Tuesday 9 August 2022

खेलों में पदक जीतने वाले महानायक से कम नहीं



बीते 28 जुलाई  से  इंग्लैण्ड के बर्मिंघम  में चल रहे राष्ट्रमंडल खेल गत दिवस संपन्न हो गए | इस आयोजन में भारत के खिलाड़ियों ने कुल 61 पदक जीतकर तालिका में चौथा स्थान अर्जित किया , जिनमें 22 स्वर्णपदक हैं | कुश्ती में भारतीय दल के प्रत्येक खिलाड़ी ने कोई न कोई पदक जीता | इस बार निशानेबाजी नहीं हुई वरना पदक संख्या और ज्यादा हो जाती | सबसे बड़ी बात ये  देखने मिली कि जिन खेलों में भारत की उपस्थिति नाममात्र की रहा करती थी उनमें भी  हमारे खिलाड़ियों ने पदक जीतकर अपना दबदबा साबित कर दिया | 2024 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में होने वाले ओलम्पिक खेलों के मद्देनजर राष्ट्रमंडल खेलों में हासिल  सफलता निश्चित तौर पर खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने में सहायक साबित होगी | इस आयोजन की खास बात ये रही कि पदक जीतने वाले अनेक लड़के – लड़कियां बहुत ही साधारण आर्थिक और सामाजिक परिस्थिति से निकले हुए हैं | उनके माता – पिता किसी तरह गुजर - बसर करते हैं | विपरीत हालातों के बावजूद अपने संकल्प और कठोर परिश्रम से अंतर्राष्ट्रीय खेलों के विजय मंच पर भारत का राष्ट्रध्वज फहराने वाले ये खिलाड़ी सही मायनों में महानायक हैं | ये परम संतोष का विषय है कि  युवा पीढ़ी के मन में खेलों के प्रति पेशेवर दृष्टिकोण पनप रहा है | इसी वजह से अब हमारा दल केवल अपनी हाजिरी लगाने नहीं जाता अपितु उसमें शामिल खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से ये साबित करते हैं कि भारत की प्रगति कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रही | इन खेलों की पदक तालिका में आस्ट्रेलिया , इंग्लैण्ड और कैनेडा के बाद भारत चौथे स्थान पर रहा |  हालाँकि पहले और दूसरे स्थान पर आये देशों से हम काफी पीछे हैं लेकिन तीसरे और हमारे बीच अंतर सम्मानजनक है | इस बारे में संतोषजनक बात ये भी है कि बीते दो दशक में अब क्रिकेट , टेनिस , बैडमिन्टन जैसे ग्लैमरयुक्त खेलों से हटकर अन्य मैदानी खेलों के प्रति  भी भारतीय युवाओं में आकर्षण बढ़ा है | कुश्ती , भारोत्तोलन , निशानेबाजी और मुक्केबाजी के अलावा एथलेटिक्स में भी जिस तरह नई प्रतिभाएं अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों पर अपने को साबित करने लगी हैं वह बहुत ही शुभ लक्षण है | पिछड़े समझे जाने वाले इलाकों विशेष रूप से  उत्तर पूर्वी राज्यों से निकलने वाले खिलाड़ी जिस परिवेश और परिस्थिति से आते हैं वह देखकर उनके जुनून के प्रति सम्मान और बढ़ जाता है | यद्यपि इस बार  राष्ट्रमंडल खेलों में 72 देश शामिल हुए लेकिन आस्ट्रेलिया , इंग्लैण्ड , कैनेडा , न्यूजीलैंड , भारत और दक्षिण अफ्रीका के अतिरिक्त बाकी की उपस्थिति एक दो खेलों को छोड़कर औपचारिक ही रहती है | कुछ देश तो भौगोलिक और जनसँख्या के लिहाज से भी बेहद छोटे हैं | उस दृष्टि से भारत को तो राष्ट्रमंडल खेलों में पदक तालिका में सबसे ऊपर होना चाहिए परन्तु कटु सत्य है कि आजादी की बाद जो प्राथमिकतायें देश को आगे ले जाने के लिए निश्चित की गईं उनमें खेल और खिलाड़ी  फेहरिस्त में बहुत नीचे थे | यद्यपि पंजाब जैसे राज्य ने खेलों के विकास पर समय रहते ध्यान दिया जिसकी वजह से वहां से काफी खिलाड़ी निकले और उनके लिए वह आर्थिक दृष्टि से भी आय का साधन बना | अन्य  राज्य उस दृष्टि से काफी पिछड़ गये  | यहाँ तक कि राष्ट्रीय खेल कहे जाने वाले हॉकी में भी हम पिछड़ते चले गये | रह गया तो केवल क्रिकेट जो  महानगरों से निकलकर गाँवों तक में फ़ैल गया | लेकिन धीरे – धीरे ही सही बीते दो दशक के भीतर मैदानी खेलों के प्रति  भी आकर्षण बढ़ा और साधनों के अभाव में भी अनेक ऐसे खिलाड़ी उभरे जिन्होंने वैश्विक स्तर पर अपना कौशल दिखाया | पिछले ओलम्पिक में हमारे दल को प्राप्त  पदकों की संख्या उत्साहवर्धक थी | देश में क्रिकेट के बाद टेनिस और बैडमिन्टन का दबदबा बना था | लेकिन अब निशानेबाजी , मुक्केबाजी , कुश्ती , भारोत्तोलन और अन्य एथेलेटिक्स में  भी हमारे खिलाड़ी जिस तरह से रूचि ले रहे हैं उससे  भविष्य की उम्मीदें बढ़ी हैं | सरकार के अलावा निजी क्षेत्र से प्रायोजक  मिल जाने के कारण अनेक खिलाड़ी प्रतियोगिताओं के पूर्व विदेश  में रहकर प्राशिक्षण प्राप्त करते हैं जिसका प्रभाव उनके प्रदर्शन में नजर आता है | ये भी अच्छे संकेत हैं  कि इन खेलों के प्रशिक्षण संस्थान  पूर्व खिलाड़ियों द्वारा संचालित किये जाने लगे हैं | पदक जीतने वालों को मिलने वाले पुरस्कार , पदोन्नति और प्रोत्साहन भी खेलों में भविष्य बनाने के लिए युवाओं को प्रेरित करते हैं | बीते कुछ सालों में आम जनता में भी क्रिकेटरों की दीवानगी के साथ ही अन्य खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने वालों के प्रति भी रूचि और सम्मान जागा है | इस बारे में भारत सरकार को चाहिए वह  औद्योगिक संगठनों की मदद से इन खेलों की विश्व स्तरीय प्रतियोगिता आयोजित करे | इसी प्रकार आईपीएल की तर्ज पर फ़ुटबाल , बैडमिन्टन और लॉन टेनिस जैसे खेलों की विश्वस्तरीय पेशेवर प्रतियोगिताएं आयोजित की जावें जिनसे देश की प्रतिष्ठा के साथ ही पर्यटन और प्रबंधन कौशल में वृद्धि होती है | भारत में मूलभूत ढांचे के अंतर्गत जिस तरह राजमार्ग और फ्लायओवर आदि बनाये जा रहे हैं वैसे ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम तैयार  किये जाएँ जिससे  आने वाले एक दशक के भीतर हम विश्व ओलम्पिक की मेजबानी के लिए अपनी दवेदारी पेश करते हुए ज्यादा  से ज्यादा  पदक जीतने के लिए उदीयमान खिलाड़ी तैयार करने पर ध्यान दें | इसके लिए ये भी जरूरी है कि खेल संघों को मठाधीशों की राजनीति से मुक्त किया जाए | 135 करोड़ की आबादी वाला जो देश धरती से अंतरिक्ष तक अपनी उपस्थिति से पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहा है उसका ओलम्पिक की पदक तालिका में नीचे रहना शोभा नहीं देता |  इसीलिये राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतकर आजादी के अमृत महोत्सव की खुशियों में वृद्धि करने वाले सभी खिलाड़ी हमारे लिए आदरणीय हैं | जो पदक पाने से चूक गए उनका भी उतना ही सम्मान होना  चाहिए क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की किसी भी प्रतियोगिता में सम्मिलित होने की पात्रता भी किसी उपलब्धि से कम नहीं है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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