Thursday 4 November 2021

श्रम रूपी साधना से अर्जित समृद्धि ही सार्थक होती है



दो वर्ष बाद दीपावली की रौनक लौटी है। बाजारों में उमड़े जनसैलाब से पता चलता है कि लोगों में व्याप्त भय उत्साह में बदल चुका है। हालाँकि बीते साल भी दीपावली मनाई गई थी किन्तु हर व्यक्ति डरा और सहमा हुआ था। महामारी से बचने के लिए टीके का इंतजार हो ही रहा था कि देश ने दूसरी लहर का दर्दनाक मंजर देखा। लाखों लोगों की मौत ने हर मन में दहशत भर दी। मार्च से शुरू हुआ वह दौर जून तक चला। लेकिन उसके बाद हालात धीरे-धीरे सुधरते गये। हालाँकि तीसरी लहर की आशंका अभी भी बनी हुई है क्योंकि दुनिया के अनेक देशों में कोरोना की वापिसी के साथ ही उसके बदले हुए रूप सामने आने लगे हैं। लेकिन भारत तमाम आशंकाओं के मानसिक दबाव से उबरकर दीपावली की उमंग में शामिल है तो उसका सबसे बड़ा कारण वह आत्मविश्वास है जो किसी देश की उन्नति के लिए प्राथमिक आवश्यकता है। दीपावली भारतीय पर्व-परम्परा का चरमोत्कर्ष है। नई फसल के बाद भावी आर्थिक नियोजन की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। बीता साल इस दृष्टि से बेहद तनाव और अनिश्चितता से भरा रहा। लेकिन इस दीपावली पर देश का चिर-परिचित उत्साह लौटता दिख रहा है। कृषि क्षेत्र से अच्छी खबरें आने के साथ ही उद्योग जगत ने भी कमर कस ली है। उपभोक्ता बाजार में बढ़ती मांग के अनुरूप उत्पादन का आंकड़ा भी ऊपर की ओर है। व्यापारी समुदाय के चेहरों पर भी मुस्कराहट देखी जा सकती है। निर्यात में आशातीत वृद्धि से उज्जवल भविष्य की उम्मीदें साकार होने लगी हैं। इसका असर रोजगार पर भी पड़ रहा है। आगामी कुछ सालों में नई नौकरियां आने के संकेत मिलने लगे हैं। आर्थिक स्थिति में सुधार का सबसे बड़ा पैमाना है करों से होने वाली आय। उस दृष्टि से देखें तो जीएसटी और आयकर आदि में उत्तरोत्तर वृद्धि परिलक्षित हो रही है। कोरोना काल में आर्थिक संकट के बावजूद भी राजमार्गों और रेलवे के ढांचे में जबरदस्त सुधार होने के बाद उड्डयन के क्षेत्र में भी आश्चर्यजनक प्रगति देखने मिल रही है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं की कमी का जो अनुभव हुआ उसके बाद से सरकारी और निजी क्षेत्र ने इस दिशा में सुधार की तरफ कदम बढ़ाये हैं। टीकाकरण के बड़े अभियान के सफल होने से भी आम जनता का आत्मविश्वास बढ़ा है। रेलों, बसों और हवाई जहाजों में यात्रियों की बढ़ती भीड़ अपने आप में काफी कुछ कह रही है। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि देश एक अभूतपूर्व संकट पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। लेकिन आने वाला समय भी चुनौतियों से भरा हुआ है क्योंकि वैश्विक समीकरण नए सांचे में ढलने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। भारत ने बीते दो वर्ष में जिस धैर्य, साहस और नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया उसकी वजह से पूरी दुनिया प्रभावित है। एक विश्वसनीय देश के तौर पर हमारी प्रतिष्ठा कायम होने से विदेशी पूंजी का प्रवाह चरमोत्कर्ष पर है। रक्षा उपकरणों के सबसे बड़े खरीददार के अलावा अब हम उनका निर्यात करने की स्थिति में  हैं। सीमाओं की सुरक्षा के प्रति भारत की तैयारियां सर्वकालीन बेहतर नजर आ रही हैं। पर्याप्त साजो-सामान की उपलब्धता के अलावा राजनीतिक नेतृत्व के खुले समर्थन से सेना का मनोबल भी ऊंचा है। ज्ञान-विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में हमारी युवा पीढ़ी अपने पुरुषार्थ को वैश्विक स्तर पर प्रमाणित कर रही है। कोरोना काल के बाद का भारत एक स्वस्थ, समृद्ध और शक्तिशाली देश के तौर पर उभर रहा है। लेकिन आज भी गरीबी, बेरोजगारी, बेघरबारी, कुपोषण, अशिक्षा जैसी समस्याओं की उपस्थिति बनी हुई है जिनका निराकरण किये बिना बाकी उपलब्धियों पर सवालिया चिन्ह लगते रहेंगे। ऐसे में जरूरी है कि सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास जैसे नारे को पूर्णता प्रदान करते हुए भारत को सभी क्षेत्रों में एक अग्रणी राष्ट्र बनाने के अनुष्ठान में हर किसी की सहभागिता हो। 80 करोड़ लोगों को मुफ्त या सस्ता राशन देने की योजना सरकार की संवेदनशीलता और दायित्वबोध का बेहतरीन उदाहरण तो है, लेकिन ये शर्म का विषय भी है। किसी देश की इतनी बड़ी आबादी के पास पेट भरने का साधन न होना निश्चित रूप से आर्थिक प्रगति को झुठलाने का ठोस कारण है। ये सवाल भी अपनी जगह सही है कि ये मुफ्तखोरी कब तक जारी रहेगी क्योंकि इसके कारण करोड़ों लोग निठल्ले बैठे हैं। इस मानव संसाधन का समुचित उपयोग करना उनके और देश दोनों के हित में होगा। इससे जुड़ा एक मसला ये भी है कि ईमानदार करदाताओं में इस कारण व्यवस्था के प्रति वितृष्णा जन्म ले रही है। आर्थिक नियोजन से जुड़े लोगों को इस दिशा में गंभीरता के साथ दूरगामी उपाय करना चाहिए। जिससे विशाल मानव संपदा का लाभ देश के सर्वतोमुखी विकास हेतु लिया जा सके। दीपावली पर हर्षोल्लास के माहौल में हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि लक्ष्मी रूपी सम्पन्नता केवल आराधना से नहीं अपितु श्रम रूपी साधना से प्राप्त होती है। बेईमानी और छल-छद्म से अर्जित धन - संपत्ति से इन्सान अपने लिए भले ही भौतिक सुखों की व्यवस्था कर ले किन्तु ऐसा करने वाले अपनी संतानों को संस्कार देने में असफल रहते हैं। हमारे देश के नेताओं और नौकरशाहों को जिस दिन ये बात समझ में आ जायेगी उस दिन सही मायनों में अच्छे दिन आ जायेंगे।
दीपावली पर आप सभी को सुख, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य हेतु अनन्त मंगल कामनाएँ।

रवीन्द्र वाजपेयी

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