Friday 26 August 2022

भाजपा : ऊपर उठने के फेर में जड़ों से न कट जाए



भाजपा आज देश की सबसे ताकतवर पार्टी मानी जाती है | 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीस साल बाद केंद्र में स्पष्ट बहुमत वाली सरकार बनाने के बाद इस पार्टी ने अपना विस्तार जिस तेजी से किया वह निश्चित रूप से उल्लेखनीय है | जिस उत्तर पूर्व में उसका नामलेवा नहीं होता था वहां के अनेक राज्यों  में सरकारें बनाकर उसने न सिर्फ कांग्रेस अपितु वामपंथियों को भी चौंका दिया | असम की राजनीति में तो वह लम्बे समय से मुख्यधारा में थी लेकिन  मणिपुर और त्रिपुरा में सत्ता हासिल कर लेना बड़ी बात रही | तमिलनाडु में अवश्य अभी भी वह घुटनों के बल चल रही है , लेकिन  केरल में जनाधार जमीनी स्तर पर मजबूत करने के साथ ही आंध्र और तेलंगाना में वह तेजी से जगह बनाती जा रही है | कर्नाटक में तो उसकी सरकार है ही | गोवा , महाराष्ट्र और गुजरात में भी उसके बिना राजनीति की कल्पना करना कठिन है | म.प्र. , राजस्थान और छत्तीसगढ़ की  दो ध्रुवीय राजनीति में  भाजपा एक पक्ष है | हरियाणा में उसके पास सत्ता है लेकिन पंजाब में अकालियों की छाया से बाहर आकर वह अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाने के लिए हाथ  पांव मार रही है | जम्मू कश्मीर की सियासत में तो  वह मुख्य भूमिका में आ ही चुकी है | उ.प्र तो उसका गढ़ बन ही चुका है , रही बात बिहार की तो हाल ही में हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बाद यद्यपि वह सत्ता से बाहर हो गई किन्तु इस राज्य में भी उसका दबदबा बढ़ता जा रहा है | पड़ोसी राज्य झारखंड में  भाजपा वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति के तौर पर स्थापित है | अरुणाचल जैसे सीमान्त राज्य में सरकार होना उसके अकल्पनीय विस्तार का प्रमाण है | हालाँकि कलात्मक बल्लेबाजी करते हुए बिना रन बनाते  हुए भी  विकेट पर टिके रहने की  टेस्ट मैच के जमाने वाली सोच को अब न दर्शक सराहते हैं और न ही समीक्षक | 1971 में लोकसभा चुनाव के दौरान इन्दिरा जी ने किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने की जो शैली स्थापित की उसने भारतीय राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदलकर रख दी | उसी का अनुसरण करते हुए क्षेत्रीय दलों ने भी तात्कालिक और भावनात्मक मुद्दे उछालकर चुनाव जीतने में महारत हासिल की | धीरे – धीरे जाति और क्षेत्रीय पहिचान चुनावी राजनीति के औजार बनते गए | भाजपा चूंकि इन सबसे अलग किस्म की पार्टी थी लिहाजा वह उन फार्मूलों से चुनाव जीतने की न तो इच्छुक थी और न ही पारंगत | इसीलिये उसने हिंदुत्व का मुद्दा पकड़ा जो उसकी पसंद भी था और पहिचान भी | राम  मंदिर आन्दोलन उस दृष्टि से भारतीय राजनीति में एक बड़े मोड़ का कारण बना जिसके जरिये भाजपा ने उ.प्र में अपना दबदबा कायम किया जिसके बिना दिल्ली की सत्ता हासिल करना असंभव होता | आगे की कहानी सभी जानते हैं | लेकिन 2014 में श्री मोदी ने जिस आक्रामक तरीके से हिन्दुत्व , राष्ट्रवाद और विकास का समन्वित रूप मतदाताओं के सामने पेश किया उसके चमत्कारिक परिणाम देखने मिले और भाजपा अपने बल पर सरकार बनाने में कामयाब हो गयी | वैसे सरकार तो स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने भी तीन बार बनाई लेकिन बहुमत के अभाव में उनकी  सारी शक्ति और समय सहयोगी दलों के दबाव को झेलने में ही गुजर गया | लेकिन श्री मोदी का ये सौभाग्य है कि पर्याप्त बहुमत होने से भीतरी और बाहरी दबाव से वे बचे रहे और इसीलिए उन्होंने भाजपा के प्रभावक्षेत्र को उत्तर भारत से निकालकर एक राष्ट्रीय पार्टी का स्वरूप देने पर भी ध्यान दिया जिसके अनुकूल परिणाम भी सामने आये | लेकिन इसका एक नुकसान ये हुआ कि उसका पूरा जोर सत्ता हासिल करने में लगने लगा | हालाँकि सभी राजनीतिक दलों का उद्देश्य यही  होता है किन्तु अपने को सबसे अलग बताने वाली इस पार्टी में सत्ता की भूख जिस तरह बढ़ती जा रही है उससे उसके अपने समर्थक ही हैरान हैं | इसका सबसे बड़ा कारण पार्टी की नीति – रीति से पूरी तरह अपरिचित लोगों का आकर महत्वपूर्ण पदों पर बैठ जाना है | प. बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा में जिस तरह से भीड़ आई उसके कारण उसे चुनाव में लाभ तो हुआ लेकिन जब सरकार बनाने में असफलता हाथ लगी तो अनेक नेता जैसे आये वैसे ही वापस लौट गये | भाजपा के अपने कैडर में इस बात को लेकर काफी नाराजगी है कि सत्ता की खातिर नींव के पत्थरों को उपेक्षा की जा रही है | महाराष्ट्र  में एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने और देवेन्द्र फड़नवीस को उनके मातहत उपमुख्यमंत्री बनाये जाने जैसे निर्णय से पार्टी के भीतर ही सवाल उठाये जा रहे हैं | भाजपा के बारे में ये अवधारणा मजबूत होती जा रही है कि वह ईडी और सीबीआई का डर फैलाकर विपक्षी पार्टियों की राज्य सरकारें गिराने पर आमादा है | कुछ दिनों से दिल्ली और झारखंड में ऑपरेशन लोटस के अंतर्गत सरकार गिराने का आरोप जिस तरह से भाजपा पर लग रहा है उसमें सच्चाई न हो तब भी उसकी छवि सरकार गिराऊ पार्टी की बनती जा रही है ,  जो अच्छा नहीं है | मान लीजिये दिल्ली  और झारखण्ड में सत्ताधारी खेमे में सेंध लगाकर  वह अपनी सरकार बना ले तो भी उसमें दलबदलुओं की  बहुतायत होगी | एक ज़माने में विपक्षी सरकारों को गिराने के लिए कांग्रेस बदनाम थी | राज्यपाल के जरिये किसी न किसी बहाने राष्ट्रपति शासन लगवा देना आम बात थी | कालान्तर में बोम्मई मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने उस सिलसिले को रोक दिया | लेकिन केंद्र में ताकतवर होने के बाद भाजपा ने राज्यों में भी अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए जिस तरह की रणनीति बनाई उसका उसे लाभ तो हुआ और अनेक ऐसे राज्य उसके आधिपत्य में आते गए जहाँ वह हाशिये से ही बाहर हुआ करती थी | लेकिन उसके साथ ये बदनामी भी जुड़ती जा रही है कि वह पैसे के बल पर विपक्षी विधायकों को खरीदकर सत्ता पर काबिज होने की हवस का शिकार है | हालांकि म.प्र और महाराष्ट्र में क्रमशः कांग्रेस और शिवसेना में जो टूटन हुई उसके लिए वे पार्टियां भी कम जिम्मेदार नहीं हैं जो अपने घर में चल रही कलह को नहीं  रोक सकीं किन्तु भाजपा के लोगों में  इस बात पर नाराजगी है कि वे वर्षों  से चप्पलें घिसते रह गये और नए – नवेले लोगों को सत्ता का सुख दे दिया गया | दिल्ली और झारखंड के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम में भाजपा पर सत्ता बदलवाने की कोशिश करने का आरोप प्रमाणित न होने पर भी सही लगता है क्योंकि उसकी छवि वैसी बनती जा रही है | राजनीति में सत्ता के जरिये भी किसी राजनीतिक दल की विचारधारा , नीतियों और कार्यक्रमों का प्रचार – प्रसार होता है लेकिन कार्यकर्ता आधारित दल के  सत्ता पर पूरी तरह  आश्रित हो जाने का दुष्परिणाम ही है कि जिस प. बंगाल में अनेक दशकों तक वाममोर्चे की सरकार रही | और जिसे साम्यवादियों का लाल किला कहा जाता था , आज वहां की विधानसभा में एक भी वामपंथी विधायक नहीं है | भाजपा को ये देखना चाहिए कि ऊपर उठने के फेर में वह अपनी जड़ों से न कट जाए |

- रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment