Thursday 11 November 2021

दिग्विजय : भाजपा के घोषित विरोधी लेकिन अघोषित मददगार



अक्सर ये सुनने मिलता है कि कांग्रेस के वरिष्ट नेता और म.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भाजपा के अघोषित मित्र हैं जो अपने बयानों से उसकी मदद  करते हैं | इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो श्री सिंह और भाजपा ही जानें क्योंकि आज की राजनीति में कौन कब किसके साथ और विरोध में है ये जान लेना बहुत कठिन है | विशेष तौर पर राजनेताओं की  वैचारिक अनुवांशिकता का  परीक्षण करना तो असंभव हो गया है | इसकी एक वजह राजनीति का विचारकों  की बजाय स्टार प्रचारकों पर निर्भर होते जाना है | नवजोत सिद्धू के पुराने और नए बयानों के वीडियो देखने से ही कविवर नीरज की ये पंक्ति याद आ जाती है कि लोग  ईमान बदलते हैं कैलेंडर की तरह | गत दिवस कांग्रेस के एक और वरिष्ट नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की पुस्तक सनराइज ओवर अयोध्या के विमोचन में उपस्थित श्री सिंह ने एक बार फिर इतिहास को आधार बनाकर विवाद खड़ा करने की कोशिश की जिसका लाभ भाजपा यदि उठाये तो आश्चर्य नहीं होगा | अपनी  आदतानुसार उन्होंने हिन्दू और हिन्दुत्व का मुद्दा उठाते हुए कहा कि हिदुत्व का हिन्दू धर्म और सनातन परम्पराओं से कोई सम्बन्ध नहीं है | ज़ाहिर है ऐसा कहकर वे भाजपा और संघ परिवार द्वारा प्रचारित हिन्दुत्व शब्द पर आपत्ति व्यक्त करना चाह रहे थे लेकिन निराधार बातें करने के आदी हो चुके इस वरिष्ट नेता ने इसके साथ ये कहकर अपने मानसिक संतुलन को सवालों  के घेरे में खड़ा कर दिया कि भारत में इस्लाम आने के पहले भी दूसरे धर्मों के मंदिर तोड़े जाते रहे | दरअसल इस बयान का उद्देश्य इतिहास के पन्नों को पलटना नहीं अपितु मुगलों के शासनकाल  में हिन्दू धर्मस्थलों को तोड़े जाने का बचाव करना था | उनकी इस टिप्पणी पर सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने ये जानकारी दी है कि जब देश रियासतों में बंटा था तब राजाओं द्वारा अपने कुलदेवताओं और पूर्वजों के मंदिर बनवाये जाते थे | दूसरे राजा द्वारा आक्रमण किये जाने पर वह उन स्मारकों को तोड़कर अपना आधिपत्य साबित करता था किन्तु जिस दौर की बात दिग्विजय सिंह कर रहे हैं उसमें भारत में जिन तीन धार्मिक धाराओं की जानकारी मिलती है वे सनातन धर्म जिसे प्रचलित भाषा में हिन्दू कहा जाता है के अलावा जैन और बौद्ध ही थे | इनके बीच वैचारिक मतभेद भले रहे लेकिन एक दूसरे के धर्मस्थल ध्वस्त करने की बात शायद ही कहीं उल्लिखित हो | आजादी के बाद वोट बैंक की राजनीति ने  अल्पसंख्यक की श्रेणी में जैन ,  बौद्ध और सिख  भी जोड़ दिए वरना उसके पूर्व इनको एक ही माना जाता था जो  सांस्कृतिक पहिचान पर आधारित था | बहरहाल श्री सिंह का ये कहना कि हिन्दुत्व का हिन्दू धर्म और सनातन परम्पराओं से कोई सम्बन्ध नहीं है , सिवाय भटकाव  पैदा करने के और कुछ भी नहीं है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय सहित अनेक धर्माचार्य तक ये कह चुके हैं कि हिन्दुत्व जीवन शैली है जिसे कोई भी अपना सकता है | जहाँ तक बात हिन्दू की है तो खुद को हिन्दू बताने वाले दिग्विजय सिंह को ये मालूम होना चाहिए कि हिन्दू धर्म न होकर राष्ट्रीयता को संबोधित करने वाला शब्द है और धर्म के लिए सनातन शब्द का उपयोग इसलिए होता है क्योंकि इसकी उत्पत्ति का समय कोई नहीं जानता | जिस वैदिक ज्ञान पर हिन्दुत्व आधारित है उसमें भी हिन्दू शब्द कहीं नहीं है | सनातन धर्मी हिन्दुओं के मन में  मानव रूप में अवतरित हुए  भगवान राम और श्रीकृष्ण  के प्रति अगाध श्रृद्धा है लेकिन उनके किसी भी कथन में हिन्दू शब्द नहीं है | गीता और रामायण  में भी हिन्दू धर्म जैसा कुछ भी पढ़ने नहीं मिलता | ये देखते हुए श्री सिंह द्वारा हिन्दू धर्म जैसी बात कहना उनके अज्ञान न सही किन्तु अल्पज्ञान को अवश्य दर्शाता है | लेकिन ये कहना कि इस्लाम के आने के पहले भी  दूसरे धर्म के मंदिर तोड़े जाते थे ,  उस राजनीतिक सोच का ताजा प्रमाण है जो हताशा और कुंठा से उपजी है | कुछ लोगों का ये मानना है कि दिग्विजय सिंह को चूँकि साध्वी उमा भारती के हाथों पराजित होने से म.प्र की सत्ता गंवानी पड़ी  इसलिए वे हिन्दू और हिंदुत्व को लेकर आलोचनात्मक  टिप्पणियाँ करने लगे | रही – सही कसर पूरी कर दी 2019 के लोकसभा चुनाव ने जब भोपाल सीट पर वे एक और साध्वी प्रज्ञा से बुरी तरह हारे | हालाँकि हिन्दू , हिन्दुत्व और आतंकवाद के बारे में उनकी बातों से कांग्रेस भी पल्ला झाड़ती रही है | वैसे 2003 में म.प्र की सत्ता छिन  जाने के बाद श्री सिंह के अनुज लक्ष्मण सिंह  सोनिया गांधी के विदेशी मूल का विवाद खड़ा करते हुए भाजपा में घुस आये थे और राजगढ़ से लोकसभा चुनाव भी जीते | बाद में फिर कांग्रेस में आकर वर्तमान में विधायक बने हुए हैं | लेकिन श्री सिंह ने कभी भी  छोटे भाई की  भाजपा में जाने पर आलोचना नहीं की जिससे लगता है हिन्दू और  हिन्दुत्व को लेकर की जाने वाली उनकी बयानबाजी चर्चाओं में बने रहने का प्रयास मात्र है  और ऐसा करते हुए वे अप्रत्यक्ष तौर पर रास्वसंघ तथा भाजपा की मदद ही करते हैं | इस्लाम के आगमन के पहले भी भारत में दूसरे धर्मों के मंदिर तोड़े जाने की बात कहने के पीछे उनका उद्देश्य अतीत में हिन्दुओं के धर्मस्थानों को खंडित करने के आरोप से मुग़ल शासकों  को बरी करना भले रहा हो लेकिन सलमान खुर्शीद की पुस्तक के विमोचन के अवसर पर अनावश्यक और  अप्रासंगिक बात कहकर उन्होंने एक बार फिर ये सिद्ध कर   दिया है कि उम्र का असर कुछ लोगों के शरीर के साथ ही दिमाग पर भी हो जाता है | हालांकि ये भी कह सकते हैं कि श्री सिंह ने सलमान खुर्शीद को खुश करने की कोशिश की हो जिन्होंने अपनी  संदर्भित पुस्तक में इस बात पर अफ़सोस जताया है कि कांग्रेस में एक तबका पार्टी की अल्पसंख्यक समर्थक छवि बन जाने से चिंतित होकर नेतृत्व की जनेउधारी ( राहुल गांधी ) पहिचान की वकालत करता है | दिग्विजय सिंह के ताजा विवादित बयान से न सिर्फ उनमें अपितु कांग्रेस में शीर्ष स्तर पर आ रही विचारशून्यता उजागर हो रही है | ऐसे समय जब उ.प्र जैसे राज्य में जहाँ राम जन्मभूमि के बाद मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के अलावा वाराणसी  के विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा गरमाया हुआ हो तब श्री सिंह द्वारा इस्लाम के आने के पहले भी मंदिरों को ध्वस्त किये जैसा बयान देकर पार्टी के लिये मुसीबतें खडी करना उनके भाजपा के मददगार होने की बात को बल प्रदान करता है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment