Thursday 25 November 2021

सिद्धू कांग्रेस के लिए जी का जंजाल साबित हो रहे



 आगामी वर्ष फरवरी में जिन पांच राज्यों में  विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें पंजाब भी है | 2017 में वहां कांग्रेस को अच्छा खासा बहुमत मिला था | सरकार भी ठीक - ठाक चली  लेकिन अचानक नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टेन अमरिंदर सिंह का निजी झगड़ा इतना बढ़ गया कि मुख्यमंत्री बदलने की नौबत आ गयी | नवजोत ने जो बिसात बिछाई थी उसका मकसद खुद मुख्यमंत्री  बनना था किन्तु दो की लड़ाई में तीसरे के फायदे वाली कहावत चरितार्थ हो गयी और चरणजीत सिंह चन्नी को अमरिंदर की जगह बिठा दिया गया | शुरुवाती दौर में तो वे नवजोत के विश्वासपात्र लगे लेकिन कुछ दिनों के भीतर ही उन्होंने श्री सिद्धू के शिकंजे  से खुद को आजाद कर लिया | उनके इस कदम को कांग्रेस आलाकमान का समर्थन भी प्राप्त हुआ  जो चाहकर भी नवजोत की हरकतों को नियन्त्रित करने में असफल साबित हुआ है | प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बैठे नवजोत आये  दिन उनको जिस तरह से बौना बताकर अपमानित करने में जुटे हैं उसकी वजह से पार्टी नेतृत्व मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने का साहस नहीं कर पा रहा |  ये कहने में कुछ भी गलत न होगा कि श्री चन्नी की जितनी आलोचना पूरा विपक्ष मिलकर करता है उससे  कहीं ज्यादा सार्वजनिक रूप से श्री सिद्धू कर देते हैं | बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनको अपनी बातें मुख्यमंत्री से निजी तौर पर कहना चाहिए | लेकिन वे अपनी सभाओं में मुख्यमंत्री से नई – नई मांगें करने के अलावा उनके अनेक फैसलों की तीखी  आलोचना कर कांग्रेस के लिए शोचनीय स्थित उत्पन्न कर रहे हैं | हालाँकि  ये हरकत विपक्ष को भी रास आ रही हैं क्योंकि वे उनका काम आसान जो कर  रहे हैं | आम आदमी पार्टी का प्रचार करने पंजाब आये  दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविदं केजरीवाल ने तो श्री सिद्धू को साहसिक बताते हुए उनकी प्रशंसा तक कर डाली | यदि पार्टी हाईकमान नवजोत की हरकतों पर समय रहते लगाम लगा लेता तब शायद पंजाब में कांग्रेस के सामने इस तरह के हालात उत्पन्न न होते जिसमें  घर को आग लग गई घर के चिराग से वाली कहावत चरितार्थ हो  रही है | नवजोत की वाकपटुता बेशक उनको लोकप्रिय बनाती रही है | सार्वजनिक मंचों से वे श्रोताओं को आकर्षित भी करते हैं | लेकिन अपने अस्थिर  और मेरी मुर्गे की डेढ़ टांग वाले स्वभाव के कारण आलोचना  और मजाक का पात्र भी बनते रहे हैं | क्रिकेट में नाम कमाने के बाद वे तब चर्चा में आये जब  हत्या के एक मामले  में आरोपी बने | उनका सार्वजनिक जीवन अमृतसर से भाजपा   सांसद के रूप में शुरू हुआ किन्तु 2014 में टिकिट नहीं  मिलने के बाद राज्यसभा में मनोनयन के बावजूद वे  भाजपा छोड़ कांग्रेस की गोद में आ बैठे और उसके बाद जिस गांधी परिवार के विरुद्ध बेहद तीखी टिप्पणियाँ किया करते थे उसी का अभिनंदन पत्र पढ़ने  लगे | हालाँकि भाजपा  से उनकी निकासी के पीछे अकाली दल का सर्वेसर्वा बादल परिवार रहा , परन्तु   अमरिंदर मंत्रीमंडल के सदस्य बनने के बाद उनकी कैप्टेन से भी नहीं पटी जिसका परिणाम पंजाब में हुआ सत्ता परिवर्तन है | हाल ही में नवजोत एक बार फिर आलोचना के घेरे में आ गये जब गुरुनानक जयन्ती पर भारतीय सीमा से कुछ  दूर पाकिस्तान स्थित ननकाना साहेब गुरूद्वारे की यात्रा के दौरान उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान को बड़ा भाई बताते हुए उनके प्रति प्रेम व्यक्त किया | उनकी इस टिप्पणी पर कांग्रेस के भीतर ही बवाल मच गया | सांसद मनीष तिवारी सहित अनेक नेताओं ने इसे देशहित के विरुद्ध बताते हुए उनकी कड़ी आलोचना की | स्मरणीय है इमरान के शपथ ग्रहण में बतौर अतिथि गये नवजोत के   सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा से गले मिलने पर भी  उनकी जबरदस्त  निंदा हुई थी | पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका संगठन और सत्ता में समन्वय स्थापित करने की होनी चाहिए किन्तु वे खुद मुख्यमंत्री के विरुद्ध खुले आम मोर्चा खोलकर अपनी ही सरकार के लिए मुसीबत पैदा करने में लगे हैं | न जाने क्यों गांधी परिवार उनकी हरकतों को सहन कर रहा है | पंजाब में अमरिंदर सिंह के नई पार्टी बनाने का सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही होगा | लेकिन नवजोत के मोह में उसने अपने अनुभवी और जनाधार वाले नेता को पार्टी छोड़ने मजबूर कर दिया | ऐसा कहा जाता है कि नवजोत को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के पीछे उनका बचकाना आचरण ही रहा | इस वजह से वे और आहत हो उठे और प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के साथ ही मनमाफिक नियुक्तियों के लिए अड़ गये | बावजूद इसके पार्टी उनके नखरे सहन करती आ रही है तो उसके पीछे कोई न कोई रहस्य तो है | पंजाब में इस बार चतुष्कोणीय मुकाबला होगा | कांग्रेस को आम आदमी पार्टी और  अकाली – बसपा के अलावा अमरिंदर – भाजपा गठबंधन से टकराना होगा | नए मुख्यमंत्री श्री चन्नी की जनता के बीच अमरिंदर जैसी पकड़  नहीं है और  बची – खुची फजीहत श्री सिद्धू किये दे रहे हैं | ऐसे में पंजाब जहाँ कांग्रेस  ने पिछले चुनाव में रिकॉर्ड सफलता  हासिल की थी इस बार अपने घर की कलह से ही परेशान है | नवजोत सिद्धू नादाँ की दोस्ती जी का जंजाल साबित होते लग रहे हैं | उनकी गैर जिम्मेदाराना हरकतों से किसान  आन्दोलन खड़ा करने के बावजूद कांग्रेस मुकाबले से पहले ही बाहर हो जाये तो आश्चर्य नहीं होगा | नवजोत को न जाने ये बात कब समझ में आयेगी कि राजनीति और कामेडी शो में अंतर होता है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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