Tuesday 2 August 2022

अस्पताल में आग : प्रशासन की आपराधिक उदासीनता का दुष्परिणाम



 जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टी स्पेशियलिटी नामक  निजी अस्पताल में आग लगने से 8 लोगों की मौत वैसे तो एक दुर्घटना है जिसका कारण शार्ट सर्किट बताया जा रहा है लेकिन आवासीय इलाके में बने इस अस्पताल में निकलने का दूसरा रास्ता न होने  और आग बुझाने के समुचित इंतजामों के अभाव की वजह से इसे  आपराधिक लापरवाही मानकर जो भी जिम्मेदार हैं उनको कड़े से कड़ा दंड दिया जाना चाहिए | हालाँकि पुलिस ने आग में झुलसे कुछ लोगों के बयानों के आधार पर अस्पताल के संचालकों तथा प्रबंधकों के विरुद्ध गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर गिरफ्तारियाँ भी की हैं किन्तु अभी तक उन सरकारी लोगों के गिरेबान पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं दिखाई जिनकी अनदेखी और काफी हद तक घूसखोरी की वजह से 8 निरपराध लोग ज़िंदा जलकर जान गँवा बैठे | घटना की विस्तृत जांच के बाद और भी बहुत कुछ निकलकर आयेगा | लेकिन इस हादसे ने प्रशासनिक मशीनरी के निकम्मेपन को एक बार फिर उजागर कर दिया है | गत वर्ष नवम्बर माह में म.प्र की राजधानी भोपाल के सबसे बड़े सरकारी हमीदिया अस्पताल में बच्चों के वार्ड में लगी आग से 4 बच्चों की मौत के बाद खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सख्ती दिखाते हुए प्रदेश भर के अस्पतालों सहित  बहुमंजिला इमारतों का फायर ऑडिट करवाने के आदेश दिए थे |  उसके बाद कुछ दिनों तक प्रशासन और स्थानीय निकायों के अग्निशमन विभाग ने सक्रियता दिखाते हुए कर्तव्यनिष्ठा का दिखावा किया लेकिन  बाद में मुख्यमंत्री के निर्देश को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया | जबलपुर के जिस अस्पताल में गत दिवस दर्दनाक अग्नि दुर्घटना हुई उसका सबसे बड़ा कारण उसमें अग्निशमन संबंधी व्यवस्था न होना था | नियमानुसार  किसी अस्पताल के संचालन की अनुमति देने के पहले संबंधित विभाग और अधिकारी को ये देखना चाहिए कि आपातकाल की स्थिति में वहां से निकलने का वैकल्पिक रास्ता है या नहीं | फायर ब्रिगेड के आने-जाने की पर्याप्त जगह भी होनी चाहिए | सबसे बड़ी बात ये है कि आवासीय इलाकों में खुलते जा रहे अस्पताल , होटल और शिक्षण  संस्थानों में इस तरह की स्थिति में सुरक्षा के इंतजाम हैं या नहीं, ये देखने वाले आँख पर पट्टी बंधे बैठे हैं तो इसका  कारण या तो राजनीतिक दबाव  होता है या फिर पैसे का प्रभाव | ऐसे में जितना दोष संदर्भित अस्पताल संचालकों  का है उससे कहीं ज्यादा उस सरकारी मशीनरी का है जिसकी अनदेखी की वजह से इस तरह के जानलेवा हादसों की पुनरावृत्ति होती रहती है | आजकल शहरों में बहुमंजिला इमारतों का चलन है | इनमें केवल आवासीय ही नहीं वरन व्यवसायिक काम्प्लेक्स  भी हैं | शापिंग मॉल्स में एक साथ सैकड़ों लोग खरीदी करने के साथ ही  मल्टीप्लेक्स में सिनेमा देखते हैं | बहुमंजिला इमारतों में लिफ्ट का इंतजाम होता है लेकिन उनकी गुणवत्ता कोई नहीं जांचता | बिजली गुल होते ही लिफ्ट  रुक जाती है और उस स्थिति में भीतर फंसे लोगों की गुहार कोई नहीं सुनता | ये विसंगति केवल निजी भवनों  या संस्थानों तक ही सीमित नहीं है  वरन सरकारी अस्पताल  और दफ्तरों में भी अग्निशमन आदि के प्रबंध या तो हैं ही नहीं या फिर अपर्याप्त हैं | ये स्थिति निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है | निश्चित तौर पर भवन बनाने वाले के साथ ही उनमें किसी व्यवसाय का संचालन करने वालों का ये दायित्व है कि उसमें न सिर्फ आग बुझाने बल्कि अन्य किसी भी दुर्घटना के समय बचाव की समुचित व्यवस्था रहे | लेकिन उससे भी ज्यादा सरकार की जो एजेंसियां  इन बातों की जाँच के लिए बनाई गई हैं उनका दायित्व सबसे ज्यादा है क्योंकि किसी भी कारोबार का लायसेंस देते समय सरकार के विभिन्न विभागों से अनुमति या अनापत्ति ली जाती है | जिसका सही समय ;पर नवीनीकरण  जरूरी है | इसके अलावा संबंधित एजेंसी को समय – समय पर आकस्मिक निरीक्षण भी करना चाहिए , लेकिन ऐसा होता नहीं है | न समय पर नवीनीकरण होता है और न ही जांच | ज़ाहिर हैं इसके पीछे सरकारी अमले का सिर से पाँव तक भ्रष्ट होना है | जबलपुर के जिस अस्पताल में गत दिवस आग लगने की घटना हुई उसकी फायर आडिट अनापत्ति कई माह पूर्व समाप्त होने के बावजूद  किसी भी सरकारी विभाग ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया | इसलिए जितने कसूरवार अस्पताल के संचालक हैं उनसे भी बड़े अपराधी वे सरकारी अधिकारी और उनके मातहत हैं जो  समय पर फायर ऑडिट कर लेते तब शायद 8 मानवीय जिंदगियां बच जातीं  |  इस हादसे के बाद एक बार फिर चिर – परिचित सरकारी कर्मकांड देखने मिलेगा | यदि भोपाल के हमीदिया अस्पताल में हुए अग्निकांड के बाद मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए कड़े  निर्देशों का ईमानदारी से पालन किया जाता तब उक्त हादसा न हुआ होता | इस घटना के बाद मृतकों के परिजनों और घायलों को मुआवजा देने की परम्परा का निर्वहन किया जायेगा | नेता जाकर संतप्त परिवारों के घावों पर दिखावटी मरहम लगायेंगे और कुछ दिनों के शोर – शराबे के बाद सब कुछ पहले जैसा होकर रह जायेगा | इस बारे में ये कहना गलत  न होगा कि बिल्डरों  और अस्पताल संचालकों का प्रशासन के साथ जो अपवित्र गठजोड़ है उसकी वजह से इंसानी जिंदगियाँ आये दिन  खतरे में पड़ जाती है | प्रदेश सरकार के लिए भी ये घटना अग्निपरीक्षा है क्योंकि उसका जो अमला इस हादसे में सह - अभियुक्त है वही जब इसकी जांच करेगा तब उसके  अपने संगी - साथी जाँच की आग में से सुरक्षित निकल ही आयेंगे ये सुनिश्चित है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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