Friday 19 November 2021

सरकारी शालाओं का कायाकल्प : दिल्ली सरकार बधाई की हकदार


 
भारत को कृषि प्रधान की बजाय अब चुनाव प्रधान देश कहना चाहिए क्योंकि यहाँ जब देखो तब चुनाव रूपी फसल की तैयारी होती रहती है | चूंकि चुनावों का मूल आधार राजनीति है इसलिए उसकी चर्चा भी इक्का – दुक्का  छोड़कर हर जुबान पर रहती है |  शोचनीय बात ये है कि इस चर्चा के विषय जाति , धर्म और स्थानीय मुद्दे ही ज्यादा होते हैं | लेकिन इसके लिए आम जनता को दोषी ठहराना गलत होगा क्योंकि राजनेता और राजनीतिक दलों से उसे जो सुनने मिलता है उसी के इर्द - गिर्द उसकी  सोच सिमटकर रह जाती है | ये कहना गलत न होगा कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर राजनीतिक विमर्श कम ही सुनाई देता है | टीवी चैनलों पर होने वाली दिशाहीन बहस में भी वही मुद्दे शामिल होते हैं जिनसे दर्शक संख्या बढ़े | वहीं अखबारी पन्ने भी राजनीति , हिंसा , भ्रष्टाचार और ऐसी ही बाकी सनसनीखेज खबरों से भरे रहते हैं | जबकि देश की अधिकतर जनसँख्या को प्रभावित करने वाले मुद्दे कुछ और ही हैं | उस दृष्टि से देखा जाए तो दिल्ली सरकार द्वारा अपनी शालाओं का स्तर सुधारकर उन्हें बड़े नाम वाले निजी विद्यालयों की टक्कर में खड़ा किये जाने को राष्ट्रीय उपलब्धि  के तौर पर प्रचारित किया जाना चाहिए ,  किन्तु ऐसी खबरों को अपेक्षित महत्व नहीं मिलता | आज ही छोटी सी खबर से पता चला कि देश में सरकारी विद्यालयों की गुणवता के आधार पर जो सूची तैयार की गई उसमें सर्वश्रेष्ठ विद्यालय दिल्ली का ही है | यही नहीं जिन 10 सरकारी विद्यालयों का श्रेष्ठता सूची हेतु चयन हुआ उनमें चार दिल्ली सरकार द्वारा संचालित हैं | दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया के पास शिक्षा विभाग भी है | अपने पहले कार्यकाल  में ही उन्होंने इस दिशा में ईमानदारी से प्रयास किये  जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में संपन्न वर्ग के अभिभावक भी अपने बच्चों को प्रवेश दिलवाने प्रेरित हुए | उनमें दी जाने वाली शिक्षा के अलावा अन्य वे सभी गतिविधियां संचालित की जाने लगीं जिनकी वजह से निजी विद्यालय आकर्षण का केंद्र माने जाते हैं | राजनीतिक मतभेदों से परे  हटकर ये मानना ही पड़ेगा  कि अरविन्द केजरीवाल की सरकार ने शासकीय विद्यालयों की दशा और दिशा दोनों में जबरदस्त या यूँ कहें कि अकल्पनीय सुधार करते हुए उनको निजी क्षेत्र के महंगे विद्यालयों से प्रतिस्पर्धा करने लायक बनाकर उनसे आगे निकलने में सक्षम बनाया | देश की 10 श्रेष्ठ सरकारी शालाओं में से चार दिल्ली की होना मायने रखता है | केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी की नीतियों से मतभिन्नता होना बुरा नहीं है परन्तु शिक्षा और मोहल्ला क्लीनिक के रूप में उसने दिल्ली में जो काम किया वह राष्ट्रीय राजनीति के लिए प्रेरणास्पद कहा जाएगा | विद्यालयीन शिक्षा और प्राथमिक चिकित्सा ऐसे मौलिक विषय हैं जिन पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए । लेकिन वोट बैंक की राजनीति में उलझे राजनीतिक दलों को इस बारे में ज्यादा रूचि नहीं होती | अनेक अदालती फैसलों के अलावा सरकारी  आदेशों में शासकीय सेवारत अधिकारियों तक से ये कहा गया कि वे अपने बच्चों को शासकीय शाला में पढ़ाएं | कुछ  स्थानों से इसका पालन किये जाने संबंधी खबरें भी आईं किन्तु उनको अपवाद ही कहा जा सकता है | आज भी न सिर्फ नौकरशाहों अपितु ज्यादातर राजनेताओं के बच्चे महंगे निजी विद्यालयों में ही शिक्षा प्राप्त करते हैं | और उसके बाद उनकी कोशिश होती है कि उच्च शिक्षा हेतु किसी तरह उन्हें विदेश भेज दिया जाए | इस माहौल में दिल्ली सरकार द्वारा हासिल उपलब्धि प्रशंसा और अभिनंदन के साथ ही अन्य सरकारों के लिए अनुकरणीय भी है | श्री सिसौदिया ने ये साबित कर दिया कि सरकारी  विद्यालयों की दशा सुधारकर उनका उन्नयन संभव है , बशर्ते प्रयासों में प्रतिबद्धता और ईमानदारी हो | दिल्ली सरकार ने सरकारी शालाओं का स्तर उठाकर ये स्थिति उत्पन्न कर दी कि उच्च  वर्गीय परिवारों के अभिभावक भी अपने बच्चों को इनमें प्रवेश दिलवाने को प्रयासरत रहते हैं | राजनीति की अपनी सीमाएं  और संकोच हैं , लेकिन ऐसे मुद्दों पर अपने विरोधी से भी सीखना ही बुद्धिमत्ता होती है | स्व. अटलबिहारी वाजपेयी ने प्रधानमन्त्री रहते हुए उच्चस्तरीय सडकों - की जरूरत और महत्व समझाया | उनकी सोच को केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने जिस कुशलता से आगे बढ़ाया उसकी उनके विरोधी भी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं | दिल्ली सरकार के शिक्षा मंत्री रहते हुए श्री सिसौदिया ने सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता को  जिस ऊंचाई तक पहुँचाया उसे राष्ट्रीय मॉडल बनाया जाना  चाहिए | देश में शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने का ये एक कारगर उपाय हो सकता है | सबका साथ , सबका विकास और सबका विश्वास नारे को  वास्तविकता  में तभी बदला जा सकेगा जब शिक्षा जैसी मूलभूत चीज बाजारवादी ताकतों के हाथों में कैद न रहे |  वैसे अनेक राज्यों में लड़कियों को मुफ्त शिक्षा के  अलावा अन्य सुविधाएँ जैसी योजनाएँ भी प्रचलित हैं किन्तु शासकीय शिक्षण संस्थाएं गुणवत्ता की दौड़ में पिछड़ने की वजह से विद्यार्थियों की पसंद नहीं बन पातीं | इस कमी को दूर करना समय की मांग है | विशेष रूप से विद्यालय स्तर तक की शिक्षा के लिये सरकारी संस्थानों का निजी क्षेत्र के समकक्ष होना बेहद जरूरी हो गया है क्योंकि विकास की कल्पना इसके बिना अधूरी है | बताया जाता है अमेरिका में शालेय शिक्षा हेतु बच्चों को ज्यादा दूर भेजने की बजाय निकटवर्ती शाला में प्रवेश दिलवाना अनिवार्य है | इसका कारण वहां सभी विद्यालयों का  मूलभूत ढांचा एक समान होना है | 21वीं सदी में भारत को यदि विश्वशक्ति बनना है तब उसे विद्यालयीन स्तर से ही सरकारी शिक्षा  संस्थानों को उच्च स्तरीय बना होगा | शाला का अर्थ केवल एक भवन न होकर उसमें दी जाने वाली शिक्षा होती है | हमारे देश में  बिजली , सड़क और पानी जैसे मुद्दे चुनावों में हावी रहते हैं | उनके अलावा आरक्षण रूपी लॉलीपाप  और मुफ्त उपहारों की घोषणा से मतदाताओं को आकर्षित किया जाता है | लेकिन दिल्ली सरकार ने सरकारी विद्यालयों का कायाकल्प करते हुए उनको जिस तरह से प्रतिष्ठित किया वह अँधेरे में किरण जैसा है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment