Tuesday 26 July 2022

गडकरी के काम की तरह ही उनकी स्पष्टवादिता भी प्रशंसनीय है



केंद्र सरकार में राजनीतिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा गृहमंत्री अमित शाह को सबसे ताकतवर माना जाता है किन्तु जनमानस पर केन्द्रीय मंत्रीमंडल के सदस्यों के प्रभाव की बात करें तो भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रशंसित हैं | 2014 से ही वे इस विभाग का कार्य देख रहे हैं और उनके विरोधी भी इस बात को बेझिझक स्वीकार करते हैं कि देश में ग्रामीण सड़कें , राजमार्ग और  एक्सप्रेस हाइवे जैसे  वैश्विक स्तर के जो विकास कार्य तेजी से चलते हुए समय सीमा से भी पहले पूरे हो रहे हैं उनका श्रेय श्री गडकरी को ही है | महाराष्ट्र में लोकनिर्माण विभाग के मंत्री रहते हुए उन्होंने मुम्बई – पुणे एक्सप्रेस वे का काम जिस गुणवत्ता से समयसीमा के भीतर और वह भी अनुमानित लागत से कम पर पूरा करवाया उसकी राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा हुई | मुम्बई में अनेक फ्लाय ओवर , वरली सी लिंक और ऐसे ही अनेक कार्य उनके द्वारा जिस तेजी  से करवाए गये उसके कारण अति भ्रष्ट समझे जाने लोकनिर्माण विभाग को एक नई छवि मिली | उनके उस करतब से प्रभावित होकर  तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी वाजपेयी ने उन्हें राष्ट्रीय राजमार्गों के साथ ही ग्रामीण सड़क परियोजना का काम सौंपा | श्री गडकरी ने बड़ी लगन से अटल जी के उस क्रांतिकारी सुझाव पर काम भी शुरू कर दिया | देखते ही देखते स्वर्णिम चतुर्भुज नामक राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना शुरू हुई और उसी के साथ ही प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के काम को भी गति प्रदान की गई | 2004 में वाजपेयी सरकार चली जाने के बाद उन कार्यों की गति मंद पड़ गई और तब लोगों  को सरकार में श्री गडकरी का अभाव महसूस हुआ | ये कहने वाले अनगिनत मिल जायंगे कि यदि अटल जी पांच साल और सत्ता में रहते तो सड़कों के विकास का महायज्ञ अब तक पूरा हो चुका होता | 2014 में मोदी सरकार बनी तो उम्मीद के अनुसार गडकरी जी को ही उनका अधूरा काम पूरा करने का जिम्मा सौंपा गया और बीते आठ सालों के भीतर उन्होंने  जो कर दिखाया वह उनकी कार्यकुशलता का साक्षात प्रमाण है | अपने लक्ष्य पर सदैव नजर रखना उनकी विशेषता है और सबसे बड़ी बात जो श्री गडकरी की पसंद की जाती है वह हैं उनकी स्पष्टवादिता | न सिर्फ अपने विभाग अपितु राष्ट्रीय और राजनीतिक विषयों पर भी वे जिस साफगोई से अपने विचार रखते हैं वह गुण आज के अधिकतर राजनेताओं में देखने नहीं मिलता | कुछ समय पहले जयपुर की विधानसभा में आयोजित एक कार्यक्रम में उनका ये कहना काफी चर्चा में आया था कि राजनीति में कार्यरत सभी लोग असंतुष्ट हैं | जिसे मंत्री पद नहीं मिलता वह उसकी वजह से दुखी है और मंत्री बन जाने के बाद  मनमाफिक विभाग न मिलने पर असंतुष्ट बना घूमता है | अच्छा विभाग वाला मुख्यमंत्री न बन पाने से दुखी रहता है और मुख्यमंत्री को इस बात की चिंता खाये जाती है कि न जाने कब कुर्सी छिन जाये | ऐसा कहते हुए उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के दौरान पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिले अनुभव साझा करने में भी संकोच नहीं किया | बीते रविवार एक निजी कार्यक्रम में बोलते  हुए उनका ये कहना राजनीतिक जगत में चर्चा का विषय बन गया है कि कई बार उनको लगता है कि मैं राजनीति कब छोड़ दूं , कब नहीं | अपनी बात स्पष्ट करते हुए वे बोले कि जीवन में राजनीति के अलावा भी करने वाली कई चीजें हैं | उन्होंने कहा कि राजनीति समाज और उसके विकास के लिए है लेकिन आज यह 100 फीसदी सत्ता के लिए होकर रह गयी है | हो सकता है उनके इस भाषण का राजनीतिक अर्थ सरकार के साथ तालमेल न होने के रूप में निकाला जाए | उद्धव ठाकरे की शिवसेना के मुखपत्र सामना ने तो  इस बयान के पीछे  महाराष्ट्र की सरकार को गिराये जाने के भाजपाई तौर – तरीकों के प्रति श्री गडकरी की नाराजगी बताई है | सामना में ये भी लिखा गया कि उनको दोबारा  राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से रोकने के लिए उनके यहाँ छापे डलवाए गए थे | यदि वे दूसरी बार  भाजपा अध्यक्ष बने होते तो पार्टी कहीं बेहतर रहती | कुछ समय पहले  श्री गडकरी का ये बयान भी सुर्ख़ियों में आया था कि कांग्रेस को मजबूत होना चाहिए क्योंकि उसके कमजोर होने से क्षेत्रीय दलों का ताकतवर होना देश के लिये नुकसानदेह है | उनका ऐसा कहना प्रधानमंत्री के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के सर्वथा विपरीत है | राजनीति छोड़ने संबंधी उनके ताजा भाषण पर सोशल मीडिया में भी खूब टिप्पणियाँ की जा रही हैं | लेकिन उन्होंने जो कहा उसके सकारात्मक पहलू को देखा जाना चाहिए | राजनीति के सौ फीसदी सत्ता केन्द्रित होने की बात यदि केंद्र सरकार का ऐसा मंत्री कहे जिसकी पूरे  देश तो क्या दुनिया भर में  तारीफ होती हो तो ये वाकई साहस का काम है | ये बात भी जगजाहिर है कि वे रास्वसंघ के भी बेहद निकट हैं | खुद को पार्टी का पोस्टर बॉय कहने वाले गडकरी जी पहले भी ये कहते आये हैं कि राजनीति में पैसा कमाने के लिए आने की सोच गलत है और  व्यक्ति को अपनी रोजी - रोटी की व्यवस्था करने के बाद ही राजनीति का रास्ता चुनना चाहिए अन्यथा वह पथभ्रष्ट हो जाएगा | ऐसे में उनका संदर्भित हालिया भाषण उनकी स्पष्टवादिता का एक और उदाहरण लगता है | उन्होंने कभी भी अपने काम के प्रति अरुचि या असंतोष व्यक्त नहीं किया | सही बात तो ये है कि सत्ता के उच्च आसन पर बैठकर भी वे खुलकर बोलने का साहस रखते हैं | जयपुर वाले कार्यक्रम में उनका ये कहना राजनीति में दिन रात परेशान रहने वालों के लिए मार्गदर्शक था कि जो नहीं मिला उसका रोना रोने के बजाय जो मिल गया उसका आनंद लेने का प्रयास करें तो तनावमुक्त जीवन जिया जा सकता है | उनके बयानों का  राजनीतिक गुणा भाग लगाने की बजाय उनमें समाहित ज्ञान को ग्रहण किया जाए तो ज्यादा अच्छा होगा | सत्ता में  बैठा मंत्री यदि राजनीति को शत प्रतिशत  सत्ता केन्द्रित  बता रहा है तो उसकी स्पष्टवादिता की प्रशंसा होनी चाहिए |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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