Thursday 16 December 2021

मंत्री का त्यागपत्र : सरकार और भाजपा दोनों चूक गये



केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे पर लखीमपुर खीरी में चार किसानों को अपने वाहन से कुचलकर मार देने के मामले में विशेष जाँच दल की रिपोर्ट पर गैर इरादतन हत्या को बदलकर इरादतन हत्या का आरोप लगाये जाने के बाद मंत्री के त्यागपत्र की मांग तेज हो गई है। अभी तक तो किसान आन्दोलन में ही ये मुद्दा शामिल था लेकिन अब संसद के भीतर विपक्ष इसे लेकर आक्रामक हो चला है। खबर है श्री मिश्र को दिल्ली आने का निर्देश दिया गया है जिससे लगता है सरकार के साथ ही भाजपा का नेतृत्व उनके पद पर बने रहने से होने वाले नफे-नुकसान का हिसाब लगाकर कोई निर्णय लेने वाला है। इस विवाद के छींटे मंत्री पर न पड़े होते यदि वे घटना के बाद अपने पुत्र के बचाव में आकर ये न कहते कि वह तो घटनास्थल पर था ही नहीं। इसके बदले यदि उनके द्वारा कहा गया होता कि जो भी दोषी हो उसे दंड मिलना चाहिए चाहे वो मेरा बेटा ही क्यों न हो तो वे प्रशंसा के पात्र बन जाते। उनके पुत्र की गिरफ्तारी में भी उ.प्र पुलिस ने जो समय लगाया उससे भी मंत्री और पार्टी दोनों बदनाम हुए। इस घटना को राजनीतिक चश्मा उतारकर देखा जाना ही सही होगा। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के रूप में श्री मिश्र की जिम्मेदारी देश में कानून व्यवस्था बनाये रखने की है। लेकिन उनके अपने क्षेत्र में उनके बेटे द्वारा चार किसानों की निर्दयता पूर्वक हत्या कर देना उनके लिए दोहरी शर्म का विषय था। लेकिन उन्होंने पुत्र मोह में आकर त्यागपत्र देना तो दूर एक अपराधी का बचाव करने की हिमाकत कर डाली। कहा जाता है भाजपा नेतृत्व भी उनको मंत्रीपद से हटाने का निर्णय करने में इसलिए आगे-पीछे होता रहा क्योंकि उसे डर था कि वैसा करने से उस इलाके के ब्राह्मण मतदाता नाराज हो जायेंगे। घटना के फौरन बाद अनेक ब्राह्मण संगठनों ने मंत्री के पक्ष में पोस्टरबाजी भी की। लेकिन जब वीडियो में उनके बेटे की वहां मौजूदगी प्रमाणित हो गई जिसके द्वारा चार किसानों को कुचला गया तब उसकी गिरफ्तारी के सिवाय कोई चारा नहीं बचा था। श्री मिश्र द्वारा पद पर बने रहने का सबसे बड़ा नुकसान ये हुआ कि कुचलकर मारे गए चार किसानों की मौत के बाद आक्रोशित भीड़ ने प्रतिहिंसा में जिन चार भाजपा कार्यकर्ताओं को पीट-पीटकर मार डाला उनकी मौत पर उपेक्षा का पर्दा पड़ गया। जबकि जितना बड़ा अपराध चार किसानों की हत्या थी उतनी ही जघन्यता चार भाजपा कार्यकर्ताओं की ह्त्या में बरती गई। लेकिन किसान आन्दोलन के शोर में उन चारों की मौत पर न किसान नेता रोये और न ही भाजपा नेतृत्व उसे मुद्दा बना पाया। और इसका कारण अपने पुत्र की निर्दयता के बाद भी श्री मिश्र का पद पर बने रहने से उपजा अपराधबोध ही था। अब जबकि किसान आन्दोलन मैदानी रूप से खत्म हो चुका है और मंत्री पुत्र पर जानबूझकर हत्या की धारा भी लग चुकी है तब होना तो ये चाहिये था कि श्री मिश्र खुद आगे आकर ये कहते कि वे अदालत के फैसले तक मंत्री नहीं रहेंगे किन्तु जैसा ज्ञात हुआ है वे असंतुलित होकर अमर्यादित व्यवहार करने लगे हैं। भाजपा नेतृत्व ने उनको दिल्ली बुलाया है तो जाहिर तौर पर बात उनको मंत्री पद से हटाये जाने से ही जुड़ी हुई होगी। संसद में विपक्ष के हंगामे से भी सरकार की छवि पर आंच आ रही है। हो सकता है अभी तक विशेष जांच दल की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा हो किन्तु अब जबकि मंत्री पुत्र पर इरादतन हत्या की धारा भी लगा दी गई तब किसी असमंजस की गुंजाईश ही नहीं रही। ये बात बिलकुल सही है कि आरोप लग जाने मात्र से अपराध प्रमाणित नहीं हो जाता, जब तक न्यायालय उसकी पुष्टि करते हुए आरोपी को दण्डित न कर दे। लेकिन लोकतान्त्रिक व्यवस्था क़ानून के अलावा परम्पराओं पर भी आधारित होती है और उसमें नियमों के समानांतर नैतिकता को भी बराबर का महत्व दिया जाता है। ऐसे में श्री मिश्र को तत्काल पद त्याग देना चाहिये था क्योंकि वे जिस विभाग के राज्य मंत्री हैं उसके अंतर्गत पुलिस भी आती है और केंद्र के साथ ही राज्य में भी उन्हीं की पार्टी का शासन है। उल्लेखनीय है भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे बंगारू लक्षमण किसी से नगदी लेते कैमरे में कैद हो गये थे। ज्योंही वह वीडियो सार्वजनिक हुआ पार्टी ने उनको हटा दिया। केन्द्रीय मंत्री एम. जे. अकबर पर भी एक महिला ने बरसों पहले उनके साथ आपत्तिजनक व्यवहार का आरोप लगाया तो उनको सरकार से हटा दिया गया। यद्यपि वे बाद में निर्दोष साबित हुए। ऐसे फैसले पार्टी और सरकार के साथ ही संदर्भित व्यक्ति की छवि सुधारने में सहायक बनते हैं। उस दृष्टि से श्री मिश्र और भाजपा दोनों ने गलती कर दी। अब विपक्ष के दबाव में वे पद से हटाये जाते हैं तो भी जो नुकसान उन्हें और पार्टी को हो चुका उसकी भरपाई आसानी से नहीं हो सकेगी। किसान आन्दोलन के दबाव में प्रधानमंत्री ने तीनों कृषि कानून वापिस ले लिए और अन्य मांगें भी मंजूर कर लीं। श्री मिश्र के त्यागपत्र की मांग भी किसान नेताओं द्वारा की गई थी। हालांकि बाद में वे ठन्डे पड़ गए लेकिन अब विपक्ष ने संसद में मोर्चा सम्भाल लिया है। संसद का कामकाज भी इससे प्रभावित हो रहा है। बेहतर होगा प्रधानमंत्री और भाजपा नेतृत्व इस बारे में तुरंत निर्णय लेकर श्री मिश्र को मंत्री पद से हटायें। ऐसे मामलों में राजनीति से परे नैतिकता के आधार पर फैसले लिए जाने चहिये। पार्टी विथ डिफरेंस का दावा करने वालों से तो कम से कम ये अपेक्षा की ही जा सकती है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment