Wednesday 10 August 2022

नीतीश ने भाजपा से बचने बड़ी मुसीबत मोल ले ली



बिहार में सरकार बदल गयी किन्तु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहेंगे | आठवीं बार मुख्यमंत्री बनने वाले नीतीश ने भाजपा से नाता तोड़कर दोबारा राजद से गठजोड़ कर लिया | उन्हें भाजपा छोड़ बाकी सभी दलों का समर्थन भी हासिल हो गया | सब कुछ बड़े ही नाटकीय तरीके से हुआ  जिससे किसी को आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि लम्बे समय से नीतीश और भाजपा के रिश्तों में सहजता खत्म हो चुकी थी | हालांकि नीतीश सदैव भाजपा पर हावी रहे जो सत्ता के लालच में हर दबाव को सहती रही | लेकिन दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने जब जद ( यू ) को एक ही मंत्री पद देना तय किया तब जो गाँठ बंधना शुरू हुई वह और कसती गयी | दोनों तरफ से  बयानों के तीर चलते रहे | विधानसभा अध्यक्ष के साथ सदन के भीतर हुए नीतीश के विवाद ने भी आग में घी का काम किया | लेकिन नागरिकता संशोधन , कृषि कानून , जाति आधारित जनगणना और अग्निवीर योजना जैसे केंद्र सरकार के फैसलों का जिस तरह नीतीश ने विरोध किया उससे भाजपा भी नाराज थी | लेकिन नीतीश भाजपा की मजबूरी बन गये थे | मजबूरी नीतीश के सामने भी थी क्योंकि बीते दस साल में वे दो बार लालू के साथ आये और फिर अलग होकर भाजपा से जुड़े | हालाँकि वे आज जिस मुकाम पर हैं उसमें भाजपा का ही योगदान है जिसने उन्हें केंद्र में मंत्री पद के साथ ही लम्बे समय तक बिहार का मुख्यमंत्री बनाये रखा | लालू के जंगल राज के विरुद्ध भाजपा के समर्थन से वे बिहार में सुशासन बाबू के तौर पर स्थापित हुए | दस साल तक ये गठबंधन चला लेकिन 2013 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो नीतीश ने एनडीए त्याग  दिया परन्तु लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ़ होने का बाद विधानसभा चुनाव में उन्हीं लालू के साथ गलबहियां करने लगे जिनके जंगलराज और चारा घोटाले जैसे  भ्रष्टाचार के विरुद्ध खुलकर खड़े रहे | बिहार में बहार है ,नीतीशै कुमार है का नारा गूंजा और उस गठबंधन ने मोदी लहर को रोक लिया | लेकिन महज दो साल के भीतर वे दौड़े – दौड़े उन्हीं मोदी के पास गये जिनकी वजह से उन्होंने भाजपा के साथ दो दशक का गठबंधन तोड़ा था | उसके बाद 2019 का लोकसभा और 2020 का विधानसभा चुनाव दोनों ने मिलकर लड़ा | इन दोनों में प्रधानमंत्री सितारा प्रचारक रहे और नीतीश ने उनके साथ मंच साझा करने में संकोच भी नहीं किया | ये वही मोदी हैं जिनका बिहार में आना उनको उस समय भी नागवार गुजरता था जब वे एनडीए में रहे | खुन्नस इतनी ज्यादा थी कि प्राकृतिक आपदा के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर श्री मोदी द्वारा भेजी गई सहायता राशि तक लौटा दी और पटना में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आये नेताओं को दिया भोज भी  रद्द कर दिया क्योंकि उसमें श्री मोदी होते | लेकिन 2017 में जब लगा कि लालू  कुनबे के साथ सरकार चलाने से सुशासन बाबू की छवि तार – तार हो जायेगी तो  श्री मोदी की शरण लेने में संकोच नाहीं किया   | 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के प्रति  काफी नाराजगी रही जिससे उनकी सीटें घटकर 45 हो गईं | यदि श्री मोदी धुआंधार प्रचार न करते तब नीतीश के हाथ से सत्ता खिसक जाती | बड़ी पार्टी बनने के बाद भी भाजपा ने उनको मुख्यमंत्री बनाया जो उसकी भी मजबूरी थी | भाजपा जानती  थी कि उसके पास ऐसा कोई नेता नहीं है जो लालू और नीतीश की टक्कर का हो | सही बात ये है कि बिहार में राजनीति के तीन ध्रुव नीतीश , भाजपा और लालू के तौर पर बन गए हैं | इनमें से कोई भी अपनी दम पर  चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है | लेकिन ये भी सही है कि बीते दो दशक में बिहार में यदि किसी ने अपना विस्तार किया तो भाजपा ने , जबकि नीतीश और लालू दोनों सिकुड़े हैं | वहीं रामविलास पासवान के निधन के बाद उनका अपना कुनबा भी छिन्न – भिन्न हो गया | पिछले विधानसभा चुनाव में उनके बेटे चिराग ने जिस तरह एनडीए में रहते हुए जद ( यू ) के उम्मीदवारों को हरवाया  उससे नीतीश के मन में ये बात बैठ गयी कि वह भाजपा का खेल था | हालाँकि चिराग की बजाय भाजपा ने उनके चाचा पारस को केंद्र में मंत्री बनाया  किन्तु केंद्र  में दो मंत्रियों की मांग पूरी न होने के बाद से ही नीतीश सशंकित हो उठे थे | इसीलिये केंद्र सरकार के निर्णयों और नीतियों का विरोध करते रहे जबकि भाजपा उनके साथ भागीदार थी | हालाँकि उनको उम्मीद रही  कि भाजपा उन्हें  उपराष्ट्रपति बनाकर उपकृत करेगी किन्तु जब ऐसा नहीं हुआ तब उनको ये डर सताने लगा कि बिहार में भी महाराष्ट्र जैसा खेल न हो जाए | कांग्रेस के कुछ विधायकों के भाजपा के संपर्क में होने की भनक लगने से उनके कान  खड़े हो गए | हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का वह बयान भी उनको चुभ गया कि क्षेत्रीय पार्टियाँ खत्म हो जायेंगी | उनके मन में ये बात घर करने लग गई थी कि उनका तख्ता पलट किया जा सकता है और उस सूरत में वे लालू और कांग्रेस से समर्थन मांगेगे तो उनका हाथ दबा रहेगा | ये देखते हुए उन्होंने वही किया जिसकी उम्मीद थी |  इसके पीछे उनकी एक चाल और भी है | बीते दिनों जब ओवैसी की पार्टी के विधायक तेजस्वी के साथ आये तो राजद सबसे बड़ा दल बन गया | जैसी खबरें चल रही थीं उनके अनुसार नीतीश को समर्थन दे रही छोटी पार्टियाँ और निर्दलीयों पर तेजस्वी जिस तरह से डोरे डाल रहे थे उससे भी वे सतर्क थे | इसलिए उन्होंने ऐसा पैंतरा चला कि  भाजपा से भी पिंड छूटा  , वहीं तेजस्वी की मुख्यमंत्री बनने की योजना पर भी पानी फेर दिया | कहा जा रहा है कि इस दांव के बाद वे 2024 में श्री मोदी के मुकाबले विपक्ष का सर्वमान्य चेहरा बन जायेंगे | लेकिन ये  दिवास्वप्न ही रहेगा क्योंकि ममता बैनर्जी , शरद पवार , और राहुल गांधी इतनी आसानी से पीछे हट जायेंगे ये मान लेना मूर्खता होगी | अरविन्द केजरीवाल की भी महत्वाकांक्षाएं कम नहीं है | इससे भी बड़ी बात ये है कि आपराधिक मामलों में घिरे लालू परिवार के विरुद्ध चल रही जांचों के  हश्र पर इस  सरकार का भविष्य निर्भर  करेगा | नीतीश को ये तो पता ही है कि  तेजस्वी और तेजप्रताप पहले भी उनके कन्धों पर सवार हो गये थे और इस बार भी वे बाज नहीं आयेंगे | 2024 के चुनाव के पहले  देश की राजनीति में कितने उलटफेर होंगे ये कोई नहीं बता सकता | हालाँकि नीतीश ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि वे राजनीति के कितने चतुर खिलाड़ी हैं | लेकिन जिस भय से उन्होंने भाजपा से दूरी बनाई वह लालू और कांग्रेस के साथ जाने से तो और बढ़ जाएगा क्योंकि उसी कारण तो वे 2017 में उस गठबंधन को छोड़ भाजपा के साथ लौटे थे | रही बात भाजपा की तो नीतीश के साथ रहते –रहते उसने बिहार में अपना जनाधार इतना तो बढ़ा ही लिया कि उसके बिना वहां की राजनीति की कल्पना नहीं  की जा सकती |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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