Monday 29 August 2022

अवैध निर्माणों के विरुद्ध लड़ने का साहस तो पैदा किया इस फैसले ने



दिल्ली का हिस्सा बन चुके उ.प्र के नोएडा में दो गगनचुम्बी आवासीय इमारतों को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद गत दिवस ध्वस्त कर दिया गया | 29 और 32  मंजिला इन इमारतों के निर्माण में नियमों का  उल्लंघन बड़े पैमाने पर होने के बाद इनका खड़ा रहना कानून तोड़ने वालों का हौसला बढ़ने का कारण बनता | सबसे बड़ी बात ये रही कि इन इमारतों को गिरवाने की याचिका इसमें फ़्लैट खरीदने वालों की तरफ से ही लगाई गयी | फ़्लैट धारकों की शिकायत ये थी कि सुपरटेक नामक बिल्डर ने शुरुआत में जितनी मंजिलें बनाने का नक्शा स्वीकृत करवाया था उससे ज्यादा बनाने की अनुमति बाद में ले ली | दो इमारतों के बीच की दूरी भी  कम कर दी तथा  उद्यान आदि के लिए खुली भूमि तक नियमानुसार नहीं छोड़ी गयी | और तो और ग्रीन बेल्ट के लिए रिक्त रखी गई अविकसित शासकीय भूमि पर भी बलात कब्जा कर लिया गया | अलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उक्त याचिका पर जो फैसला दिया उसे ही सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखते हुए उक्त इमारतों में फ़्लैट खरीदने वालों को पूरे पैसे लौटाने के साथ ही अवैध इमारतों को गिराए जाने का आदेश देते हुए समय सीमा भी तय कर दी | हालाँकि इतने बड़े निर्माण को सुरक्षित तरीके से गिराए जाने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की व्यवस्था करने में समय लगा |  अंततः गत दिवस इस बहुप्रतीक्षित अभियान को बिना किसी जनहानि के संपन्न  कर लिया गया | पूरे देश और दुनिया में इसका दृश्य देखा गया | भारत में अपने तरह का पहला मामला होने के कारण  आख़िरी समय तक लोगों को ये विश्वास था कि दोषी बिल्डर जुगाड़ तकनीक का उपयोग करते हुए विध्वंस की कार्रवाई को रुकवा लेगा परन्तु  उसे निराशा हाथ लगी | इसके बाद सोशल मीडिया पर जो प्रतिक्रिया देखने मिलीं उनमें अधिकांश का अभिमत यही है कि उक्त इमारतों को जमींदोज करने के बजाय राजसात करते हुए नेकी के किसी प्रकल्प में उपयोग किया जाता  | हालाँकि एक वर्ग उन लोगों का भी है जो ये मानते हैं कि कानून का राज केवल किताबों तक सीमित न रहते हुए लोगों को प्रत्यक्ष नजर आना जरूरी है | और इसीलिये इन इमारतों को अस्तित्वहीन करना सही कदम था ताकि अवैध निर्माण करने  और उन्हें संरक्षण देने वालों का मनोबल टूटे | बहरहाल ये बहस कुछ दिनों तक चलेगी और संभव है कि सरकार और सर्वोच्च न्यायालय जनभावनाओं का संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय क्षति को रोकने के लिए अवैध निर्माण को  किसी रचनात्मक उद्देश्य हेतु उपयोग किये जाने का विकल्प तलाशें  | इस अवैध निर्माण को स्वीकृति देने वाले उ.प्र के संबन्धित अधिकारी भी  गैरकानूनी  मंजूरी  दिये जाने के अपराधी होने के साथ ही 500 करोड़ रु. की राष्ट्रीय क्षति के लिए जिम्मेदार हैं | लेकिन जो जानकारी आई उसके अनुसार सपा और बसपा की सरकार के ज़माने में सुपरटेक को जिस तरह मनमाने तरीके से गलत काम करते रहने की आजादी मिली उसका पर्दाफाश किया जाना भी जरूरी है | साधारण व्यक्ति भी बेझिझक ये कह देगा कि बिना राजनेताओं की संगामित्ति के इतना बड़ा अवैध निर्माण और वह भी एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी परियोजना) में होना असम्भव है | नोएडा दिल्ली का ही वृहत्तर हिस्सा  है | जिस इलाके में उक्त अवैध निर्माण गिराया गया उसी में बसपा प्रमुख मायावती की भी आलीशान कोठी है जिसे लेकर भी तरह – तरह की चर्चाएँ सुनने मिलती हैं | लेकिन प्रश्न ये है कि इन दो इमारतों को गिराए जाने के बाद देश भर में हो चुके अवैध निर्माणों को भी क्या इसी अंजाम तक पहुंचाया जायेगा क्योंकि इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला ठोस आधार है या फिर कोई ऐसी व्यवस्था की जायेगी जिससे निर्माण में लगा धन मलबे में न बदले | ज़ाहिर तौर पर इस बारे में  संसद और न्यायपालिका ही समुचित प्रावधान बना सकते हैं लेकिन इतना जरूर है कि न्यायपालिका की सर्वोच्च पीठ के फैसले से आम जनता में ये उम्मीद जागी है कि साहस और  धैर्य पूर्वक सामूहिक रूप से लड़ाई लड़ी जावे तो धनबल और राजनेताओं का संरक्षण भी बेअसर साबित हो सकता है  | इसमें दो मत नहीं है कि अपना घर होने का सपना पाले लाखों लोग बिल्डरों की धोखधड़ी का शिकार हैं जिनके पास लड़ने का समय , साहस और संसाधन न होने से वे अपनी पीड़ा को अपने भीतर समेटे रह जाते हैं | यद्यपि रेरा नामक नियामक व्यवस्था के कारण बिल्डरों की कारस्तानियों पर एक हद तक तो लगाम लगी है लेकिन इसकी वजह से देश भर में हजारों प्रोजेक्ट लालफीताशाही के चलते शुरू नहीं हो पा रहे | कुल मिलाकर इस फैसले से पूरे देश में अवैध निर्माणों के विरुद्ध बिना डरे मैदान में उतरने का साहस तो पैदा हुआ ही | सरकारी अमले के मन में भी ये बात बैठ गयी है कि सर्वोच्च न्यायालय के बेहद कड़े फैसले के बाद अब उनकी करतूतों पर पर्दा पडा रहना नामुमकिन हो जाएगा | निचली अदालतों को भी सर्वोच्च न्यायालय ने रास्ता दिखा दिया है जो सुस्त कानूनी प्रक्रिया के कारण ऐसे मामलों  को टालती रहती हैं | इसमें दो राय नहीं कि उक्त इमारतों को गिराये जाने से अरबों रूपये की निर्माण सामग्री मिट्टी में मिल गयी किन्तु इस बारे में केवल भावनात्मक आधार पर सोचने की बजाय जमीनी हकीकत को भी ध्यान रखना होगा | भ्रष्टाचार को पालने पोसने वाले नेता , नौकरशाह और बिल्डरों के गठजोड़ को तोड़ने के लिए कड़े कदम उठना समय की मांग है | प्रधानमंत्री ने स्वाधीनता दिवस पर लाल किले से इस बारे में जो विचार व्यक्त किये उनको अमल में लाना आसान नहीं है क्योंकि भ्रष्टाचार समूची व्यवस्था पर कुंडली मारकर बैठ जाने के बाद धीरे – धीरे हमारी मानसिकता  पर भी हावी हो गया है | इस स्थिति को बदलने के लिये वैसी ही संगठित और साहसिक सोच की जरूरत है जिसका परिचय उक्त इमारतों में फ़्लैट खरीदने वालों ने ये जानते हुए भी दिया कि उससे उनका बड़ा नुकसान भी हो सकता था | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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