Tuesday 30 November 2021

किसानों के नये कैप्टन बनना चाह रहे अमरिंदर



प्रधानमंत्री पर अविश्वास करने वालों को उस वक्त निराशा हुई होगी जब संसद ने विवादित तीनों कृषि कानून रद्द करने के  प्रस्ताव को मंजूरी दे दी | उसके बाद से दिल्ली में जारी किसानों के धरने में शामिल 40 में से पंजाब के 32 संगठनों ने वापिस लौटने की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि जिस उद्देश्य से धरना शुरू किया गया था वह पूरा होने के बाद वहां बैठे रहने का कोई औचित्य नहीं बचा | हालाँकि संयुक्त किसान मोर्चा ने अभी तक इस बारे में अंतिम निर्णय नहीं लिया और  राकेश टिकैत धरना जारी रखने के पक्षधर हैं क्योंकि पश्चिमी उ.प्र के जाट बहुल क्षेत्रों में भाजपा को हराना उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है | धरना खत्म हो गया तो उनकी मुहिम कमजोर पड़ जायेगी | दूसरी तरफ एक बात साफ हो गई है कि पंजाब के किसान संगठन श्री टिकैत को आगे ढोने के लिए राजी नहीं हैं क्योंकि उनके राज्य में भाजपा का जनाधार बेहद कम होने से उसके विरुद्ध मोर्चा खोलना उन्हें गैरजरूरी लगता है | सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ये संगठन पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के प्रभाव में हैं जिन्होंने अपना सिरदर्द टालने के  लिए आन्दोलन  को दिल्ली भेजने की रणनीति बनाई थी | अब कैप्टन उन संगठनों से बात कर उन्हें दिल्ली से लौटकर पंजाब में चन्नी सरकार को घेरने  के लिए प्रेरित कर रहे हैं  | प्राप्त जानकारी के अनुसार वे  काफी हद तक इसके लिये तैयार भी हो गए हैं | सही बात ये है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुद्दे पर पंजाब और हरियाणा के किसान ज्यादा आंदोलित नहीं हैं क्योंकि सरकार द्वारा  की जाने वाली ज्यादातर खरीदी इन्हीं दो राज्यों से होती है | अमरिंदर ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी  आन्दोलन के दौरान किसानों पर दर्ज प्रकरण वापिस लेने के साथ ही मृतकों के परिवारों को आर्थिक सहायता देने के लिए राजी कर लिया है | दूसरी तरफ उ.प्र के साथ ही हरियाणा में जाट समुदाय के प्रमुख लोगों को श्री टिकैत की चौधराहट रास नहीं आ रही | राजनीतिक क्षेत्रों में व्याप्त सुगबुगाहट के अनुसार रालोद नेता जयंत सिंह भी नहीं चाहते कि जाटों के बीच नया शक्ति केंद्र उभरे | इसीलिये अभी तक वे श्री टिकैत की राजनीतिक टिप्पणियों पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं | बहरहाल जहां तक सवाल किसानों के आन्दोलन का है तो  तीनों कानूनों के वापिस हो जाने के बाद से धरने की धार कमजोर होने लगी है | जहां तक बात न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी बनाने की है तो इसकी मांग  न जाने कब से उठती रही है लेकिन इस हेतु दिल्ली में धरना देने की बात किसी संगठन ने कभी नहीं सोची थी | यदि केंद्र सरकार  तीन कानून न बनाती और कैप्टन ने पंजाब के किसानों को दिल्ली भेजने का प्रायोजित कार्यक्रम न बनाया होता तो बखेड़ा न बनता | ये कहना भी गलत न होगा कि किसान आन्दोलन की जो फसल पंजाब के किसान संगठनों ने तैयार की थी उसे बड़ी ही चतुराई से श्री  टिकैत  काट ले गये | यद्यपि संसद में विपक्षी दल न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैधानिक बनाने की मांग सरकार से कर रहे हैं  परन्तु विपक्ष द्वारा शासित अनेक  राज्यों  में अनाज की सरकारी खरीद ही नहीं होती तो वे किस मुंह से संसद में इस मांग को रखेंगे ? कुल मिलाकर देखा जाए तो भले ही संयुक्त किसान मोर्चा धरना जारी रखे रहे लेकिन पंजाब के किसान संगठनों ने यदि वापिसी का फैसला कर लिया तब श्री टिकैत अकेले पड़ जायेंगे | अंदर की  बात तो ये है कि अमरिंदर किसान आन्दोलन का केंद्र दिल्ली से वापिस लाकर पंजाब में  कांग्रेस सरकार की मुसीबत बढ़ाने की योजना बना रहे हैं | उनके लिए ऐसा करना जरूरी है क्योंकि विधानसभा चुनाव में कोई ऐसा बड़ा मुद्दा नहीं है जिसके बल पर वे चन्नी सरकार को घेर सकें |  लेकिन पंजाब के किसान संगठन कैप्टन द्वारा उनके आन्दोलन को जो मदद की गई उसे  भूले नहीं हैं और ऐसे में राज्य सरकार से जुड़ी  अपनी समस्याओं के लिए आन्दोलन करने के लिये वे उनके नेतृत्व में मोर्चा खोलने में संकोच नहीं करेंगे जिसके लिए उन्हें घर से दूर भी नहीं जाना पड़ेगा | ऐसा होने से अमरिंदर को भाजपा समर्थक हिन्दू मतदाताओं का समर्थन भी मिल सकेगा जो अब तक अकाली दल के खाते में जमा होता था | यही सब कारण हैं जिनकी वजह से जिस आन्दोलन में  उन्होंने हवा भरी वे उसी की हवा निकालने में जुट गये हैं | इसमें दो राय नहीं हैं कि पंजाब के किसान इस आन्दोलन को राजनीतिक मोड़ देने के पक्षधर नहीं रहे |  ऐसे में आन्दोलन को चुनावी राजनीति से जोड़ने पर किसानों के सामने ये दुविधा हो जायेगी कि वे किस दल को समर्थन दें ? किसानों के इस असमंजस को दूर करने के लिए अमरिंदर ये दांव चल रहे हैं कि किसान दिल्ली से उठकर पंजाब की चन्नी सरकार के विरोध में सड़कों पर उतरें और वे उनके नेता बनकर सामने आयें | ये सोच कितनी कारगर रहेगी ये कह पाना फ़िलहाल तो जल्दबाजी होगी लेकिन इस तीर से वे कई निशाने एक साथ साध सकेंगे | पहला तो  आन्दोलन का नेतृत्व जाटों के हाथ से छीनकर उसे सिख चेहरा देना और दूसरा प्रधानमंत्री सहित भाजपा के केन्द्रीय और प्रादेशिक नेतृत्व का विश्वास अर्जित कर लेना | बहुत कम लोग जानते होंगे कि सिख होने के बावजूद अमरिंदर और ज्योत्तिरादित्य सिंधिया के बीच रिश्तेदारी है | श्री सिंधिया की भांजी और जम्मू – कश्मीर के पूर्व महाराजा डा. कर्णसिंह की पौत्री का विवाह कैप्टेन के पौत्र से हुआ है | अमरिंदर के बहनोई कुंवर नटवर सिंह भी जो किसी ज़माने में  गांधी परिवार के दरबारी हुआ करते थे , इन दिनों उससे खफा चल रहे हैं | नवजोत सिंह सिद्धू के जाने के बाद पंजाब में भाजपा के पास कोई दमदार सिख नेता नहीं है | इस कमी को कैप्टन कितना पूरा कर सकेंगे ये तो समय ही  बताएगा किन्तु फिलहाल वे भाजपा के लिए ना मामा से काना मामा भला वाली  कहावत को चरितार्थ कर सकते हैं | भाजपा भी बड़ी ही चतुराई से जिन अमरिंदर ने किसान आन्दोलन को पंजाब से दिल्ली भेजा उन्हें ही इसे ठंडा करने के लिए इस्तेमाल कर रही है } इसीलिये ये प्रचारित किया गया कि प्रधानमन्त्री ने तीन कृषि कानून उनकी सलाह पर ही वापिस लिए | ये सम्भावना भी जताई जा रही है कि उन्हें  आगे रखकर केंद्र सरकार किसानों की कुछ और मांगें मंजूर करने जा रही है जिससे श्री टिकैत को किसी भी प्रकार का श्रेय न मिल पाए |  किसान आन्दोलन की शुरुवात राजनीतिक दांव था इसलिए उसको खत्म करवाने के लिए भी राजनीतिक दांव पेंच शुरू हो गए हैं | रोचक बात ये है कि मुकाबले की पहली चाल  अमरिंदर ने ही चली थी और आखिरी भी वे ही चलते दिख रहे हैं | फर्क केवल ये है कि पहले वे बिसात की उस तरफ बैठे थे लेकिन अब इस तरफ नजर आ रहे हैं | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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