Thursday 18 August 2022

बिहार में आई बहार , कानून मंत्री फरार



राजनीति के अपराधीकरण को लेकर उपदेशात्मक बातें तो सभी  करते हैं लेकिन जब उनका पालन करने का समय आता है तब व्यवहारिकता बीच में आ जाती है | ये बात बिलकुल सही है कि महज आरोप लगने से किसी को अपराधी मान लेना उचित नहीं है | अदालत द्वारा दण्डित  किये जाने पर ही व्यक्ति दोषी कहा जाता है किन्तु जब बात नैतिकता और शुचिता की हो तब मापदंड बदल जाते हैं | गांधी , लोहिया और दीनदयाल नामक जो तीन राजनीतिक धाराएँ इस देश की राजनीति में  दिशा निर्देशक रहीं हैं उनमें नैतिकता के महत्व और जरूरत को स्वीकार किया जाता है | यहाँ मार्क्स और माओ के अनुयायियों की बात इसलिए नहीं की जा रही क्योंकि उनके लिए  भारतीय आदर्श बेमानी हैं और वे सत्ता के लिए खून बहाने की मानसिकता से प्रेरित हैं | आजादी के 75 साल पूरे होने पर समूचे देश ने स्वाधीनता संग्राम के महानायकों के योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उनके द्वारा स्थापित आदर्शों का अनुसरण करने का संकल्प भी लिया | आजादी के बाद की प्रारंभिक राजनीति में नीति , नीयत और नैतिकता के समावेश पर भी खूब विमर्श सुनने –  देखने मिला परन्तु बिहार में नई – नई बनी महा गठबंधन सरकार में कानून मंत्री बनाये गए कार्तिकेय सिंह की  आपराधिक पृष्ठभूमि सामने आने के बाद ये कहना पूरी तरह सही होगा कि सत्ता और नैतिकता का कोई रिश्ता नहीं रह गया है | इस बारे में ज्ञात हुआ है कि बरसों  पुराने अपहरण के मामले में उनका नाम है | गत 12 अगस्त को अदालत ने अग्रिम जमानत की  अर्जी पर विचार करते हुए आगामी 1 सितम्बर तक उनकी गिरफ्तारी पर रोक भी लगा दी थी | लेकिन 16 अगस्त को मामले की सुनवाई पर जब वे हाजिर नहीं हुए तब उनके विरुद्ध वारंट जारी किया गया | विपक्ष का आरोप है कि जिस समय कार्तिकेय को अदालत में उपस्थित रहना उसी समय वे मंत्री पद की  शपथ ले रहे थे और जिसके बाद उनको कानून मंत्रालय दे दिया गया | यद्यपि बिहार जैसे राज्य की राजनीति में नैतिकता ख़ास मायने नहीं रखती क्योंकि लालू प्रसाद  यादव ने अपने शासनकाल में अपराधियों को जिस तरह से संरक्षण और प्रोत्साहन दिया उसके कारण ये  तत्व राजनीति पर कब्जा करने में सफल हो गए | बावजूद इसके नीतीश कुमार उन नेताओं में थे जिन्होंने लालू का  विरोध करने का साहस दिखाया और सफल भी हुए | उनको सुशासन बाबू का ख़िताब भी इसी वजह से हासिल भी हुआ | लेकिन हालिया राजनीतिक परिवर्तन के बाद उन्होंने जिस तरह से लालू के परिवार के समक्ष घुटने टेके उससे लगने लगा है कि वे अपनी साफ़ – सुथरी छवि को भी मुख्यमंत्री की गद्दी पर बने रहने के  लिए दांव पर लगाने तैयार हो गये हैं | कार्तिकेय पर भाजपा नेताओं द्वारा लगाए गये आरोपों से लालू जिस तरह बौखलाए वह तो फिर भी समझ  में आने वाली बात है क्योंकि उनकी राजनीति ऐसे लोगों के बलबूते पर ही चलती रही है | लेकिन बिहार के मुख्यंमत्री पद पर बरसों से काबिज नीतीश का ये कहना गले नहीं उतरता कि उनको कार्तिकेय प्रकरण की जानकारी नहीं थी | एक बार मान भी लें कि वे उनके विरुद्ध अदालत द्वारा जारी वारंट से अनभिज्ञ थे तब भी विपक्ष द्वारा मुद्दा उठाये जाते ही पुलिस और प्रशासन से कहकर उनकी पूरी कर्मपत्री हासिल कर सकते थे | लेकिन उन्होंने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक न तो कार्तिकेय को पाक साफ़ ठहराया और न ही उन्हें मंत्री पद से हटाया |  इस बारे में मंत्री जी के अधिवक्ता का कहना है कि उन पर कई साल  पहले  अपहरण का प्रकरण दर्ज हुआ था | लेकिन पुलिस ने प्रारंभिक जाँच के बाद ही उन्हें निर्दोष मानकर तत्संबंधी जानकारी अदालत में भी पेश कर दी थी | लेकिन उसके बाद भी वारंट के जारी होने से सवाल उठना स्वाभाविक है | रही बात मुख्यमंत्री की अनभिज्ञता की तो अब जबकि वे जान चुके हैं तब तो  उन्हें कार्तिकेय को मंत्री बनाये रखने पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि जिस सरकार का कानून मंत्री ही अपहरण जैसे मामले में फंसा हो तो उसकी छवि को लेकर कैसी अवधारणा जनमानस में बनेगी ये बताने की जरूरत नहीं है | वैसे वास्तविकता तो ये है कि नीतीश ने अपने हाथ से अपने पर काट लिए हैं | उनके मंत्रीमंडल में लालू की  पार्टी के मंत्रियों की भरमार है | तेजस्वी और तेजप्रताप दोनों को मंत्री बनाने से साबित हो गया कि मुख्यमंत्री ने पूरी तरह आत्मसमर्पण कर दिया है | हालाँकि केवल नीतीश को ही इसके लिए कसूरवार ठहराना एकपक्षीय सोच होगी क्योंकि अपराधी से परहेज करने की सोच राजनीति में पूरी तरह विलुप्त हो चुकी है | क्षेत्रीय पार्टियों पर तो  अपराधी तत्वों का दबदबा किसी से छिपा नहीं रहा लेकिन अब भाजपा और कांग्रेस भी इससे मुक्त नहीं रहीं | इसीलिये इस सम्बन्ध में की जाने वाली आलोचना वजनदारी नहीं रखती | हालाँकि लालू  की पार्टी के एक नेता ने कार्तिकेय के बारे में विचार किये जाने की बात कही है , वहीं इस सरकार को समर्थन कर रही भाकपा माले ने  नीतीश और तेजस्वी से इस  बारे में पुनर्विचार न होने पर  समर्थन वापिस लेने की धमकी भी दे डाली | कार्तिकेय अपहरण के मामले में अदालत द्वारा दोषी पाए जाते हैं या बरी किये जावेंगे ये कहना कठिन है लेकिन इस विवाद की वजह से नीतीश कुमार और उनकी नई नवेली सरकार के लिए सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली कहावत चरितार्थ हो गई | रही बात भाजपा अथवा अन्य  किसी के द्वारा की जा रही आलोचना की तो घूम – फिरकर बात वहीं  आ जाती है कि पहला पत्थर वह मारे जिसने कभी कोई पाप न किया हो | लगता है हमाम में सभी के निर्वस्त्र होने वाली उक्ति आज की भारतीय राजनीति के लिए ही बनी थी |  

- रवीन्द्र वाजपेयी

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