Wednesday 22 December 2021

उच्च सदन में निम्न स्तरीय आचरण शर्मिंदा करता है



राज्यसभा से 12 विपक्षी सांसदों के निलम्बन का विवाद चल ही रहा था कि गत दिवस तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य डेरेक ओ ब्रायन द्वारा आसंदी की तरफ नियम पुस्तिका फेंके जाने के बाद उन्हें भी इस सत्र की शेष अवधि के लिए निलम्बित कर दिया गया। श्री ब्रायन तृणमूल के प्रवक्ता हैं। सदन के भीतर उनकी सक्रियता और संसदीय ज्ञान प्रभावित्त करता हैं। आयरिश मूल के परिवार से होने की वजह से वे एंग्लो इन्डियन समुदाय के अंतर्गत आते हैं। उनका संसदीय ज्ञान और बहस करने की क्षमता काफी अच्छी है। राजनीति में आने से पहले वे विज्ञापन पेशेवर रहे और बाद में क्विज मास्टर के तौर पर बहुत सफल और लोकप्रिय हुए। उनके द्वारा संचालित क्विज शो देश-विदेश में सराहे गये। संसद का उच्च सदन दरअसल बना ही ऐसे लोगों के लिए है। उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस प. बंगाल में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के बाद आत्मविश्वास से भरपूर है। उसकी नेत्री ममता बैनर्जी स्वयं को प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का विकल्प मानकर कांग्रेस को तोडऩे में लगी हैं। बंगाल की सीमा से निकलकर सुदूर गोवा के विधानसभा चुनावों में तृणमूल ने कूदने के साथ ही जिस तरह से कांग्रेस में तोडफ़ोड़ मचाई हुई है उससे पार्टी की तेज चाल का एहसास होने लगा है। इसी कारण से वह संसद में भी आक्रामक दिखना चाहती है। जिन राज्यसभा सदस्यों को पिछले सत्र में आपत्तिजनक आचरण के कारण पूरे शीतकालीन सत्र के लिए निलम्बित किया गया उनमें दो तृणमूल के भी हैं। समूचा विपक्ष सभापति वेंकैया नायडू पर निलबंन वापिस लेने का दबाव बनाता रहा किन्तु वे टस से मस नहीं हुए। विपक्ष का कहना है कि ऐसा करने से उच्च सदन में सरकार के पास बहुमत हो गया जिसके बल पर वह अपने सभी प्रस्ताव पारित कराने में सफल हो रही है। वैसे भी मौजूदा सत्र किसी भी समय समाप्त किया जा सकता है। ऐसे में श्री ब्रायन जैसे सदस्य का सदन में न होना अच्छा नहीं है। संसदीय प्रणाली में सदन का बड़ा महत्व है और उस पर भी विपक्ष का जागरूक और सक्रिय होना निहायत जरूरी। लेकिन ये उसका भी दायित्व है कि अपनी उपयोगिता के साथ ही दायित्व को भी समझे। लोकसभा में न सही लेकिन राज्यसभा में विपक्ष की अच्छी-खासी संख्या है लेकिन वह इसका सही उपयोग सत्ता पक्ष पर दबाव बनाने में नहीं कर पा रहा जिसके लिए वह किसी और को दोष नहीं दे सकता। उसका सदैव ये आरोप रहता है कि सत्ता पक्ष उसे अपनी बात रखने का अवसर नहीं देता और आसंदी से उसे जो संरक्षण मिलना चाहिए वह भी नहीं मिल पाता। पिछले सत्र में जिन सदस्यों को उपद्रव के आरोप में निलम्बित किया गया वे आसंदी के रवैये को पक्षपातपूर्ण मानते हैं। हालाँकि अतीत में भी इस तरह के टकराव होते रहे हैं। लेकिन विपक्ष को अपनी भूमिका पर भी आत्मावलोकन करना चाहिए। मसलन श्री ब्रायन द्वारा उप सभापति के किसी निर्णय पर नाराज होकर सदन से चला जाना तो संसदीय विरोध का प्रचलित तरीका है किन्तु जाते-जाते नियमावली की पुस्तिका आसंदी की तरफ उछालना बहुत ही अशोभनीय कार्य था। ऐसा आचरण किसी अल्पशिक्षित सदस्य द्वारा किया जाए तो भी उसे उपेक्षित कर दिया जाता लेकिन डेरेक जैसे पढ़े-लिखे और अनुभवी सांसद से ये अपेक्षा की जाती है कि वे न सिर्फ स्वयं संसदीय मर्यादाओं का पालन करेंगे अपितु अन्य सदस्यों को भी इस हेतु प्रेरित करेंगे। ये देखते हुए उनके द्वारा नियम पुस्तिका को फेंकना अक्षम्य कार्य था जिसके लिए निलम्बन जैसी कार्रवाई सर्वथा उचित है। राज्यसभा के सभापति पद को देश के उपराष्ट्रपति सुशोभित करते हैं। अत: सदस्यों को उनकी संवैधानिक हैसियत का सम्मान करना चाहिए। और फिर उच्च सदन के सदस्यों का व्यवहार भी उच्च स्तर का होना चाहिए। उस दृष्टि से श्री ब्रायन ने जो कुछ किया उसके लिए उन्हें दण्डित किया जाना जरूरी था। नव निर्वाचित सदस्यों को संसदीय गरिमा का पाठ पढ़ाने के लिए वरिष्ठ सदस्यों की सेवाएँ ली जाती हैं। भविष्य में श्री ब्रायन भी वरिष्ठ होने के नाते नए सांसदों के शिक्षक बन सकते है और तब क्या वे उन्हें यही सीख देंगे कि सदन के नियमों का पालन करने की बजाय नियम पुस्तिका आसंदी की तरफ फेंकते हुए सदन से चले जाएँ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

1 comment:

  1. संसद की मर्यादा की चिंता का अभाव लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है।

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