Saturday 27 August 2022

यही हाल रहा तो कुछ और नेता कांग्रेस छोड़ेंगे



जैसी उम्मीद थी वैसा ही हुआ | यद्यपि इसके संकेत तो उसी दिन मिल गये थे जब गुलाम नबी आजाद ने जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के चुनाव अभियान समिति का अद्यक्ष बनाये जाने पर इस्तीफ़ा दे दिया था | बताया जा रहा है प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर किसी अन्य की नियुक्ति के बाद उनके सब्र का बांध टूट गया और  ये भी कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव टाल दिए जाने के कारण वे हताश हो उठे | वैसे तो जी  – 23 नामक असंतुष्ट नेताओं  का नेतृत्व कर रहे श्री आजाद का पार्टी से मोहभंग तो उसी समय से होने लगा था जब उनको राज्यसभा की टिकिट नहीं मिली | कपिल सिब्बल , आनंद शर्मा और मनीष तिवारी के अलावा भी अनेक नेता हैं जो संगठन को लेकर पार्टी आलाकमान से अपनी नाराजगी व्यक्त  करते रहे | उनकी मुख्य मांग  संगठन चुनाव  करवाए जाने की रही है | पार्टी का पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं होने से निर्णय प्रक्रिया में विलंब की शिकायत भी  आम है | कांग्रेस  कार्यसमिति का पुनर्गठन भी  असंतुष्टों की मांग रही है | उम्मीद की जा रही थी कि सितम्बर में पार्टी संगठन के चुनाव हो जायेंगे | लेकिन राहुल गांधी द्वारा अध्यक्ष बनने से पूरी तरह मना कर  देने के बाद जब गांधी परिवार के बाहर का कोई दमदार नेता सामने नहीं आया और परिवार के बेहद करीबी  अशोक  गहलोत भी पीछे हट गए तब दो कार्यकारी अध्य्क्ष बनाकर सोनिया गांधी के नेतृत्व को ही जारी रखने पर विचार हुआ | लेकिन न जाने क्यों इस निर्णय को भी टाल दिया गया | पहले से ही नाराज चल रहे श्री आजाद को लगा कि यही अवसर है अलग रास्ता चुनने का और उन्होंने श्रीमती गांधी को पांच पन्ने की  लम्बी चिट्ठी लिखकर कांग्रेस की दुर्दशा के लिए राहुल को जिम्मेदार ठहरा दिया | अपने इस्तीफे में उन्होंने साफ़ कहा है कि उनको उपाध्यक्ष बनाये जाने के बाद से ही कांग्रेस का पराभव प्रारंभ हुआ | इस्तीफे के बाद पत्रकार वार्ता में भी उन्होंने अपने आरोप दोहराए | जवाब में कांग्रेस ने भी  हमलावर रुख अपनाते हुए याद दिलाया कि पार्टी ने उन्हें सब कुछ दिया लेकिन बुरे दिनों में वे उसे छोड़कर चलते बने | पार्टी के प्रवक्ता जयराम रमेश ने तो श्री आजाद के डीएनए के मोदीमय होने का कटाक्ष तक कसा | दरअसल राज्यसभा से विदाई के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस भावुक अंदाज में श्री आजाद की प्रशंसा की थी उसी दिन से कयास लगाये जा रहे थे कि वे भाजपा के करीब जा सकते हैं | यद्यपि उन्होंने  फिलहाल ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है | संभवतः वे अलग पार्टी बनाकर भाजपा से चुनाव के पहले या बाद में गठबंधन करेंगे | उल्लेखनीय है वे स्वयं भी जम्मू क्षेत्र के वाशिंदे हैं | उनके साथ ही कांग्रेस के कुछ पूर्व विधायकों के इस्तीफे से ये संकेत तो मिला ही है कि वे कांग्रेस की जड़ों में मठा  डालने की कोशिशों में जुट गए हैं जो भाजपा के लिए मददगार हो सकता है | एक बात तो तय है कि श्री आजाद के कांग्रेस से निकल आने के बाद जम्मू कश्मीर में कांग्रेस चेहरा विहीन हो गई है | मौजूदा स्थिति में उसके पास जम्मू अंचल में ही संभावनाएं थीं |  श्री आजाद द्वारा उठाये गए कदम के कारण भाजपा इस क्षेत्र में सफलता के  प्रति आश्वस्त हो चली है | लेकिन पार्टी  से 50 साल के रिश्ते खत्म करने वाले इस नेता को लेकर कांग्रेस की तरफ से जो कुछ भी कहा गया वह भी गौरतलब है | हालाँकि ये कहना  सौ फीसदी सही है कि वे अपने गृह राज्य तक में जनाधार वाले नेता नहीं थे | एक बार लोकसभा में आये तो भी महाराष्ट्र से वरना राज्यसभा के माध्यम से ही सत्ता और संगठन में महत्त्व के पदों पर रहे | उस दृष्टि से कांग्रेस उन पर जो आरोप लगा रही है वे पूरी तरह सही हैं | लेकिन उसके साथ ही ये भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि वे कांग्रेस के ऐसा अल्पसंख्यक चेहरा रहे हैं जो  कभी भी गांधी परिवार के विरुद्ध नहीं गया | ऐसे में संगठन के चुनाव करवाए जाने की उनकी मांग पर ध्यान नहीं  दिया जाना  क्या अव्वल दर्जे की लापरवाही नहीं थी ? उनका ये कहना भी गलत नहीं है  कि सोनिया जी तो नाममात्र की  अध्यक्ष हैं और सारे निर्णय राहुल करते हैं | दरअसल कांग्रेस की सारी समस्याएँ श्री गांधी की कार्यशैली के कारण हैं जो जिम्मेदारी  से तो बचते हैं  लेकिन पार्टी पर अपना कब्जा नहीं  छोड़ना चाहते | राजनीति  के लिहाज से श्री आजाद द्वारा इस्तीफे में कही गयी तमाम बातों का कांग्रेस ने जिस  शैली और शब्दों में जवाब दिया भले ही वे  अपनी जगह सही हैं परन्तु पार्टी से 50 साल का रिश्ता तोड़ते समय उन्होंने जो कुछ लिखकर दिया , पार्टी  को उस पर विचार करना चाहिए क्योंकि आम तौर पर अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं के मन में भी ऐसे ही भाव हैं  | चूंकि श्री आजाद के पास खोने को कुछ नहीं था और पाने के रास्ते भी बंद हो चुके थे इसलिए वे अपना दर्द बयां करते हुए बाहर आ गये | आगे उनकी राजनीति किस दिशा में बढ़ेगी ये तो वे ही बता पाएंगे लेकिन कांग्रेस के लिए वे अनेक ऐसे सवाल छोड़ गये हैं जिनका जवाब तलाशना उसके भविष्य को संवारने में सहायक होगा | पार्टी से जाने वाले व्यक्ति को गद्दार और एहसान फरामोश कह देना आसान है लेकिन उसके द्वारा जो कारण बताये जाते हैं उनमें निजी स्वार्थ के अलावा भी कुछ तो विचारणीय होते होंगे  | गत दिवस श्री आजाद के त्यागपत्र के बाद महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री रहे पृथ्वीराज चव्हाण ने भी अफ़सोस जताते हुए कहा  कि पिछले चार साल से उनको श्री गांधी से मुलाकात का समय नहीं  मिला | वैसे ये शिकायत कांग्रेस में बने हुए तमाम नेताओं की है | जितिन प्रसाद ,  ज्योतिरादित्य सिंधिया , आरपीएन सिंह , कपिल सिब्बल  और अब गुलाम नबी आजाद के जाने के बाद बड़ी बात नहीं आनंद शर्मा सहित कुछ और नेता कांग्रेस छोड़ दें | पार्टी का ये कहना कि इनके जाने से पार्टी शुद्ध हुई , मन को बहलाना मात्र है | यदि गांधी परिवार वाकई चाहता है कि कांग्रेस के अच्छे दिन वापस आयें तो उसे राज परिवार की छवि से बाहर निकलना होगा | फिलहाल तो पार्टी का यह  प्रथम परिवार रोम जलता रहा और नीरो बांसुरी बजाता रहा वाली उक्ति को चरितार्थ कर रहा है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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