Thursday 14 July 2022

शेरों का मुंह बंद कराने का असफल प्रयास : छेड़छाड़ तो पहले की गई थी



शेरों का मुंह बंद कराने का असफल प्रयास :  छेड़छाड़ तो पहले की गई थी

हालाँकि राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों को लेकर बरती जाने वाली सतर्कता स्वागतयोग्य है लेकिन बीते दिनों नये  संसद भवन में लगाये गए चार शेरों वाले राष्ट्रीय चिन्ह का अनावरण प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया तो विपक्ष सहित असहिष्णुता के झंडाबरदारों की  छाती पर सांप लोटने लगा | पहले – पहल तो इस बात पर उंगलियां उठाई गईं कि उस चिन्ह का अनावरण प्रधानमन्त्री से क्यों करवाया गया ? लेकिन जब इस मुद्दे पर किसी ने  ध्यान नहीं दिया तब इस बात को लेकर हाय - तौबा मचाया जाने लगा कि वाराणसी के निकट  सारनाथ में जिस अशोक स्तम्भ की अनुकृति को आजादी के बाद राष्ट्रीय चिन्ह बनाया गया उसमें बने शेर शांत और सौम्य हैं जबकि नई संसद में लगाये जा रहे  प्रतीक चिन्ह वाले शेरों का मुंह खुला हुआ है जिससे भय की अनुभूति होती है | इस आधार पर  हर किसी को ये ऐतराज सही लगा क्योंकि बीते सात दशक से भी ज्यादा से जो प्रतीक चिन्ह प्रचलित  है उसमें प्रदर्शित शेर अपना मुंह बंद किये हुए हैं | ये आरोप भी लगाया गया कि मौजूदा सरकार ने हिंसा की पक्षधर होने से क्रोधित शेरों वाले प्रतीक चिन्ह को नये संसद भवन में लगाने का फैसला किया | ये भी कहा गया कि जिस अशोक स्तम्भ से हमारा प्रतीक चिन्ह लिया गया है यह उसका और शांति – अहिंसा के प्रवर्तक बौद्ध धर्म का अपमान है | इस बारे में दो राय नहीं हो सकतीं कि राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह और राष्ट्रध्वज के मौलिक स्वरूप से छेड़छाड़ का अधिकार किसी को नहीं है | राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री  बदलने की तरह ही परस्पर विरोधी विचारधारा वाले दल और गठबंधन सत्ता में आते – जाते रहते हैं | केंद्र और राज्यों में अलग – अलग दलों की सत्ता भी होती है | लेकिन देश की पहिचान कहे जाने वाले राष्ट्रीय चिन्ह अपरिवर्तित रहते हैं | एक देश के तौर पर हमारी एकता और अखंडता की अभिव्यक्ति के साथ ही कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है जैसे नारे की सार्थकता इन चिन्हों से ही प्रमाणित होती है | इन्हें विकृत करने का इरादा किसी भी दृष्टि से स्वीकार्य नहीं हो सकता और इसीलिये जब  नये संसद भवन पर लगाये जा रहे राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के बारे में  आरोप लगा कि  मूल  छवि को बदल दिया गया तब हर किसी का ध्यान उस तरफ गया | सोशल मीडिया के जरिये  केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री पर  हमले होने लगे | फासीवादी मानसिकता जैसे घिसे – पिटे आरोप भी हवा में उछाले गए | लेकिन झूठ की हवा उस समय निकल  गई जब  शिल्पकार लक्ष्मण व्यास इस दावे के साथ सामने आये कि सारनाथ में रखी मूल आकृति वाले शेरों का मुंह भी खुला हुआ है और जिस प्रतीक चिन्ह का अनावरण श्री मोदी द्वारा किया गया वह उसकी हूबहू नक़ल है | नए संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष के ऊपर लगने वाले इस प्रतीक चिन्ह की प्रामाणिकता सामने आने के बाद विरोध के स्वर तो शांत हो गये लेकिन इस प्रकरण से एक बार फिर उन लोगों की कुंठा सामने आ  गई जो 2014 के बाद से चैन की नींद नहीं सो पा रहे | दरअसल  जिस सत्ता के बलबूते वे देश में राष्ट्रवादी शक्तियों के विरुद्ध अभियान चलाया करते थे वह हाथ से चली जाने के बाद उनकी असलियत सामने आने लगी है | वामपंथी विचारधारा के लोगों ने कांग्रेस में घुसपैठ कर सत्ता का खूब दोहन किया और साहित्य , कला संस्कृति जैसे क्षेत्रों में शहरी नक्सलवाद की जड़ें मजबूत कीं | मोदी सरकार ने चूंकि  इनकी गतिविधियों पर नकेल कसते हुए  देश – विदेश से मिलने वाली खैरात पर रोक लगाई तो ये तत्व बौखलाकर असहिष्णुता जैसे मुद्दे उछालकर अशांति और अस्थिरता पैदा करने का षडयंत्र रचने  लगे | लेकिन 2019 में भी इनके मंसूबों पर जनता ने पानी फेर दिया | जातिवाद , परिवारवाद और तुष्टीकरण के जरिये  अपनी राजनीति चलाने वाले जिस तरह मतदाताओं द्वारा तिरस्कृत किये जा रहे हैं उससे उनमें घबराहट भी है और बौखलाहट भी | इसी कारण आये दिन कुछ न कुछ ऐसा मुद्दा उछाला जाता है जिससे देश में तनाव बढ़े | राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के बारे में वास्तविकता सामने आने के बाद  सवाल ये उठता है कि जब सारनाथ में रखे अशोक स्तम्भ वाले शेरों के मुंह खुले हुए हैं तब बंद मुंह वाले प्रतीक चिन्ह को स्वीकार करने वालों द्वारा मौलिकता का उल्लंघन किये जाने पर  आज तक किसी का  ध्यान क्यों नहीं गया ?  अब जबकि सही स्थिति का पता चल गया है तब क्या राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह की प्रचलित आकृति को भी मूल आकृति के अनुरूप ढाला जायेगा क्योंकि उसमें एकरूपता होना जरूरी है | लेकिन उसके पहले जिन्होंने ये विवाद खड़ा किया उन्हें अपने किये पर माफी मांगना चाहिए | इसी के साथ केंद्र सरकार को इस बारे में मानसून सत्र में संसद की स्वीकृति भी ले लेनी चाहिये जिससे भविष्य में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह को लेकर इस तरह के गैर जिम्मेदार विरोध की गुंजाईश न रहे | दरअसल नई संसद बनाने का फैसला भी विघ्नसंतोषियों को हजम नहीं हो रहा जबकि ये बात सामने आ चुकी है कि न सिर्फ वर्तमान संसद भवन अपितु साउथ  और नॉर्थ ब्लॉक नामक केन्द्रीय सचिवालय में स्थान का अभाव होने से अनेक मंत्रालय दूर - दूर स्थित हैं | नई संसद  प्रधानमंत्री की दूरगामी सोच का प्रमाण है जिसे रिकॉर्ड समय में तैयार किया जा रहा है | इसके बन जाने के बाद केंद्र सरकार का समूचा सचिवालय एक ही स्थान पर आ जायेगा जिससे मंत्रियों और सांसदों  के साथ ही उनमें  जाने वाले आम लोगों  को भी बेवजह भागदौड़ और परेशानी से मुक्ति मिलेगी | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


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