Monday 1 August 2022

उनकी प्रशंसा राजनीति में मेरी आलोचना होती है?



एक बड़े राजनीतिक झंझावात से महाराष्ट्र बाहर निकल कर आया ही है। सरकार की त्रिमूर्ति भंग होकर भाजपा-शिवसेना के पुराने स्वरूप में आ गई है। विधानसभा के आम चुनाव में भाजपा और शिवसेना ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। जनता ने उन्हें सरकार बनाकर महाराष्ट्र विकास की जिम्मेदारी सौंपी थी। राजनीतिक महत्वाकांक्षा और त्याग की कमी के कारण एक बेजोड़ गठबंधन की सरकार लंबे समय तक महाराष्ट्र में चलती रही। गठजोड़ में सेंधमारी शिवसेना की ओर से ही हुई और उसकी परिणिति के रूप में आज एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में भाजपा के सहयोग से संयुक्त सरकार चल रही है। यह एक विषय है कि महाराष्ट्र में दलबदल और तोड़फोड़ को जायज माना जाए या न माना जाए? लेकिन दूसरी बात यह है कि महाराष्ट्र में जनादेश की अवज्ञा का दौर खत्म हुआ और वह सरकार बनी है जिसकी जनमत ने स्वीकृति दी थी। हम सब ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की जिद को भी देखा और उनके साथ बगावत करके सरकार के गिरने और बनने के घटनाक्रम को भी देखा। यह घटनाक्रम राजनीतिक रूप से कई संदेश देने वाला रहा है। यदि सबकी बात नहीं भी की जाए तो यह ठाकरे परिवार का सत्ता के प्रति अत्यधिक प्रेम और बाद में चुपचाप अपने घर चले जाने का रोमांचक दृष्टांत पेश करता है। हालांकि राजनीतिक रूप से सभी के मन में यह विचार था  कि चुपचाप मातोश्री जाने वाला उद्धव ठाकरे राजनीतिक पराजय मानकर घर बैठने वाला नहीं है। इसलिए महाराष्ट्र के ताजा घटनाक्रम में उनके मुंह से वही जहर भरे तीर निकले हैं जिनके लिए आमतौर पर शिवसेना जानी पहचानी जाती है। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने एक आयोजन में आर्थिक विशेषताओं की व्याख्या क्या कर दी वे सभी राजनीतिक पार्टियों की आलोचना के केंद्र में आ गए? राज्यपाल ने गुजराती और मारवाड़ी व्यापारियों के व्यवसायिक योगदान की चर्चा करते हुए उनकी प्रशंसा कर दी। कुछ आगे बढ़कर राज्यपाल ने यह भी कह दिया कि यदि गुजरातियों एवं राजस्थानियों को निकाल दिया जाए तो मुंबई एवं पुणे में पैसा-टका नहीं बचेगा। इस प्रकार का कथन इसी उक्ति को प्रमाणित करता है कि किसी की प्रशंसा किए जाने से मेरी आलोचना खुद ही हो जाती है। राजनीति करने वालों ने महामहिम राज्यपाल के इस बयान को मराठा विरोधी मानसिकता करार देने में तनिक भी विलंब नहीं किया। जिससे राजनैतिक बमबाजी तेजी से होने लग गया। राज्यपाल के मंतव्य और वक्तव्य की सभी राजनीतिक पार्टियों ने आलोचना की।  मराठा अविश्वास पैदा न हो जाए इसलिए भाजपा ने ही अपने दल के राज्यपाल के बयान को अनुचित करार दे दिया। राज्यपाल ने सफाई देकर हालांकि मामले को शांत करने का प्रयास किया है फिर भी राजनीति यदि इतना जल्दी शांत हो जाए तब वह राजनीति कैसे हो सकती है? राज्यपाल के बयान की आलोचना करने वालों में तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए सरकार जाने की हताशा का जमकर प्रदर्शन कर दिया। उन्होंने राज्यपाल के विरुद्ध बोलते हुए यहां तक कह दिया कि इन्हें कोल्हापुर का जोड़ा दिखाना चाहिए। यह कथन न तो राजनीतिक रूप से परिपक्वता दर्शाता है और ना ही राज्यपाल जैसे गरिमा पूर्व पद के लिए सम्मानजनक ही कहा जा सकता है ।इसलिए राज्यपाल के बयान के राजनीतिक रूप से निकाले गए निहितार्थ के बाद भी उद्धव ठाकरे का कथन उससे भी अधिक आपत्तिजनक और शर्मनाक है।यह विचार करने का प्रश्न है कि राज्यपाल नाम की संवैधानिक संस्था राजनीतिक अखाड़े में हमेशा विवादित दांवपेच का शिकार क्यों हो जाती है? हालांकि ऐसा भी नहीं है कि राज्यपाल विवादों के जनक नहीं होते। लेकिन राजनीतिक लाभ-हानि के लिए उनकी प्रत्येक बात का निहितार्थ निकालकर विवाद का केंद्र बनाया जाता है। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का यह बयान किसी समुदाय के अपमान करने के लिए दिया गया हो यह कहीं से भी प्रमाणित होता दिखाई नहीं देता। जबकि यह तो व्यवसाय करने वाले गुजराती एवं राजस्थानी व्यापारियों के पक्ष में दिया गया बयान है। इसमें इतना जरूर कहा जा सकता है कि किसी और की प्रशंसा मेरी आलोचना है। इस स्थिति का लाभ उठाकर आलोचना करने वाले राजनीतिक दलों की कतार कुछ लंबी हो गई। इस कतार में अलग दिखने की आड़ में उद्धव ठाकरे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए पकड़े गए। जिसकी निंदा की जा सकती है।

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