Wednesday 10 November 2021

आग लगने के बाद याद आया कि फायर ऑडिट भी कोई चीज है



म.प्र की राजधानी भोपाल में एम्स की शाखा खुलने से पहले हमीदिया मेडिकल कालेज का अस्पताल ही सबसे बड़ा और अच्छा माना जाता था | आजकल तो मंत्री  से लेकर संतरी तक निजी अस्पतालों में इलाज करवाने लगे हैं | लेकिन पहले  आम और ख़ास सभी हमीदिया की शरण में ही जाते थे | भोपाल से लगे जिलों के मरीजों के लिए भी ये चिकित्सालय ही मददगार हुआ करता था | यहाँ कार्यरत चिकित्सकों की निजी प्रैक्टिस भी हमीदिया का नाम जुड़ा होने से खूब चला करती थी | लेकिन धीरे – धीरे इस अस्पताल की प्रतिष्ठा पर अव्यवस्था और बदनामी की गर्द जमने लगी और गाहे – बगाहे होने वाले हादसे नियमित होने लगे | अस्पताल का भवन , उस पर होने वाला खर्च , कर्मचारियों और चिकित्सकों का वेतन तथा उपकरणों आदि के मामले में ये  अभी भी काफी अच्छा है लेकिन अन्य उपक्रमों की तरह यहाँ भी वही सब होने लगा जिसके लिए शासकीय व्यवस्था कुख्यात है | बीते सोमवार की रात इस अस्पताल के शिशु रोग विभाग के 8 साल पुराने वेंटीलेटर में लगी आग पूरे वार्ड में फ़ैल गई जिसमें अनेक बच्चे जलकर जान गँवा बैठे | मौतों का वास्तविक वास्तविक आँकड़ा 12 तक पहुंच चुका है लेकिन सरकारी सूत्र अभी भी 4 पर ही अटके हुए हैं | आग लगने के जो कारण बताये जा रहे हैं वे इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्रदेश की राजधानी का वीआईपी सरकारी अस्पताल भी किस तरह अव्यवस्था का शिकार है | वेंटीलेटर को सामान्य एक्स्टेंशन से जोड़कर चलाये जाने की वजह से ये हादसा होना बताया जा रहा है जबकि इसके लिए पहले से आगाह किया जा चुका था | वेंटीलेटर का उपयोग असामान्य स्थिति में किया जाता है | उसके लिए हर बिस्तर के पीछे पृथक विद्युत बोर्ड होते हैं | लेकिन राजधानी के इस सबसे बड़े अस्पताल में बेहद संवेदनशील जीवन रक्षक उपकरण के लिए विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था बेहद घटिया और कामचलाऊ होना इस बात का परिचायक है कि शासकीय महकमों में किस  हद तक लापरवाही है | मृतकों की संख्या यदि एक होती तब भी अपराध उतना ही संगीन माना जाता | मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस घटना के बाद प्रदेश भर के सरकारी और निजी अस्पतालों का फायर ऑडिट करवाने के निर्देश दिए हैं | जिस पर वरिष्ठ अधिकारियों ने सरकारी अस्पतालों की  अग्नि शमन व्यवस्था का निरीक्षण भी शुरू कर दिया है | निजी अस्पतालों में भी जांच आदि का कर्मकांड होगा | रिपोर्ट बनेगी , दो चार निपटेंगे और कुछ समय बाद जैसे थे की स्थिति लौट आयेगी | प्रदेश के चिकित्सा मंत्री भोपाल के ही निवासी हैं | उन्होंने भी मौके पर जाकर मुआयना करने के उपरान्त वही घिसे - पिटे आश्वासन दे डाले | लेकिन अब तक किसी अधिकारी और मंत्री ने जिम्मेदारी लेने  या पश्चताप करने का कष्ट नहीं उठाया जिससे ये स्पष्ट है कि वे कितने भावनाशून्य  हैं | हमारे देश में इस तरह के हादसों को महज अग्निकांड मानकर चला जाता है | दिल्ली  के उपहार सिनेमा गृह में 1997 के मई माह में हुए अग्निकांड में 59 लोग मारे गये थे |  उसके दो संचालकों को कुछ  रोज पहले ही सात – सात साल की सजा सुनाई गयी है | इसमें देखने वाली बात ये है कि ये फैसला दिल्ली की अदालत का है जिसके विरुद्ध अपील की जा सकती है | 24 साल में दंड प्रक्रिया का  इस पड़ाव तक पहुँच पाना अपने आप में काफी कुछ कहता है | ये भी तब हुआ जब  हादसे में मारे गये लोगों के परिजनों ने संगठित होकर लम्बी लड़ाई लड़ी | देश की राजधानी  होने के कारण उक्त कांड को काफी प्रचार मिला वरना वह दबकर रह जाता | म.प्र के मुख्यमंत्री ने अस्पतालों का फायर ऑडिट करवाने की जो बात कही वह भी  मूलभूत आवश्यकता है | यदि हमीदिया सहित प्रदेश के सरकारी और निजी अस्पतालों में उसका पालन नहीं हो रहा था तब उसके लिए जिम्मेदार कौन सा विभाग और अधिकारी हैं इसका खुलासा भी लगे हाथ हो जाना चाहिए | चिकित्सा अब सेवा नहीं रही और सरकारी नियन्त्रण से निकलकर  विशुद्ध व्यवसाय बन गई है | निजी क्षेत्र के आने से तो वह उद्योग की शक्ल ले चुकी  है | ऐसे में प्रदेश की राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के शिशु रोग विभाग में पुराना वेंटीलेटर चलाने के लिए विद्युत आपूर्ति का काम चलाऊ इन्तजाम आपराधिक उदासीनता नहीं तो और क्या थी ? वहां तैनात स्टाफ के अतिरिक्त जो चिकित्सक मरीजों को देखने आते रहे उनमें से किसी को वह अव्यवस्था  दिखी  नहीं अथवा देखकर भी अनदेखी कर दी गयी इस सवाल का जवाब शायद ही कभी मिल सकेगा |  ऐसे हादसों के लिए बलि के बकरे तलाशने की परिपाटी त्यागकर व्यवस्था को सुधारने पर ध्यान दिया जाना जरूरी है | मुख्यमंत्री के निर्देश पर अग्नि शमन व्यवस्था की जांच को लेकर दिखाई जाने वाली  सक्रियता कितने दिन रहेगी ये कहना कठिन है क्योंकि सरकारी अमला यदि अपने दायित्व के प्रति सतर्क होता तो ये घटना होती ही नहीं | ये समस्या केवल अस्पतालों की ही नहीं अपितु बहुमंजिला आवासीय टावर्स , बड़े होटल  और शापिंग मॉल्स से भी सम्बंधित है , जिनमें लगे अग्नि शमन उपकरणों की समय – समय पर जाँच के बारे में जबरदस्त लापरवाही बरती जाती है | कुछ समय पहले भोपाल स्थित सचिवालय में मुख्यमंत्री की लिफ्ट फंस जाने के बाद बिना देर लगाये जिम्मेदार लोगों पर गाज गिरी थी | लेकिन हमीदिया हादसे में अब तक कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ | जाँच के बाद सच्चाई सामने आने की जो उम्मीद की जाती है वह अधिकतर  पूरी नहीं होती | और फिर उसके लम्बे चलने से अपराधी अपने बचाव का इंतजाम कर ले जाते हैं | राजनीति और सत्ता प्रतिष्ठान भी अपने कृपा पात्र दोषियों को बचाने में कोई संकोच नहीं करते | लेकिन असल सवाल गलतियों से सबक लेकर अव्यवस्था को दूर  करना है जिसकी ओर ध्यान  नहीं दिए जाने से इस तरह की दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है | ऐसी घटनाओं पर दुःख व्यक्त करना आम बात है लेकिन पूरी सरकार को इसके लिए सार्वजनिक क्षमा याचना करना चाहिए | जिम्मेदार मंत्री में  यदि रत्ती भर भी नैतिकता है तब उनको घटना के बाद इस्तीफ़ा देना चाहिए था क्योंकि जब किसी उपलब्धि पर श्रेय लेने की बारी आती है तब ये तबका आगे – आगे होता है लेकिन विफलता का दोष किसी और पर डालकर दूर बैठ जाता  है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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