कर और कुछ नहीं हो सकता। पंचायत चुनाव में भी वही सब होता है जो बाकी में देखा जाता है। नेताओं के दौरे, सभाएं, रैलियां-जुलूस और इन सबके कारण भीड़ का जमा होना संक्रमण के फैलाव का कारण बने बिना नहीं रहेगा और तब कोरोना के साथ ही ओमिक्रोन से बचाव की अपीलें चुनावी भीड़ के सामने बेअसर होना तय है। चिकित्सा विशेषज्ञ आये दिन चेता रहे हैं कि जनवरी में कोरोना की तीसरी लहर संभावित है और फरवरी में प्रतिदिन एक लाख से ज्यादा संक्रमितों के साथ चरम आयेगा। हालाँकि टीकाकरण के कारण मृत्यु होने का भय पहले जैसा नहीं रहा लेकिन लापरवाही जारी रही तो स्थिति भयावह होते देर नहीं लगेगी। ऐसे में बुद्धिमत्ता इसी में है कि पंचायत चुनाव को फि़लहाल टाला जाए। लोकतंत्र से जुड़ी संवैधानिक अनिवार्यताओं का अपना महत्व है लेकिन वे जनता की जान से ज्यादा नहीं। म.प्र के मुख्यमंत्री श्री चौहान बेहद संवेदनशील और जनता से जुड़े नेता हैं। उनको इस बारे में जानकरी न हो ऐसा भी नहीं है। अच्छा तो यही होगा कि वे सर्वदलीय बैठक बुलवाकर सभी को विश्वास में लेते हुए पंचायत चुनाव को कोरोना और ओमिक्रोन के खतरे के मद्देनजर रोकने की व्यवस्था करें। इस बारे में सीधी-सपाट बात ये है कि जनता की जान को खतरे में डालकर चुनाव करवाने की जिद तंत्र को भले मजबूत कर दे किन्तु वह लोक के हित में नहीं होगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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