Tuesday 9 November 2021

ऐतिहासिक घटना चक्र का गवाह बना 32 साल का सफर



आज से 32 साल पहले मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस का पहला अंक आपके हाथ आया था | महाकौशल की चेतनास्थली कहे जाने वाले जबलपुर में पत्रकारिता की गौरवशाली परम्परा हमारी प्रेरणा का स्रोत थी | सांध्यकालीन अख़बारों को अपेक्षाकृत उतना महत्व नहीं मिलता लेकिन संस्कारधानी में हमसे पहले भी अनेक सांध्यकालीन समाचार पत्र प्रकाशित होते रहे और सभी ने अपने दौर में पत्रकारिता की मशाल को रोशन रखा | 1989 में मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस का प्रकाशन जब प्रारम्भ हुआ तब देश अभूतपूर्व राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की ओर बढ़ रहा था | भारी उथलपुथल के बीच नए समीकरण जन्म ले रहे थे | कई स्थापित प्रतिमाएं खंडित हो रही थीं और उनकी जगह लेने के लिए नये चेहरे सामने आ रहे थे | जाति और धर्म अचानक राजनीतिक विमर्श पर हावी होने लगे | कुछ वर्ष भारी उहापोह और अनिश्चितता में व्यतीत होने के बाद राजनीतिक स्थायित्व आया तो आर्थिक जगत में ऐतिहासिक परिवर्तन शुरु हुए जिनकी  वजह से समाजवाद के साथ राजनीति का रोमांस खत्म होने लगा | ये कहना गलत न होगा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ने की उस पहल ने आम भारतीय की सोच को अंतर्राष्ट्रीय बनाने में मदद की जिससे  दुनिया उसे छोटी लगने लगी | उसके अच्छे या बुरे परिणाम बड़ी बहस का विषय हैं किन्तु  बाद में आईं सभी सरकारों को भी चाहे – अनचाहे उन्हीं आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाना पड़ा | इसी के साथ ही देश ने गठबंधन राजनीति को स्वीकार  करने का साहस भी दिखाया |  1989 से 2014 में मोदी सरकार बनने तक केंद्र में किसी एक दल को लोकसभा में बहुमत नहीं हासिल होने से विभिन्न दलों की मिली जुली सरकार बनती बिगड़ती रहीं | उसी दौर में देश ने अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में पहला विशुद्ध गैर कांग्रेसी प्रधानमन्त्री भी देखा | आर्थिक क्षेत्र के समानांतर जो सबसे बड़ा बदलाव उस दौर में हुआ वह था सोशल इन्जीनियरिंग के नाम पर जाति आधारित राजनीति का प्रादुर्भाव , जिसने सियासत की चाल , चरित्र और चेहरे को सिर से पाँव तक बदल डाला | बीते तीन दशक में तमाम विसंगतियों और विरोधाभासों के बावजूद भारत आगे बढ़ा है और वैश्विक स्तर पर उसकी उपस्थिति  उभरती हुई महाशक्ति के तौर पर होने लगी है | एक उपभोक्ता देश से आगे निकलकर उत्पादक और आयात करने वाले से निर्यातक बनने तक का सफर  प्रारब्ध का नहीं अपितु  सामूहिक राष्ट्रीय पौरुष का ज्वलंत प्रमाण है | बीते लगभग दो वर्ष में भारत ने कोरोना नामक महामारी के  अप्रत्याशित हमले का जिस सफलता से सामना किया उससे हमारा आत्मविश्वास द्विगुणित हुआ है | आज पूरी दुनिया ये मानने लगी है कि 21 वीं सदी में भारत विश्व के अग्रणी और शक्तिशाली देशों में होगा | तीन दशकों के समूचे घटनाचक्र पर  मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस ने सतर्कता के साथ नजर रखकर  पाठकों को हर छोटी – बड़ी बात से अवगत करवाते हुए उनके  सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को सामने रखा | समाचार पत्र का काम खबरों के अलावा वैचारिक स्तर पर पाठकों को जागरूक रखना भी होता है | और उस कार्य को भी हमने पूरी ईमानदारी से किया | यद्यपि सभी हमसे सहमत हों ये आवश्यक नहीं होता किन्तु असहमति और आलोचना के प्रति हमारा रवैया सदैव सौजन्यतापूर्ण रहा है | यही वजह है कि मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस को हर वर्ग और विचारधारा के पाठकों का स्नेहयुक्त संरक्षण और सहयोग प्राप्त हुआ |  सीमित पृष्ठ संख्या और श्वेत – श्याम होने के बावजूद इसकी चमक और धमक निरंतर बनी रही तो उसकी विशेष वजह हमारा गैर व्यवसायिक दृष्टिकोण ही है | प्रतिस्पर्धा और व्यवसयिकता के दौर में जब जमीन पर पड़े पैसे को मुंह से उठाने में शर्म नहीं की जाती और पत्रकारिता  को धनोपार्जन का पर्याय माना जाने लगा है तब सीमित साधनों में एक भाषायी अखबार का 32 साल तक चलते रहना मामूली बात नहीं है | लेकिन इसके लिए हम उन असंख्य पाठकों के प्रति कृतज्ञ हैं जिन्होंने मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस को विषम से विषम हालातों में भी साथ दिया | विज्ञापनदाताओं से मिले सहयोग के प्रति भी हम आभारी हैं जिनके मन में इस समाचार पत्र के प्रति पालक का भाव है | 32 वर्ष का ये सफर निश्चित रूप से अनेकानेक खट्टे – मीठे अनुभवों से भरा रहा | न जाने कितने उतार और चढ़ाव इस दौरान देखने मिले किन्तु हमारी नीति और नीयत चूँकि पत्रकारिता की गरिमा को सुरक्षित रखने की थी इसलिए विफलताओं में निराश होने और सफलता पर इतराने से मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस बचा रहा | वर्तमान परिस्थितियों में लघु और मध्यम श्रेणी के समाचार पत्रों के सामने अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है | बाजारवादी शक्तियों के बढ़ते वर्चस्व और सरकारों के उपेक्षा भाव ने समाचार पत्रों को कार्पोरेट संस्कृति का हिस्सा बना दिया जिसकी वजह से कतिपय पत्रकार भी मालिकों के लिए पैसा उगाही के औजार  बनते जा रहे हैं | ऐसे में मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस ने अपने को उन बुराइयों से बचाकर रखा है जो पत्रकारिता को कलंकित करने का कारण बन रही हैं  | आगे आने  वाला समय और भी चुनौतीपूर्ण  है | पत्रकारिता  के सामने विश्वसनीयता का संकट दिन ब दिन गंभीर होता जा रहा है | बिकाऊ पत्रकारों की जमात ने इस पेशे की पवित्रता और प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलाने का पाप किया है | लेकिन अंधेरी कोठरी में रोशनदान के तौर पर मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस अपनी भूमिका का ईमानदारी से निर्वहन करता आ रहा है और पाठकों के अमूल्य सहयोग , संरक्षण और संबल के बलबूते आगे भी निर्भीक पत्रकारिता की परम्परा को जीवित रखेगा , इस संकल्प को हम आज फिर दोहरा रहे हैं | 
विनम्र आभार सहित ,

रवीन्द्र वाजपेयी

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