वायुसेना का एक मिग 21 प्रशिक्षक विमान गत दिवस राजस्थान के बाड़मेर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसमें सवार दोनों पायलट मारे गए | रूस में निर्मित यह लड़ाकू विमान एक ज़माने में भारतीय वायुसेना की असली ताकत हुआ करता था | बाद में इसकी असेम्बलिंग भारत में भी होने लगी | 1985 से इसका निर्माण बंद कर दिया गया | हालाँकि रूस की मदद से इन विमानों का तकनीकी उन्नयन किये जाने से ये उपयोग लायक बने रहे | उनका उपयोग ज्यादातर प्रशिक्षण के तौर पर ही किया जा रहा है | गत दिवस दुर्घटनाग्रस्त हुआ विमान भी उसी कार्य हेतु था | मार्च 2019 में विंग कमांडर अभिनंदन के जिस विमान को पाकिस्तान ने मार गिराया था वह भी मिग 21 ही था | इस श्रृंखला के विमानों में मिग 27 भी थे | लेकिन इनके बाद सुखोई जैसे उन्नत लड़ाकू विमान आ आने से मिग पुराने समझे जाने लगे | बावजूद इसके वायुसेना में इसकी मौजूदगी बनी रही | चूंकि सेना संबंधी मामले सार्वजनिक विमर्श में कम ही आते हैं इसलिए इन पर लोगों का ध्यान नहीं जाता | सेना का काम देश की सुरक्षा करना होता है इसलिए उसकी जरूरतें पूरी करना आवश्यक होता है | लेकिन ये दुर्भाग्य है कि इस बारे में राजनीतिक नेतृत्व लम्बे समय तक उदासीन बना रहा जिसके कारण सेना के तीनों अंगों के पास साजो – सामान की कमी होने लगी | विशेष रूप से डा. मानमोहन सिंह की सरकार के दौरान सैन्य खरीदी काफी कम हुई जिसे लेकर तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष द्वारा प्रधानमन्त्री को लिखा गया पत्र काफी चर्चित हुआ था | हालाँकि बीते आठ साल में सेना को हर दृष्टि से सुसज्जित बनाने का प्रयास हुआ लेकिन उसके बाद भी ये विचारणीय है कि आखिरकार क्या कारण है कि मिग 21 जैसे विमान जो आधुनिक सैन्य मापदंडों के लिहाज से बाबा आदम के ज़माने के माने जाते हैं , आज भी वायुसेना में बने हुए हैं | उनकी तकनीकी उत्कृष्टता और मारक क्षमता निश्चित रूप से अच्छी रही होगी लेकिन जिस तरह से लगातार ये विमान दुर्घटनाग्रस्त होते रहते हैं उसे देखते हुए इनका उपयोग सवाल खड़े करता है | इस बारे में जो जानकारी आती है उसके मुताबिक विदेशों से जिन अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों के सौदे हाल के वर्षों में किये गये उनकी आपूर्ति में अभी समय लगेगा | कोरोना के कारण भी इसमें व्यवधान आया है | इसी तरह रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हो जाने से भी भारत को होने वाली सैन्य सामग्री की आपूर्ति पर असर पड़ा है | तकरीबन हर साल वायुसेना के अनेक मिग 21 विमान प्रशिक्षण या अन्य उद्देश्यों से की जाने वाली उड़ानों के दौरान दुर्घटना का शिकार होते हैं | उससे होने वाला आर्थिक नुकसान तो अपनी जगह है लेकिन उसकी वजह से जो पायलट मारे जाते हैं वह कहीं ज्यादा बड़ा नुकसान हैं | ये देखते हुए केंद्र सरकार को इस बारे में गंभीरता से विचार करते हुए बूढ़े हो चुके विमानों को वायुसेना से अलग करने का फैसला कर लेना चाहिए | हालाँकि इस बारे में वायुसेना की आवश्यकताओं के अलावा मारक क्षमता का ध्यान भी रखना होगा लेकिन मिग 21 श्रृंखला के लड़ाकू विमानों का दौर खत्म हो चुका है | जब हमारे देश के सत्ताधारी नेताओं के लिये नए – नए अत्याधुनिक विमान , हेलीकाप्टर और शानदार कारें खरीदने में विलम्ब नहीं किया जाता तब सेना से सम्बन्धित खरीद में देर क्यों होती है , ये सवाल बेहद महत्वपूर्ण है | इस बारे में उल्लेखनीय है कि वाजपेयी सरकार के समय रक्षा मंत्री रहे जार्ज फर्नांडीज जब सियाचिन दर्रे के दौरे पर गए तब उन्हें बताया गया कि बर्फ पर चलने वाले स्कूटरों की आपूर्ति लंबे समय से रक्षा मंत्रालय के दफ्तर में अटकी पडी है | तब उन्होंने दिल्ली आकर अधिकारियों को फटकार लगते हुए अविलम्ब खरीदी करने का आदेश देने के साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों को दो सप्ताह तक सियाचिन में तैनात करने का फरमान भी जारी किया जिससे उनको एहसास हो सके कि विषम परिस्थितियों में हमारे जवान किस तरह रहते हैं ? मिग 21 विमानों को वायुसेना से मुक्त करने के बारे में काफी पहले निर्णय हो जाता तो अनेक होनहार पायलटों की ज़िन्दगी बच जाती | इस बारे में सोचने लायक बात ये है कि विमान तो पैसों से खरीदा जा सकता है किन्तु वायुसेना को एक पायलट तैयार करने में बरसों लग जाते है | और फिर यात्री उड़ानों के लिए तो विदेशी व्यवसायिक पायलटों की सेवाएं भी ली जाती हैं किन्तु वायुसेना में ऐसा संभव नहीं होने से एक – एक पायलट अमूल्य है | ये भी शोचनीय है कि बीते 75 साल के दौरान भले ही हमारी सेना ने अनेक युद्धों में शत्रु को परास्त किया हो लेकिन सैन्य सामग्री के उत्पादन और उसमें होने वाले तकनीकी उन्नयन के मामले में हमारी प्रगति संतोषजनक नहीं है | बताया जा रहा है कि मिग 21 की पहली खरीद 1961 में की गई थी जबकि दिसम्बर 2019 में मिग 27 को भी वायुसेना से छुट्टी दे दी गई किन्तु उसके बाद भी मिग 21 विमान का उपयोग चौंकाने वाला है | जिस विमान के साथ गत दिवस हादसा हुआ हालाँकि वह प्रशिक्षण हेतु उपयोग होता था लेकिन इस बात की जाँच गहराई से होनी चाहिए कि वह तकनीकी तौर पर उपयोग करने लायक था भी या नहीं ? मोदी सरकार आने के बाद रक्षा खरीदी का काम काफी तेजी से चल रहा है और यही वजह है कि हम चीन से निपटने में डरते नहीं हैं लेकिन थोड़े – थोड़े अन्तराल से वायुसेना के विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाओं से सेना का मनोबल गिरता है | भले ही उनमें मारे जाने वाले सैनिकों या पायलटों के परिवारों को सरकार हर तरह की मदद देती हो लेकिन राजनेताओं को ये बात समझनी चाहिए कि एक सैनिक की मौत केवल उसके परिवार नहीं वरन पूरे देश का नुकसान होती है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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