Tuesday 23 August 2022

विपक्षी एकता की राह में कांटे बिछा रही ममता की एकला चलो नीति



एक तरफ आम आदमी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव को मोदी विरुद्ध केजरीवाल बताने पर जुटी है वहीं प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने विपक्षी एकता के प्रयासों को नया मोड़ देते हुए कह दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को खड़ा करने का मॉडल पूरी तरह असफल है | इसके साथ ही भाजपा के विरुद्ध विपक्ष का महागठबंधन बनाने की कोशिश पर भी तृणमूल कांग्रेस ने सवाल उठाते हुए कहा है कि केवल बिहार , महाराष्ट्र और झारखंड में इसकी जरूरत है | बाकी राज्यों में जो क्षेत्रीय पार्टी है उसे ही भाजपा का सामना करने का अवसर दिया जाए | पार्टी के प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी , तमिलनाडु में द्रमुक , और उ.प्र में सपा बतौर क्षेत्रीय ताकत भाजपा से जूझेंगी | ममता बैनर्जी के हवाले से साफ़ कर दिया गया कि प. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सभी 42 सीटों पर मैदान में उतरेगी | यद्यपि ममता राहुल गांधी का मखौल पहले भी उड़ा चुकी हैं लेकिन इस बार तो उन्होंने बिना लाग लपेट के कह दिया कि वे श्री मोदी का मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं | तृणमूल द्वारा कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दलों के आधिपत्य को स्वीकार किया गया है वहीं बिहार , महाराष्ट्र और झारखंड में विपक्ष के महागठबंधन की गुंजाईश बताकर उसने नीतीश , शरद पवार और हेमंत सोरेन को झटका दे दिया  | सबसे बड़ी बात ये है कि कांग्रेस को पूरी तरह हाशिये पर धकेल दिया गया है जबकि म.प्र , राजस्थान , हिमाचल और छत्तीसगढ़ के अलावा गुजरात में भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से ही होता आया है | कर्नाटक और केरल में भी वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है | क्षेत्रीय पार्टियों को उनके प्रभाव वाले राज्य में सर्वेसर्वा बनाने के पीछे ममता की सोच प.बंगाल पर अपना एकछत्र राज कायम रखना है क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का महागठबंधन यदि आकार लेता है तब वामपंथी और कांग्रेस प. बंगाल में अपना हिस्सा मांगेंगे  जिसके लिए ममता किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हैं | उन्हें लग रहा है कि पिछला विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने जिस तरह से भाजपा में तोड़फोड़ की है उसके बाद वह आगामी लोकसभा चुनाव में 2014 और 2019 वाला प्रदर्शन शायद ही दोहरा सकेगी और तृणमूल 35 सीटें भी जीत गई तो उनकी वजनदारी बढ़ जायेगी  | हालांकि  इस मामले में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन भी काफी मजबूत हैं लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में न तो उनकी रूचि है और न ही  स्वीकार्यता | जहां तक बात उ.प्र की है तो ये जगजाहिर है कि वहां भाजपा को रोकना आसान नहीं होगा | इसी तरह बिहार में भले ही नीतीश ने लालू यादव की पार्टी से गठबंधन कर लिया हो लेकिन दोनों के बीच बंटवारे के कारण नीतीश का प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा होना नामुमकिन है | शरद पवार के साथ भी यही समस्या है क्योंकि उन्हें अबकी बार कांग्रेस  के अलावा शिवसेना के साथ भी सीटों की साझेदारी करनी होगी | लेकिन ममता और तृणमूल इस बात को भूल रही हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव के पहले  गुजरात , हिमाचल , कर्नाटक , म.प्र , छत्तीसगढ़ ,राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होंगे और उनके नतीजे भी राष्ट्रीय राजनीति को अपने तरीके से प्रभावित करेंगे | ऐसे में उन्होंने अभी से महागठबंधन पर सवाल उठाकर कांग्रेस को हाशिये पर धकेलने का जो दांव चला है वह उनके स्वभाव को देखते हुए  स्वाभाविक है | लेकिन अचानक बदले उनके सुरों से राजनीति पर नजर रखने वाले थोडा भौंचक जरूर हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव जीतने के बाद सुश्री बैनर्जी ने शरद पवार और सोनिया गांधी से मिलकर मोदी विरोधी महागठबंधन बनाने की भूमिका तैयार की थी | हालाँकि उसी दौरान उन्होंने खुद को श्री  मोदी के मुकाबले खड़ा किये जाने की जो बात की  उससे कांग्रेस चौकन्नी हो गई थी | और फिर गोवा विधानसभा चुनाव में तृणमूल ने अपने उम्मीदवार उतारकर जब  विपक्ष का खेल खराब किया उसके बाद से  श्री पवार और कांग्रेस दोनों सशंकित हो उठे  | हालाँकि राष्ट्रपति चुनाव के बहाने भी सुश्री बैनर्जी ने विपक्ष  को एकजुट  करने का प्रयास किया लेकिन शरद पवार , गोपालकृष्ण गांधी  और फारुख अब्दुल्ला  किसी ने भी उम्मीदवार बनने पर स्वीकृति नहीं दी | उसके बाद मजबूरी में उन्होंने यशवंत सिन्हा को उतारा लेकिन भाजपा ने द्रौपदी मुर्मु को सामने लाकर विपक्ष की एकता को छिन्न - भिन्न कर दिया | | उसके बाद उपराष्ट्रपति चुनाव आया लेकिन कोलकाता में ईडी द्वारा ममता सरकार के वरिष्ट मंत्री पार्थ चटर्जी के काले धन को उजागर किये जाने के बाद उनके तेवर ढीले पड़ गए और राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की एकता का प्रयास करने वाली तृणमूल कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहने का ऐलान करते हुए भाजपा उम्मीदवार जगदीप धनखड़ की जीत को आसान बना दिया जबकि प. बंगाल के राज्यपाल के रूप में उनके साथ ममता के रिश्ते बहुत ही तनावपूर्ण रहे | ये पैंतरा निश्चित तौर पर चौंकाने वाला था | राजनीति के जानकार ये मान रहे हैं कि श्री चटर्जी की करीबी महिला के निवास से बड़ी मात्रा में काला धन जप्त होने के बाद से ममता दबाव में आ गईं | उनके भतीजे अभिषेक और उनकी पत्नी भी सीबीआई जाँच के शिकंजे में होने के अलावा  अनेक तृणमूल विधायक गम्भीर अपराधों के आरोपी हैं | राज्य से जुड़ी वित्तीय मांगों को लेकर प्रधानमंत्री से दिल्ली में उनकी मुलाकात के बाद ये कयास जोर पकड़ने लगे कि वे केंद्र से टकराने के खतरों को भांप चुकी हैं और अब अपना  ध्यान केवल प. बंगाल में लगाएंगी | उस दृष्टि से प. बंगाल में सभी लोकसभा सीटों पर लड़ने का उनका ऐलान विपक्षी एकता की राह में कांटे बिछाने जैसा ही है | इसी के साथ कांग्रेस का मनोबल तोड़ने के साथ विपक्ष के गठबंधन को तथाकथित कहकर तृणमूल  परोक्ष रूप से भाजपा की राह आसान बनाने का काम ही कर रही  है | दरअसल उन्हें लगने लगा है कि विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास उनके गले पड़ जाएगा | इसीलिए उन्होंने एकला  चलो की नीति पर चलने का मन बना लिया है | क्षेत्रीय दलों को उनके वर्चस्व वाले राज्यों का चौधरी बना देने का उनका सुझाव विपक्ष की संभावित एकता में पलीता लगाने की कोशिश प्रतीत होती है | तृणमूल के अचानक बदले रुख से लगता है कि ममता दूरगामी राजनीति के मद्देनजर अपने पांसे चल रही हैं जिसका उद्देश्य खुद को मजबूत रखते हुए बाकी विपक्ष को आपस में लड़ने के के लिए छोड़ देना है | इसे भविष्य में भाजपा से नजदीकी बढ़ाने के तौर पर भी देखा जा सकता है | आखिरकार अतीत में भी तो वे एनडीए में रहते हुए वाजपेयी सरकार में मंत्री थीं |

- रवीन्द्र वाजपेयी 

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