Monday 1 November 2021

प्रदूषण की चिंता तो दैनिक जीवन का हिस्सा होना चाहिए


मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस : सम्पादकीय
-रवीन्द्र वाजपेयी

प्रदूषण की चिंता तो दैनिक जीवन का हिस्सा होना चाहिए

दीपावली पर प्रदूषण रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय बेहद सख्त है | उसने साफ़ कहा है कि प्रदूषण फ़ैलाने वाली आतिशबाजी के उपयोग की अनुमति नहीं होगी | जिन पटाकों से विषाक्त धुंआ नहीं निकलता उनके प्रयोग के बारे में बीते अनेक सालों से शासन , प्रशासन , न्यायपालिका और पर्यावरण संरक्षण में जुटे संगठन मिलकर मुहिम चला रहे हैं | चीन से आने वाले घटिया  पटाकों के आयात पर रोक भी लगाई गई | शिवाकाशी ( तमिलनाडु ) के पटाका उद्योग को इससे जबरदस्त घाटा भी हुआ है |  स्थानीय स्तर पर बननेवाली आतिशबाजी की गुणवत्ता को लेकर भी चर्चाएँ हुआ करती हैं | ओलिम्पिक सरीखे आयोजनों में जिस आतिशबाजी का उपयोग होता है वह पर्यावरण को क्षति न पहुँचाने वाली होती है किन्तु दीपावली जैसे लोक महोत्सव पर उसका उपयोग करना हर किसी के बस में नहीं है | यही वजह है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर स्थानीय प्रशासन फरमान तो जारी कर देता है किन्तु उसका अपेक्षित  असर  नहीं होता और तमाम प्रतिबंधों को धता बताते हुए गुणवत्ता विहीन पटाके धड़ल्ले से ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलाते हैं | भारत में तीज – त्यौहारों का धार्मिक महत्व होने से उनके साथ जन भावनाएं जुड़ जाती हैं | और इसीलिये  दीपावली पर पटाके फोड़ने पर  बंदिश का विरोध किया जाता है | लेकिन ये मुद्दा एक दिन तक सीमित रखने वाला नहीं है | दिवाली पर करोड़ों दीपक जलाये जाते हैं | उनमें प्रयुक्त होने वाले तेल को लेकर भी ये कहा  जा सकता है कि उनके जलने पर निकलने वाला धुंआ भी वायु प्रदूषण का कारण बनता है | बाजार में मिलावटी तेल की भरमार किसी से छिपी नहीं है | कुल मिलाकर बात  वायुमंडल को साफ़ - सुथरा रखने की है | ये विषय भारत की नहीं अपितु समूचे विश्व के लिए गहन चिंता का विषय है |  लेकिन भारत सरीखे विशाल आबादी वाले देश में जहाँ आज भी करोड़ों लोग बेघरबार होने से झुग्गियों में रहते हैं वहां  साफ़ - सफाई , पर्यावरण , वायु प्रदूषण , स्वच्छ पेयजल , शौचालय जैसे मुद्दे गौण हो जाते हैं | शहरों में जो चकाचौंध नजर आती है उसके साथ ही गंदी बस्तियों की बढ़ती संख्या किसी कलंक से कम नहीं है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता  और शौचालयों के निर्माण के अभियान  को निश्चित रूप से अकल्पनीय सफलता मिली लेकिन आज भी बहुत बड़ी आबादी खुले में शौच हेतु मजबूर है | शुद्ध पेयजल की आपूर्ति भी गम्भीर  चुनौती है | कल – कारखानों  के साथ ही वाहनों के धुंए से पर्यावरण को  होने वाले नुकसान के बारे में भी चिंताएं बढ़ती जा रही हैं | प्रदूषण रोकने वाले सरकारी महकमे इस बारे में प्रयासरत हैं लेकिन भ्रष्टाचार के चलते पर्यावरण के साथ खिलबाड़ बदस्तूर जाती है | वाहनों का प्रदूषण जांचकर उन्हें प्रमाणपत्र देने वाली प्रक्रिया पूरी तरह मजाक बनकर रह गई है | देश में इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन शुरू होने के बाद भी पेट्रोल –डीजल चलित वाहनों से आने वाले अनेक वर्षों तक मुक्ति मिलने की सम्भावना नहीं है | कोयले से  विद्युत उत्पादन पर पूरी तरह रोक लगने में भी अभी समय है | आजकल ई कचरा  भी  चिंता का बड़ा कारण बनता जा रहा है | तेजी से घट रहे वन , हिमाच्छादित पर्वतों पर ग्लेशियरों का लगातार सिकुड़ना , असीमित शहरीकरण और  सुविधाभोगी जीवनशैली के कारण प्रकृति और पर्यावरण की जो अनदेखी हुई उसकी वजह से ही पृथ्वी के नष्ट होने या जलमग्न होने जैसी कल्पनाएँ की जाने लगी हैं | बीते दो वर्ष में कोरोना के प्रकोप के दौरान जब लॉक डाउन की वजह से सब कुछ रुक गया था तब बिना किसी मानवीय या शासकीय प्रयास के ही प्रकृति और पर्यावरण अपने मूल स्वरूप में लौटने लगे थे |  गंगा बिना किसी खर्च के ही स्वच्छ होने लगी | लेकिन ज्योंही स्थितियां सामान्य हुईं त्योंही हालात पहले जैसे बदतर होते गये | ये सब देखकर लगता है कि  पर्यावरण को लेकर की जाने वाली चिंता केवल दीपावली तक सीमित न रहकर हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बनना चाहिए | दीपावली पर चलाये जाने पटाके निश्चित रूप से वायु प्रदूषण का बड़ा कारण बनते  हैं , लेकिन केवल एक दिन के लिए सर्वोच्च न्यायालय से लेकर स्थानीय प्रशासन तक जितनी  मशक्कत की जाती है उसका अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ता | बेहतर तो यही होगा कि पर्यावरण संरक्षण को भी स्वच्छता और शौचालय जैसा दैनिक जीवन का हिस्सा बनाया जाए | आम जनता को ये समझाने की जरूरत है कि प्रकृति और पर्यावरण पर होने वाला अत्याचार हमारी अपनी संतानों के लिए कितना नुकसानदेह होगा | प्रदूषण को रोकने के प्रति लोगों में जागरूकता निश्चित रूप से बढ़ी है लेकिन बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनकी ज़िन्दगी में इन सबका कोई महत्व  नहीं है | एक या कुछ दिन पर्यावरण की चिंता करने  से कुछ हासिल नहीं होता | भारतीय जीवन शैली और चिंतन धारा में प्रकृति को देवता मानकर उसकी पूजा करने का संस्कार किसी न्यायालय अथवा राजाज्ञा ने न होकर स्वप्रेरित था क्योंकि वायु , अग्नि , आकाश , कुए , तालाब , नदी , समुद्र , पर्वत , वन , वृक्ष , पशु , पक्षी , जीव – जंतु सभी को सृष्टि के व्यवस्थित संचालन में महत्वपूर्ण आवश्यकता मान उनके साथ सामंजस्य बनाकर सह अस्तित्व का जो अन्तर्निहित भाव था उसी के कारण भारत में गरीब से अमीर तक सभी पर्यावरण  को बचाने के प्रति सतर्क रहा करते थे | आज जिस जैविक खेती का ढिंढोरा पूरी दुनिया में पीटा जा रहा है वह भारत का अपढ़ किसान सदियों से जानता है | लेकिन ज्यादा पढ़े लोगों ने खेतों की भूमि को भी जहरीला बना दिया | दीपावली पर पटाकों को लेकर मचाया जाने वाला हल्ला भी विश्व पर्यावरण दिवस पर होने वाली भाषणबाजी जैसा होकर रह जाता है | सर्वोच्च न्यायालय की चिंता पूरी तरह वाजिब और जनहितकारी है लेकिन केवल फरमान जारी करने  से कुछ होता तो प्रदूषण इतना विकराल रूप नहीं लेता | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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