हजारों साल के ज्ञात इतिहास और वक्त के थपेड़ों से अपने अस्तित्व को बचाए रखने वाली संस्कृति से समृद्ध देश के साथ गुलामी शब्द का जुड़ना किसी दुर्भाग्य से कम नहीं था | लेकिन हमारे महान भारतवर्ष को इस दुर्भाग्य से गुजरना पड़ा और लगभग चार सौ वर्षों तक विदेशियों की दासता झेलने के बाद आखिरकार 15 अगस्त 1947 को वह अंग्रेजों की दासता से मुक्त होकर एक स्वाधीन देश बना | पहले मुगलों और फिर अंग्रेजों की सत्ता के अधीन रहने के बाद जब हम आजाद हुए तो देश खुशियों में डूबा हुआ था | हालाँकि आजादी की लड़ाई में जितने लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी उससे ज्यादा लोगों को देश के विभाजन में जान गंवाना पड़ी | लेकिन गलतियों से सीख न लेने की प्रवृत्ति हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन गई | और इसीलिए 75 साल पहले भारत माता के टुकड़े कर मुसलमानों के लिए अलग बनाये गए पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों को अपना सब कुछ छोड़कर पलायन हेतु मजबूर किए जाने के बावजूद देश जश्न मनाता रहा | आजादी की वह तारीख कभी भुलाई नहीं जा सकेगी किन्तु आज जब उस दौर की चश्मदीद पीढ़ी लुप्तप्राय है और बीते 75 साल में उन बातों पर पर्दा डालकर रखा गया जिनसे भावी पीढ़ी विभाजन के लिए जिम्मेदार उन गलतियों के बारे में जान सकती थी , तब ये जरूरी हो जाता है कि अमृत महोत्सव की खुशी के साथ उन गलतियों का भी ईमानदार विश्लेषण किया जावे जिनके कारण परतंत्रता का कलंक हमारे माथे पर लगा रहा | इतिहास वह नींव है जिस पर किसी भी देश का भविष्य खड़ा होता है | कहने को तो हमें अपने गौरवशाली अतीत पर बड़ा गर्व है लेकिन चार सौ साल की दासता की यादें शर्मिंदा करती हैं | और इसीलिए आज स्वाधीनता दिवस पर उन बातों पर भी चिंतन – मनन होना चाहिए जिनके कारण हमने अपनी आजादी खोई थी | सच्चाई ये है कि आज भी हमारी एकता और अखंडता पर खतरा मंडरा रहा है | भले ही अब 19 वीं और 20 वीं सदी के उपनिवेशवाद का लौटना संभव नहीं रहा लेकिन देश को भीतर से कमजोर करने वाली वह मानसिकता पुष्पित – पल्लवित है जिसने मोहम्मद गौरी और गजनवी जैसों के लिए लाल कालीन बिछाये थे | पाठक सोच रहे होंगे अमृत महोत्सव जैसे अवसर पर गुलामी के घावों को कुरेदने का क्या औचित्य है ? लेकिन बिना इतिहास में झांके ऐतिहासिकता का जिक्र सार्थक नहीं होता | इसलिए ये जरूरी है कि अपनी उपलब्धियों को जीवंत रखने के साथ ही हमें उन गलतियों को भी सदैव याद रखना चाहिए जिनकी वजह से सोने की चिड़िया विदेशी पिंजरे में कैद होकर रह गई थी | जिस पश्चिमी सीमा पर हमारे सबसे जुझारू और लड़ाकू जाति समूह रहते थे वहीं से सबसे जयादा आक्रान्ता आकर हमें लूटकर जाते रहे और अंततः एक ने आकर यहीं ठिकाना जमा लिया | सोचने का विषय ये है कि जब पहला विदेशी हमला हुआ तभी हमने इस बात का पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किया कि दोबारा किसी की हिम्मत न हो हमारी तरफ देखने की | विचारणीय है कि जिस देश ने सिकंदर के विश्व विजय के इरादों को ध्वस्त कर दिया हो वह सैकड़ों की संख्या में आने वाले लुटेरों के सामने घुटना टेक कैसे हो गया ? इतिहास में छिपी उन भयानक भूलों पर पड़ी धूल को हटाये बिना आजादी के अमृत महोत्सव का जश्न महज औपचारिकता का निर्वहन रह जाएगा | आज देश में एक ऐसा वर्ग है जिसे भारत की प्राचीनता पर ही संदेह है | संगठित देश के तौर पर हमारे अस्तित्व को नकारने वाले भी हैं | ऐसे लोगों की शातिर सोच बीते 75 साल से ये समझाने की साजिश रच रही है कि कारवाँ आते गए हिन्दोस्तां बनता गया | आज जरूरत इस सोच को बदलने की है | आजादी के 75 सालों में देश ने बेशक बहुत कुछ किया और कमाया | वैश्विक मंचों पर हमारी उपस्थिति उभरती हुई विश्व शक्ति का एहसास करवाती है | पृथ्वी से अन्तरिक्ष तक हमारी उपलब्धियों का गौरवगान हो रहा है | सैन्य और आर्थिक मोर्चे पर हमारी शक्ति का लोहा पूरी दुनिया मान रही है | लेकिन आज भी वे कारण उपस्थित हैं जिनसे आजादी के लिए खतरा है | सता की खातिर समाज को जातियों में खंड – खंड कर देना , धार्मिकता के नाम पर सदियों पुरानी अरब से आयातित कट्टरता को गले से लगाये रखना , सेना के पराक्रम पर सवालिया निशान लगाना ,और देश की अखंडता के विरुद्ध उठने वाली आवाजों को आजादी का नाम देना इस बात का प्रमाण है कि आज भी जयचंद और मीर जाफर वाली सोच को जीवित रखने वाले मौजूद हैं , जो चिंता का विषय है | हालाँकि बीते 75 सालों में बहुत कुछ ऐसा हुआ जिस पर गर्व किया जा सकता है और जिस तरह का आत्मविश्वास युवा पीढ़ी में है वह आश्वस्त करता है | राजनीतिक स्थायित्व और नेतृत्व की दृढ़ता की वजह से किसी भी वैश्विक संकट के समय दुनिया भारत की तरफ देखने लगी है | विश्व जनमत को अपनी तरफ मोड़ने की शक्ति भी हम हासिल चुके हैं | वैश्विक महामारी के रूप में आई आपदा का जिस कुशलता और साहस के साथ भारत ने मुकाबला किया उससे विश्व आश्चर्यचकित रह गया | लेकिन आंतरिक तौर पर देश को कमजोर करने वाली विघटनकारी ताकतें भी तेजी से सिर उठा रही हैं | पंजाब में खालिस्तानी मानसिकता का उभार शुभ संकेत नहीं है | इसी तरह इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाने का जो सुनियोजित्त षडयंत्र हाल के दिनों में देखने मिला वह एक और विभाजन की भूमिका तैयार करने जैसी शरारत ही है | क्षेत्रीयता के नाम पर देश की अखंडता को दी जा रही चुनौती दुर्भाग्यपूर्ण है | सबसे बड़ी समस्या है भ्रष्टाचार , जो देश को घुन की तरह खाए जा रहा है | सरकारी एजेंसियों द्वारा की जाने वाली छापेमारी में जिस बड़े पैमाने पर काला धन बाहर आ रहा है उससे यह साबित हो गया है कि बीते 75 सालों में किस बेरहमी से देश को लूटा गया | जनकल्याण की सरकारी योजनाओं का लाभ सही लोगों को मिलने की बजाय नौकरशाहों और नेताओं के गठजोड़ ने हड़प लिया | लोकतंत्र के नाम पर चुनावों में जनता के धन की बर्बादी के खेल को रोकना रोकना समय की मांग है वरना मुफ्तखोरी का नशा कार्यसंस्कृति को पूरी तरह नष्ट कर देगा | कृषि का घटता रकबा भी भविष्य में कृषि प्रधान देश के विशेषण के छिन जाने का कारण बन सकता है | हर समय किसी न किसी राज्य में होने वाले चुनाव नीतिगत अनिश्चितता के साथ ही भ्रष्टाचार के बड़े स्रोत बन गये हैं | कुल मिलाकर आजादी के इस अमृत महोत्सव में हमें उन विषैली प्रवृत्तियों के प्रति भी सावधान रहना होगा जो धीरे – धीरे व्यवस्था रूपी शिराओं में फैलती जा रही हैं | बीते 75 सालों में जो हासिल किया गया उस पर गर्व करना पूरी तरह सही है लेकिन आत्ममुग्धता से बचते हुए उन हालातों और गलतियों को दोहराए जाने से बचना होगा जिनके कारण भारत माता को सैकड़ों सालों तक दासता का दंश सहना पड़ा | इसलिए आज हर्षोल्लास के साथ ही गंभीर चिंतन का भी दिन है क्योंकि गुलामी की मानसिकता के बीज किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं और जरा सी असावधानी होते ही उनके अंकुरित होने का अंदेशा बना हुआ है | इस बात को सदैव याद रखना चाहिए कि राजनीतिक और आर्थिक से ज्यादा मानसिक गुलामी ज्यादा खतरनाक होती है | 15 अगस्त 1947 को हम राजनीतिक तौर पर भले ही स्वतंत्र हो गए लेकिन मानसिक गुलामी बदस्तूर जारी रही , वरना भारत के साथ इण्डिया शब्द संविधान में न लिखा जाता |
स्वाधीनता के अमृत महोत्सव पर अनन्त शुभकामनाओं सहित ,
रवीन्द्र वाजपेयी
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