Monday 22 August 2022

अध्यक्ष को लेकर बनी अनिश्चितता कांग्रेस के लिए नुकसानदेह



देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के लिए पूर्णकालिक अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है | 2019 में मिली करारी हार की  जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद त्याग दिया था | कई महीनों की मान – मनौव्वल के बाद भी वे राजी नहीं हुए और किसी अन्य पर रजामंदी नहीं बनी तब कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर एक बार फिर सोनिया गांधी को ही कमान सौंप दी गई | बीते तीन साल से कांग्रेस में अध्यक्ष के चुनाव को लेकर चर्चा चल रही है | सोनिया जी अस्वस्थतावश इस दायित्व को ठीक से सँभालने में असमर्थ हैं | ऐसे में बात लौट फिरकर राहुल और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा पर आ जाती है | लेकिन राहुल की  अस्थिर सोच और उ.प्र चुनाव में प्रियंका की विफलता के कारण अनिश्चितता बनी रही जिसका असर पार्टी की सेहत पर पड़ने से दो दर्जन नेताओं द्वारा जी – 23 नामक समूह बनाकर आंतरिक लोकतंत्र की बहाली हेतु आवाज उठाई गई | उनमें से कपिल सिब्बल तो सपा की  टिकिट पर राज्यसभा में आ भी गये | बाकी के भले ही पार्टी में बने हुए हैं लेकिन उनकी नाराजगी का आलम ये हैं कि गुलाम नबी आजाद ने जम्मू कश्मीर और  आनन्द शर्मा ने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव अभियान का प्रभारी बनाये जाने पर त्यागपत्र दे दिया | चौतरफा दबाव के बाद अब कांग्रेस में नया अध्यक्ष चुनने के लिये कवायद शुरू हुई है | बीते तीन सालों से ये माना जाता रहा है कि राहुल ही  फिर से पार्टी की बागडोर संभालेंगे क्योंकि ज्यादातर कांग्रेसजन मानते हैं कि गांधी परिवार के बिना पार्टी को एकजुट रखना असंभव होगा | लेकिन आम जनता के बीच पार्टी का चेहरा बने रहने के बाद भी राहुल अध्यक्ष बनने से बचते रहे | जहां तक बात प्रियंका की है तो उ.प्र में कांग्रेस का सफाया  होने के बाद उनकी क्षमता पर भी सवालिया निशान लगे हैं | वैसे भी 2019 में अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद राहुल ने ऐलानिया तौर पर कहा था कि अगला अध्यक्ष गैर गांधी होगा | गत दिवस उन्होंने अध्यक्ष बनने से फिर इंकार कर दिया जिसके बाद गैर गांधी अद्यक्ष  को लेकर नए सिरे से कयास लग रहे हैं | लेकिन ये भी सुनने में आ रहा है कि यदि किसी नाम पर सहमति न बनी तब श्रीमती गांधी को ही कार्यकारी अध्यक्ष बनाये रखकर   लोकसभा चुनाव तक काम चलाया जावेगा | ये देखकर इस बात का आश्चर्य होता है कि आजादी के बाद अधिकांश समय देश पर राज करने वाली पार्टी के पास राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जाने हेतु सक्षम नेता का अभाव हो गया है | हालाँकि ऐसा नहीं है कि जो नाम सामने आये हैं वे जनता के बीच अपरिचित हों या उनका  कोई जनाधार न हो | राज्यसभा के जरिये राजनीति में बने रहे चंद दरबारियों को छोड़ दें तो भी अनेक ऐसे नेता कांग्रेस में हैं जो अपने राज्य में प्रभावशाली होने की वजह से राष्ट्रीय मंच पर भी अपनी भूमिका निभा सकते हैं | लेकिन दूसरी तरफ ये भी उतना ही सही है कि कांग्रेस में एक अवधारणा सुनियोजित तरीके से स्थापित कर दी गयी है कि गांधी परिवार रूपी संजीवनी के बिना पार्टी का जीवित रहना संभव नहीं  है | यही वजह है कि उसके अति विश्वस्त माने जाने वाले नेताओं को भी पार्टी की कमान सौंपने की सम्भावना आख़िरी क्षण में खत्म कर दी जाती है | ताजा खबर है कि राहुल के इनका करने से उत्पन्न  स्थिति में श्रीमती गांधी की  वर्तमान हैसियत बरकरार रखते हुए उनके साथ कुछ सहायक और जोड़ दिए जाएँ जिससे उन पर ज्यादा बोझ न आये | ऐसे में पार्टी पर परिवार का नियन्त्रण भी बना रहेगा और राहुल त्याग की प्रतिमूर्ति बने रहेंगे | लेकिन गांधी परिवार को ये समझ लेना चाहिये कि कांग्रेस यदि नए नेतृत्व को सामने नहीं लाती तब 2024 आते - आते तक पार्टी के पास जो बची – खुची पूंजी है वह भी खिसक जाये तो अचम्भा नहीं होगा | गुलाम नबी  आजाद और आनंद शर्मा के हालिया निर्णय  खुले संकेत हैं | राहुल को भी ये बात समझ लेनी चाहिए कि कांग्रेस अपनी दम पर आगामी चुनाव में नरेंद्र मोदी का सामना करने में सक्षम नहीं है | और अब तो विपक्ष के बाकी दल भी उसका नेतृत्व स्वीकार करने में हिचक रहे हैं | नीतीश कुमार द्वारा  भाजपा का साथ छोड़ देने के बाद  देश के मौजूदा राजनीतिक हालात पर एक एजेंसी के ताजा सर्वेक्षण में जो निष्कर्ष आये हैं उसमें  हालाँकि लोगों ने कांग्रेस को पूरी तरह नहीं नकारा किन्तु राहुल के बारे में निराशा खुलकर सामने आई है | विपक्ष के जो चेहरे लोगों की पसंद बने उनमें दिल्ली  के मुख्यमंत्री अरविन्द  केजरीवाल हालाँकि नरेंद्र मोदी से काफी पीछे हैं लेकिन राहुल गांधी से बहुत आगे | और यही बात कांग्रेस की चिंता का विषय होना चाहिए | वैसे भी आम आदमी पार्टी इस बात को लोगों के मन – मस्तिष्क में बिठाने में कामयाब हो रही है कि भाजपा का विकल्प बनने की  ताकत कांग्रेस में नहीं बची और श्री केजरीवाल ही आगामी लोकसभा चुनाव में श्री मोदी के मुकाबला करने का दम रखते हैं | हालाँकि 2024 आने में अभी देर है और तब तक देश की राजनीति में न जाने कौन से परिवर्तन हो जाएँ लेकिन इतना तो सच है कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस अपने सबसे खराब दौर में आ पहुँची और उनके अध्यक्ष पद छोड़ देने के बावजूद जिस तरह से पार्टी अभी तक उनके परिवार की गिरफ्त में ही  है उसके कारण आम जनता के मन में उसके प्रति आकर्षण खत्म होने लगा है | पंजाब और राजस्थान की  अंतर्कलह रोकने में गांधी परिवार जिस तरह विफल साबित हुआ उससे भी पार्टी का भविष्य खतरे में है | गुजरात में आम आदमी पार्टी जिस तेजी से उभर रही है उसे देखते हुए कहा जाने लगा है कि वहां कांग्रेस की बजाय वह भाजपा से मुकाबला करने जा रही है | ऐसे में कांग्रेस को चाहिए कि वह राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर अनिश्चितता समाप्त करते हुए तदर्थवाद से बाहर निकले | यदि उसे गांधी परिवार के अधीन ही रहना है तो फिर राहुल को साहस के साथ जिम्मेदारी सम्भालना चाहिए | आधे – अधूरे मन से राजनीति करने का ज़माना  खत्म हो चुका  है | हालाँकि श्री गांधी अगले महीने से देश की पदयात्रा पर निकल रहे हैं | लेकिन यदि वे पार्टी के अध्यक्ष नहीं बने तब उनकी यात्रा को अपेक्षित प्रतिसाद नहीं मिल सकेगा क्योंकि बाकी विपक्षी पार्टियों को भी उनमें संभावना नजर आनी बंद हो चुकी है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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