Tuesday 2 November 2021

अर्थव्यवस्था सुधार पर तो पेट्रोल – डीजल के दाम क्यों बढ़ रहे



धनतेरस से दीपावली पर्व का शुभारम्भ हो जाता है |   आरोग्य के अधिष्ठाता भगवान धन्वन्तरि की जयंती के साथ ही ये विश्व का सबसे बड़ा व्यापार मेला है जिसका आयोजन राष्ट्रव्यापी होता है | मामूली आर्थिक हैसियत वाला व्यक्ति भी आज के दिन कुछ न कुछ खरीदता है | धनतेरस इस बात का प्रमाण है कि अपनी आध्यात्मिक चिंतन धारा के साथ ही भारत में अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाये रखने के लिए सामाजिक दृष्टि से परम्पराओं का  सृजन किया गया | धनतेरस उसका चरमोत्कर्ष है | दीपावली धन – धान्य को समर्पित पर्व है जो पूरी तरह से आर्थिक गतिविधियों पर केन्द्रित है | कृषि  के साथ ही अब उद्योग - व्यापार भी दीपावली से जुड़ गए हैं | इसलिए उपभोक्ताओं की प्राथमिकता और पसंद भी तदनुसार परिवर्तित होने लगे हैं | बर्तनों और आभूषणों तक सीमित न रहकर  धनतेरस की  खरीदी व्यापक रूप ले चुकी है | सूचना तकनीक के प्रसार ने आम इन्सान को भी अर्थव्यवस्था के बारे में सोचने को प्रेरित किया है | और इसीलिये अब लोग पेट्रोल – डीजल , जीएसटी , शेयर बाजार के सूचकांक जैसे विषयों पर भी बतियाने लगे हैं | देश की आर्थिक स्थिति केवल सरकार का  ही नहीं अपितु आम जनता के संज्ञान में आने वाला विषय भी बनता जा रहा है | राजनीति के समानांतर अब आर्थिक मसलों पर भी जनता के बीच चर्चा होना शुभ संकेत है | केवल संपन्न वर्ग तक सीमित रहने वाले विषयों पर मध्यम  आय वर्गीय तबके का खुलकर बात करना लोकतंत्र की जड़ों के गहराई तक पहुँचने का प्रमाण है | उस दृष्टि से धनतेरस पर केवल खरीदा – खरादी से ऊपर उठकर इस बात की भी चर्चा सुनाई दे रही है कि कोरोना के उपरांत देश के आर्थिक हालात सुधरे तो कितने और आगे उनमें क्या उम्मीद है ? नवम्बर के दूसरे दिन धनतेरस  पड़ने से नौकरी पेशा लोगों के पास भरपूर क्रय शक्ति है | अखबारों के जरिये ये जानने में आ रहा है कि कोरोना से उबरकर अर्थव्यवस्था कुलांचे भरने को बेताब है जिससे  बाजार के  गुलजार होने   की उम्मीदें बढ़ गई हैं | बीते माह के जीएसटी संग्रह का आँकड़ा 1 लाख 30 हजार करोड़ रु. को पार करना इस बात का प्रमाण है कि उद्योग – व्यापार रफ़्तार पकड़ चुका है | कोरोना की तीसरी लहर के आने की आशंका ज्यों – ज्यों कम होती जा रही है त्यों – त्यों अर्थव्यवस्था का ग्राफ भी चढ़ने लगा है | लेकिन इसमें बहुत बड़ा हिस्सा पेट्रोल – डीज़ल  पर होने वाली मुनाफाखोरी का है | आज ही जानकारी आई है कि तेल कंपनियों ने बीते तीन महीनों में ही तकरीबन 12 हजार करोड़ का लाभ अर्जित किया | केंद्र सरकार को ही बतौर एक्साइज 64 हजार करोड़ इस दौरान मिल गए | राज्यों ने जो कमाई की वह अलग से है | कोरोना काल में आय के स्रोत घट जाने से सरकार को राजस्व की बेहद जरूरत थी किन्तु अब जबकि बीते छह माह से लगातार जीएसटी का आँकड़ा ऊपर जा रहा है और कारोबारी जगत से भी अच्छी खबरें आ रही हैं तब जनता का ये उम्मीद लगाना गलत नहीं है कि सरकारी कर्मचारियों को दिए जाने वाले महंगाई भत्ते और बोनस जैसी राहत आम जनता को भी मिले | किसी भी देश की  अर्थव्यवस्था की  मजबूती का  सबसे बड़ा पैमाना उसके नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार होना है | आजकल दुनिया के अनेक देशों में प्रति व्यक्ति आय से ज्यादा प्रसन्नता  के स्तर को प्राथमिकता दी जाने लगी है | म.प्र जैसे अनेक राज्यों में आनंद मंत्रालय भी बनाया गया है | लेकिन दुर्भाग्य से आम जनता को आनंदित करने की बजाय सत्ता में बैठे महानुभाव अपने आनंद तक ही सीमित रहते हैं और राग दरबारी के गायन में प्रवीण नौकरशाह दिन रात उनको इस गलतफहमी में रखते  हैं कि प्रजा बहुत आराम से है |  पेट्रोल –  डीजल को जीएसटी के दायरे में लेने की मांग को सभी  राज्य सिरे से नकारते रहे हैं | अनेक वित्त मंत्रियों को ये कहते सुना भी गया है कि इन वस्तुओं की बिक्री में कर चोरी की गुंजाईश नहीं होने से सरकार को ये सबसे आसान कमाई के स्रोत लगते हैं | कोरोना काल में सरकार के सामने भी अभूतपूर्व आर्थिक संकट था | इसलिए जनता भी धैर्य पूर्वक सब सहती रही किन्तु अब जबकि चारों  तरफ से खुशनुमा संकेत मिल रहे हैं तब आम जनता यदि ये अपेक्षा रखती है कि धनतेरस और दीपावली के अवसर पर केंद्र और राज्य सरकार उनको राहत पहुँचाने वाली कोई घोषणा करे तो उसमें गलत  क्या है ? जनता के मन में इस बात की पीड़ा भी है और नाराजगी भी कि राजनीतिक दल चुनाव में बेतहाशा पैसा बहाते हैं | इसी तरह सरकार में बैठे लोग भी जनता  के धन पर ऐश करने में कोई संकोच नहीं करते किन्तु आम लोगों से ये उम्मीद की जाती है कि वे मितव्ययता बरतें और बढ़ती महंगाई का सामना कंजूसी के साथ जीवन यापन करते हुए करें | ये सोच अर्थव्यवस्था की  सेहत में हो रहे सुधार पर सवाल उठाने के लिए पर्याप्त है | आज जबकि पूरा देश त्यौहार की खुशियों में डूबा हुआ है तब पेट्रोल और डीजल के दामों में रोजाना होने वाली बढ़ोतरी कचोटती है | कच्चे तेल के दाम घटाना तो सरकार के बस में नहीं होता क्योंकि वह आयातित वस्तु है लेकिन उस पर तेल कंपनियों द्वारा कमाया जाने वाला मुनाफा  कम करना तो उसके नियन्त्रण में है | देश संकट में हो तो जनता हर तरह  का त्याग  करने तत्पर रहती है लेकिन अर्थव्यवस्था जब मजबूत हो रही है तब उसका तेल निकालने की कोशिशों से तो यही समझ में आता है कि शासन में बैठे लोग लोगों  की तकलीफों के प्रति पूरी तरह से संवेदनाशून्य हो चले हैं | कहना गलत नहीं होगा कि केंद्र सरकार ने अनेक जनकल्याणकारी योजनाओं को चलाकर जो प्रशंसा हासिल की थी वह पेट्रोल – डीजल में की जा रही मुनाफाखोरी  के चलते मिट्टी में मिल रही है | 

-रवीन्द्र  वाजपेयी

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