Saturday 13 August 2022

महंगाई : आंकड़ों की बाजीगरी का भी अमृत महोत्सव



बीते दो दिनों से सुनने में आ रहा है कि 
जुलाई में खुदरा महंगाई घटकर 6.71 फीसदी हो गई जो जून में 7.01 थी | राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के  आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच महीनों में ये आंकड़ा सबसे कम है | यद्यपि उक्त संस्थान ने ये भी स्पष्ट किया है कि अभी भी महंगाई निर्धारित दर से ज्यादा है जो कि 2 से 6 फीसदी होनी चाहिये | अधिकृत आंकड़ों के अनुसार  जुलाई 2021 में वह  5.59 प्रतिशत के स्तर पर थी  जबकि अप्रैल आते – आते उछलते हुए 7.79 तक जा पहुँची | राहत की  खबर औद्योगिक उत्पादन में ही देखी गई जो जून के महीने में 12.3 प्रतिशत बढ़ गया | अर्थशास्त्र में नीतिगत नियोजन आंकड़ों  के आधार पर ही किया जाता है | रिजर्व बैंक भी महंगाई के आंकड़ों के आधार पर ही ब्याज दर घटाता – बढ़ाता है | हाल ही में रिजर्व बैंक द्वारा ऋणों पर ब्याज दर बढ़ाये जाने का उद्देश्य  भी महंगाई पर काबू करना था | ये बात तो सर्वविदित है कि कोरोना के संक्रमण ने जिस तरह पूरी दुनिया के अर्थतंत्र को हिलाया उससे भारत भी अछूता नहीं रह सका | हालांकि दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों ने ये स्वीकार किया कि कोरोना काल में भी दुनिया के विकसित देशों की  तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में रही और ये भी कि इस वैश्विक महामारी से जूझने में भारतीय प्रबंधन काफी अच्छा रहा | इसमें भी दो राय नहीं हैं कि 135 करोड़ की विशाल आबादी का भरण - पोषण करना उस विकट स्थिति में बहुत ही कठिन था | इसके साथ ही इतनी बड़ी जनसँख्या को कोरोना से बचाव हेतु टीके लगाना भी आसान काम न था | लेकिन आज भी जब दुनिया के तमाम देश कोरोना के कहर से पूरी तरह उबर नहीं पाए हैं तब भारत में आर्थिक स्थितियां सामान्य होने लगी हैं | इसका प्रमाण रिहायशी घरों , कारों और दोपहिया वाहनों की बिक्री में वृद्धि के अलावा पर्यटन व्यवसाय में दिखाई दे रही तेजी है | बीती गर्मियों में शादी – विवाह भी खूब हुए जिनके कारण उपभोक्ता बाजार में रौनक रही | वहीं उससे जुड़ी अन्य व्यवसायिक गतिविधियों का ठहराव भी दूर हुआ | जीएसटी की मासिक वसूली का आंकड़ा जिस तेजी से बढ़ता जा रहा है उससे भी आर्थिक सुस्ती खत्म होने के संकेत मिले हैं | पेट्रोल – डीजल की बिक्री लगातार बढ़ते जाने से ये जाहिर हो रहा है कि परिवहन और सड़क मार्ग से होने वाला आवागमन कोरोना पूर्व की स्थिति में आ चुका है | निर्माण गतिविधियों के रफ़्तार पकड़ने के कारण मजदूरों को काम मिलने लगा है | हवाई और रेल यात्रियों की संख्या में भी वृद्धि देखी जा रही है | कुल मिलाकर बाजार में मांग  बढ़ने से उत्पादन करने वालों का हौसला बढ़ा जिसकी वजह से भी कीमतों में स्थिरता  आई होगी | दरअसल महंगाई बढ़ने के पीछे एक कारण रूस - यूक्रेन के बीच छिड़ी लड़ाई भी है जिससे खाद्यान्न और खाने का तेल बेतहाशा महंगा हो गया | ऐसा लगता है सरकार द्वारा अनाज का निर्यात रोकने का असर कीमतों पर पड़ने से खुदरा महंगाई नीचे आ गई | अन्यथा महंगाई कम होने  का खास अनुभव नहीं हो रहा | उलटे उपभोक्ता बाजार में तकरीबन हर चीज के जो दाम बीते दो साल में बढ़े , वे वहीं ठहर गये | इस आधार पर देखें तो महंगाई घटने का दावा सच्चाई से दूर लगता है | वैसे भी सरकारी संस्थान के आंकड़ों  में हेराफेरी  नई बात  नहीं है | राजनीतिक कारणों से भी उनको सरकार की छवि के मद्देनजर प्रसारित – प्रचारित किया जाता है | बीते दिनों संसद के मानसून सत्र में विपक्ष द्वारा महंगाई को लेकर सरकार को घेरने का भरपूर प्रयास भी किया गया | यद्यपि कुछ हद तक  ये तो माना  जा सकता है कि रोजमर्रे की उपभोक्ता वस्तुओं के दामों का बढ़ना तो रुका ही है | लेकिन हाल ही में रसोई गैस के महंगे होने से महंगाई का आंकड़ा लगता है फिर जस का तस हो जायेगा | अभी बाजार के जो संकेत हैं वे एक कदम आगे और दो कदम पीछे वाले स्थिति बयाँ कर रहे हैं | पेट्रोल - डीजल की कीमतें काफी दिनों से स्थिर हैं लेकिन रूस – यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल और गैस की जो किल्लत है उसकी वजह से अन्य तेल उत्पादक देशों की मुनाफाखोरी भी चरम पर है | ऐसे में मूल्यों की स्थिरता पर सदैव संदेह के बादल मंडराते रहते हैं | ये देखते हुए महंगाई घटने के जो आंकड़े विगत दिवस जारी हुए वे ऊँट के मुंह में जीरे से भी कम कहे जाएँ तो गलत न होगा | असली सर्वेक्षण इस बात का होना चाहिए कि दैनिक उपयोग की जिन भी चीजों के दाम कोरोना के कारण बढ़े ,  वे वापस  लौटे या नहीं ? ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि बाजार का चरित्र यही है कि कुछ अपवाद छोड़कर एक बार बढ़े हुए दाम भले ही कुछ समय के लिए स्थिर हो जाएं लेकिन लौटकर नीचे नहीं आते | केंद्र और विभिन्न राज्यों ने हाल ही में कर्मचारियों और पेंशनधारियीं का मंहगाई भत्ता बढ़ाया था  | 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए केंद्र सरकार राहतों का पिटारा खोलेगी इसमें दो राय नहीं है | दूसरी तरफ रिजर्व बैंक महंगाई पर लगाम लगाने के लिए घिसे – पिटे तरीके आजमायेगा | लेकिन इन कृत्रिम उपायों से महंगाई का घटना अर्थव्यवस्था के वास्तविक चित्र को पेश नहीं करता | आंकड़ों की  बाजीगरी देश बीते 75 साल से देखता आ रहा है | ये बात सच है कि महंगाई और विकास एक दूसरे के समानांतर चलते हैं | लेकिन हमारे देश में उनके  बीच का सामंजस्य बिगड़ता चला गया | यही वजह रही कि विकास कम हुआ और महंगाई ज्यादा बढ़ गई | मसलन लोगों की आय उस अनुपात में नहीं बढ़ सकी जिसमें जरूरी चीजें और सेवाएँ महंगी हुई हैं | इस आधार पर जो ताजा आंकड़े आये हैं उनको वास्तविकता की कसौटी पर कसने पर कुछ अलग ही स्थिति नजर आयेगी | उम्मीद की जा सकती है कि आजादी के अमृत महोत्सव पर लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसी कुछ घोषणा करेंगें जिससे आम आदमी राहत महसूस करे क्योंकि आंकड़ों की विश्वसनीयता भी नेताओं की तरह खत्म हो चुकी है |

-रवीन्द्र वाजपेयी 


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