Monday 11 July 2022

ब्रिटेन की राजनीति में भारतीय मूल के लोगों का बढ़ता प्रभाव शुभ संकेत



रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किये जाने के बाद से दुनिया भर में कूटनीतिक , सामरिक और आर्थिक समीकरण बदल रहे हैं | ये  महज संयोग है या ज्योतिषीय गणना के अनुसार नक्षत्रों की स्थिति  में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव ये विश्लेषण का विषय है किन्तु वैश्विक परिदृश्य में लगातार आ रहे बदलाव निश्चित रूप से चौंकाने वाले हैं | श्रीलंका में आये आर्थिक संकट से उत्पन्न राजनीतिक अस्थिरता और चीन द्वारा ताईवान पर सैन्य कार्रवाई के जरिये कब्ज़ा करने की आशंका के बीच जापान , आस्ट्रेलिया ,अमेरिका और भारत के बीच बने क्वाड नामक संगठन की बैठक , रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों के कारण विश्व भर में महंगाई की मार , कच्चे तेल और गैस की किल्लत से उत्पन्न ऊर्जा संकट , रूस और यूक्रेन की लड़ाई लम्बी खिंचने से विश्व युद्ध का बढ़ता खतरा आदि बातों के बीच जापान के पूर्व  प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या और श्रीलंका में जन विद्रोह की घटनाओं से पूरी दुनिया हैरान कर दिया | लेकिन इसी बीच ब्रिटेन में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के विरुद्ध उनकी पार्टी में उठे विरोध  ने न सिर्फ यूरोप अपितु भारत का ध्यान भी आकर्षित किया  है | जॉनसन पर मुख्य आरोप ये हैं कि उन्होंने अपने एक सहयोगी क्रिस पिंचर पर लगे यौन दुराचार के आरोपों की  उपेक्षा करते हुए उन्हें संसद में उप मुख्य सचेतक बना दिया | हालाँकि उन्होंने उसके लिए माफी मांग ली लेकिन उनके साथियों ने ही इसे स्वीकार नहीं किया और 50 से ज्यादा मंत्रियों और  सांसदों ने त्यागपत्र देकर उन पर दबाव बना दिया | उसके बाद वे प्रधानमंत्री  पद त्यागने के लिए तो राजी हो गए लेकिन आगामी अक्टूबर में कंजरवेटिव पार्टी के अधिवेशन  तक सत्ता  पर बने रहने की जिद कर रहे हैं | दूसरी ओर उन पर तत्काल कुर्सी खाली करने और कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त करने की मांग जोर पकड़ रही है | उनके उत्तराधिकारी के तौर पर जिन लोगों की चर्चा हो रही है उनमें भारतीय मूल के पूर्व मंत्री ऋषि सुनक और प्रीति पटेल भी हैं |  ऋषि के पास वित्त और प्रीति के पास गृह विभाग का होना इस बात का सूचक है कि भारत को सैकड़ों वर्षों तक गुलाम बनाकर रखने वाले ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों ने  चिकित्सा , शिक्षा और व्यवसाय के अलावा  राजनीति में भी  अपना दखल इस हद तक बढ़ा लिया कि उन्हें प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल माना जाने लगा | उल्लेखनीय है ऋषि के पूर्वज बहुत पहले भारत छोड़कर कीनिया और फिर वहां से ब्रिटेन में जा बसे | लेकिन उनका विवाह देश की प्रमुख आईटी कम्पनी इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की बेटी से हुआ है | और इस वजह से भारत के साथ उनका जीवंत सम्पर्क मानना गलत नहीं होगा | हालाँकि प्रीति पटेल के पति अंग्रेज हैं और वे पूरी तरह से ब्रिटिश रंग में रंगी हैं | बावजूद इसके यदि इन दोनों में से कोई भी प्रधानमंत्री बन जाता है तो भारत के साथ ब्रिटेन के रिश्तों में नजदीकी  बढ़ेगी |  यूक्रेन संकट के बाद  रूस पर प्रतिबंध लगने के बावजूद जब भारत ने उसकी निंदा करने से खुद को अलग रखते हुए व्यापार जारी रखा तब अमेरिका के साथ ब्रिटेन भी काफी नाराज था | लेकिन उसके बाद भी वह भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है जिसे जल्द अंतिम रूप दे दिया जायेगा | कुछ  समय पहले श्री जॉनसन की भारत यात्रा के पीछे ये भी एक उद्देश्य था | बहरहाल ये तो तय है कि अमेरिका और कैनेडा की तरह ही ब्रिटेन में भी भारतीय मूल के लोगों के दबदबे  में वृद्धि हुई  है | आज की दुनिया में कैरीबियन देशों के साथ ही कैनेडा , अमेरिका , ब्रिटेन , ऑस्ट्रेलिया , मॉरीशस , द. अफ्रीका  सहित अनेक अफ्रीकी देशों में भारतीय मूल के लोगों ने व्यापार , उद्योग , विज्ञान , बैंकिंग के साथ ही राजनीति में  जो  पकड़   बनाई वह निश्चित तौर पर शुभ संकेत है | भले ही ऐसे लोगों ने  उन देशों की  नागरिकता ग्रहण कर ली हो और  ऋषि तथा  प्रीति  सदृश  युवाओं के जन्म  के साथ लालन - पालन भी वहीं हुआ किन्तु उनका नाम भारतीय होना इस बात का प्रमाण है कि उनके परिवार का भारत के साथ सांस्कृतिक जुड़ाव  कायम है | संचार क्रांति और आवागमन के साधनों के विकसित हो जाने से भारत के साथ इन लोगों के सम्पर्क में नवीनता और निरंतरता दोनों नजर आने लगे हैं | दो पीढ़ी से विदेश में रह रहे भारतीय  मूल के अनेक लोगों ने अपने पूर्वजों की भूमि में  निवेश के लिये हाथ बढ़ाये हैं | 11 मई 1998 को भारत  द्वारा परमाणु परीक्षण किये जाने पर दुनिया भर की बड़ी ताकतों ने हम पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे | उसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया भर में फैले भारतीय मूल के लोगों से सहयोग की अपील की जिसका जादुई असर हुआ और देखते ही देखते बड़ी मात्रा में  विदेशी मुद्रा भारत में आई | उसके बाद से ही प्रवासी भारतीय सम्मेलन आयोजित होने लगे जिसका जबरदस्त लाभ देश को हुआ | बीते कुछ दशकों से  बहुत बड़ी संख्या में युवा पीढ़ी विदेशों में जाकर कार्यरत है | खाड़ी देशों में तो श्रमिक स्तर तक के भारतीय भी  हैं लेकिन विकसित देशों में इंजीनियरिंग , चिकित्सा , शिक्षा , अनुसन्धान , अन्तरिक्ष विज्ञान , सूचना तकनीक , प्रशासनिक और वित्तीय प्रबंधन के अलावा राजनीति में भी भारतवंशियों ने कामयाबी के झंडे फहराए हैं | इसकी वजह से साठ – सत्तर के दशक तक सपेरों और मदारियों का देश समझे जाने वाले भारत के प्रति दुनिया का नजरिया बदला है | भारत के उद्योगपतियों ने दुनिया की प्रतिष्ठित  औद्योगिक   इकाइयों को खरीदने का जो साहस बीते वर्षों में दिखाया उसने देश की प्रतिष्ठा में वृद्धि की है | यही वजह है कि आजादी के पहले या उसके एक –  दो दशक बाद तक विदेशों में जा बसे भारतीयों को उतना सम्मान नहीं मिला जितना आज मिल रहा है | उस दृष्टि से विदेशों में सरकारी अथवा अन्य किसी महत्वपूर्ण दायित्व को ग्रहण करने वाले  भारतीय को अपने मूल देश का नाम बताने में शर्म महसूस नहीं होती | अमेरिका में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का भले ही सीधे तौर पर भारत के साथ रिश्ता न हो लेकिन उनके निर्वाचन में भारतीयों का बड़ा योगदान था | उस देश में राज्यों के गवर्नर और सांसदों के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति की प्रशासनिक टीम में भारतीयों की बड़ी संख्या का ही प्रभाव है कि वहाईट हॉउस में भी दीपावली मनाई जाने लगी | ये देखते हुए यदि भारतीय मूल का कोई भी व्यक्ति ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने में सफल होता है तो उससे भारत की प्रतिष्ठा और स्वीकार्यता वैश्विक स्तर पर और बढ़ेगी |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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