Wednesday 17 November 2021

अजीब विरोधाभास : रिकार्ड अन्न उत्पादन के बाद भुखमरी



भारत  में भोजन के लिए भिक्षा मांगने वाले हर जगह दिख जाते हैं |  हाल ही में वैश्विक भुखमरी सूचकांक – 2021 में  खुलासा हुआ कि 116 देशों की सूची में भारत एक वर्ष के भीतर 91 वें से लुढ़क कर 116 वें स्थान पर आ गया , जो पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी नीचे  है | सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए ये शर्मिन्दगी का विषय है | इसीलिये सर्वोच्च न्यायालय ने गत दिवस  केंद्र सरकार को  भूख से मर रहे लोगों को बचाने के लिए योजना न बनाने के लिए लताड़ते हुए कह दिया कि जल्द ऐसा न होने पर वह स्वतः संज्ञान लेकर आदेश पारित कर देगा | पेट भरने में असमर्थ लोगों की मदद के लिए सामुदायिक रसोई  सुविधा  प्रारम्भ करने की मांग करने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने उक्त आदेश दिया | न्यायालय की पीड़ा बिल्कुल  सही है | किसी भी कल्याणकारी राज्य में एक भी व्यक्ति भूख से मर जाए तो इससे बड़ी शर्म की बात दूसरी नहीं हो सकती | लेकिन सवाल ये है कि लोग भूखे क्यों हैं ? पूरे कोरोना काल में 80 करोड़ लोगों को सरकार ने मुफ्त अनाज प्रदान किया | आगामी 30 नवम्बर से मुफ्त वितरण तो बंद हो जायेगा किन्तु सस्ते अनाज की राशन व्यवस्था पूर्ववत जारी रहेगी | ऐसे में वे  परिस्थितियां विचारणीय हैं जो  भुखमरी का कारण हैं | पाकिस्तान और बांगला देश से भी बदतर स्थिति वाले सर्वेक्षण को भले ही अविश्वसनीय मान लिया जाए लेकिन ये तो सच है कि भारत में करोड़ों लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है | इसकी  मुख्य वजह बेरोजगारी ही है जो कोरोना काल में सर्वोच्च स्तर पर जा पहुंची | ये बात सही है कि पेट भरने के लिए इन्सान के पास पैसे और पैसों के लिए काम होना चाहिए |  इसी के साथ ही जनसँख्या नियन्त्रण प्राथमिक आवश्यकता है किन्तु  इस बारे में सरकारी स्तर पर उदासीनता नजर आने लगी है | दुष्परिणाम ये हुआ कि सुशिक्षित और संपन्न वर्ग में तो परिवार नियोजन अपना लिया गया लेकिन गरीब तबके की जनसंख्या वृद्धि लगातार जारी है | कुछ समुदायों ने धर्म के नाम पर परिवार नियोजन को अपनाने से इंकार कर दिया | जनसँख्या में सबसे आगे चीन में जब  साम्यवादी व्यवस्था आई तब वह आर्थिक तौर पर भारत से भी पीछे था लेकिन आज ही ये जानकारी आई कि वह अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे धनी देश बन गया | ये चमत्कार रातों - रात नहीं हुआ | बल्कि अपनी विशाल जनसंख्या को बिठाकर मुफ्त में खिलाने के बजाय उसने हर व्यक्ति को कार्य करने  हेतु मजबूर कर दिया | परिणाम ये निकला कि देखते ही देखते वह उत्पादक देश बनने लगा जिसने न्यूनतम वेतन की बजाय अधिकतम काम पर बल दिया और  बच्चे पैदा करने के लिये भी सरकार से अनुमति लेने जैसी  व्यवस्था लागू की | हमारे देश में श्रमिक संगठनों ने कभी कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने की जरूरत नहीं समझी जबकि चीन में आन्दोलन , हड़ताल या वेतन जैसी मांग करने का अधिकार ही नहीं दिया गया | कौन  व्यक्ति क्या  काम करेगा ये सरकार तय करती है | श्रम करने में सक्षम किसी भी व्यक्ति को बिना काम किये बैठने नहीं दिया जाता | अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन दुनिया भर के लिए नियम - कायदे बनाता है किन्तु  चीन ने उनको लागू किया या नहीं उसकी जांच वह भी नहीं कर सकता | भारत में स्थिति इसके ठीक विपरीत है | हमारे देश में अधिकारों के लिए तो खूब आवाज उठती है लेकिन कर्तव्यों का निर्वहन प्राथमिकताओं से परे है | गरीबी और भुखमरी का सबसे बड़ा कारण कामचोरी है जिसे मुफ्तखोरी ने बढ़ावा दिया | सर्वोच्च न्यायालय द्वारा  भुखमरी के शिकार लोगों की चिंता करना हर दृष्टि से सही है किन्तु भुखमरी  दूर करने के लिए लोगों को मुफ्त खिलाने की बजाय काम की अनिवार्यता बेहतर विकल्प होगा | इसे विडंबना ही  कहा जाएगा  कि एक तरफ तो बेरोजगारी का आंकड़ा  सर्वकालीन उच्च स्तर पर  है लेकिन दूसरी तरफ हर क्षेत्र में काम करने वालों का अभाव है |  आज जरूरत है कि श्रम को भी मांग और पूर्ति से जोड़ा जाए | सर्वोच्च न्यायालय की मंशा पूरी तरह मानवीय है लेकिन जिस तरह मध्यान्ह आहार के बावजूद शालाओं में गरीब घरों के बच्चों के शैक्षणिक स्तर में अपेक्षित सुधार होने की बजाय भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला वैसी ही अव्यवस्था सामुदायिक रसोई में होने की आशंका से इंकार नहीं जा सकता | भारत में कृषि क्षेत्र रोजगार प्रदान करने का सबसे बड़ा जरिया  है किन्तु उसमें  भी श्रमिकों के अभाव का रोना सुनाई देता है | निर्माण क्षेत्र में इन दिनों जबरदस्त कार्य हो रहा है जहां करोड़ों श्रमिकों को रोज काम मिल सकता है | फिर भी  श्रमिकों के अभाव में बड़े – बड़े प्रोजेक्ट विलम्ब से पूरे होते हैं | मध्यमवर्गीय परिवारों के जीवन स्तर में सुधार के कारण घरेलू काम के लिए कर्मचारियों की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है लेकिन जिसे देखो ये शिकायत करता मिल जायेगा कि उसे काम वाले नहीं मिल रहे | भूख निश्चित तौर पर बड़ी समस्या है | दूसरी तरफ देश में खाद्यान्न का उत्पादन साल दर साल बढ़ता जा रहा है | सरकार सार्वजानिक वितरण प्रणाली के लिए अरबों – खरबों रु. का अन्न खरीदकर भंडारण करती है | एक और दो रूपये में गेंहू - चावल करोड़ों लोगों को दिये जाते हैं | वृद्धावस्था और निराश्रित पेंशन भी मिल रही है | ऐसे में भूखा वही रह सकता है जो पूरी तरह से निकम्मा या अपाहिज हो | इसलिए  ये भी जरूरी है कि हर किसी को इस बात के लिए प्रेरित किया जावे कि वह कुछ न कुछ करे जिससे उसका भरण – पोषण हो सके | हालाँकि इस सुझाव को जनविरोधी कहने वाले भी कम नहीं होंगे  लेकिन कोई भी देश करोड़ों लोगों को मुफ्त में खिलाता रहे तो वह कभी विकास नहीं कर  सकेगा | खाद्य सुरक्षा बेशक सरकार की जिम्मेदारी है किन्तु सबकी भूख मिटाने के इंतजाम का दुष्परिणाम नए भूखों के रूप में सामने आये बिना नहीं रहेगा | सार्वजानिक रसोई अवश्य बने और जरूरतमंदों को सस्ता अनाज और भोजन मिले इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चहिये किन्तु इस समस्या का स्थायी हल आज नहीं तो कल तलाशना ही पड़ेगा | सरकारी अनुदान से जनता की भलाई बहुत जरूरी और अच्छी बात है लेकिन तालाब  के किनारे बैठे लोगों को मुफ्त में मछली बांटकर निकम्मा बनाने के बजाय उन्हें मछली पकड़कर पेट भरने के लिए प्रेरित करना ही उपयुक्त तरीका है | अपने देश के महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस की उक्त शिक्षा से  प्रेरणा लेकर चीन ने अपनी विशाल जनसंख्या को मानव संसाधन में बदलकर जो कमाल किया वही भारत को भी करना पड़ेगा | वरना एक तरफ प्रगति के आंकडे चमकेंगे और दूसरी तरफ भुखमरी के | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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