Sunday 10 July 2022

श्रीलंका की आग में भारत को अपने हाथ जलने से बचाना होगा



भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में जिस तरह का जन विद्रोह हो गया है उसके लिए वहां के शासक विशेष रूप से राजपक्षे परिवार पूरी तरह दोषी है जिसने बजाय भारत के , चीन जैसे शातिर और गैर भरोसेमंद राष्ट्र के साथ नजदीकियां बढ़ाकर खूब कर्ज लिया और अपने देश के  अनेक महत्वपूर्ण बंदरगाह तथा अन्यथा परियोजनाएं उसके हाथ सौंप दीं | इनमें हब्बनटोटा बंदरगाह सबसे प्रमुख है जिसे महिंद्रा राजपक्षे सरकार ने 99 साल के लिए चीन को पट्टे पर दे दिया | इसकी शर्तों के अनुसार इसके निर्माण पर आये खर्च की वसूली चीन उसके व्यवसायिक उपयोग से करेगा | हालांकि बाद में श्रीलंका को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तब उसने बंदरगाह की सुरक्षा का जिम्मा चीन की सेना को देने की बजाय खुद करने का फैसला किया | वरना चीन चाहता था कि उस बंदरगाह पर उसकी अनुमति के बिना श्रीलंका का कोई नागरिक तक प्रवेश न करे | धीरे – धीरे वहां  की जनता को भी ये बात समझ में आई कि उनका देश चीन का आर्थिक उपनिवेश बनने के कगार पर आ चुका है | लेकिन राजनीतिक अस्थिरता का लाभ लेकर राजपक्षे परिवार थोक के भाव सत्ता पर काबिज हो गया | राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री और यहाँ तक कि सेना के ताकतवर पदों पर भी इसी परिवार के सदस्य अथवा कृपापात्र पदस्थ हो गए | परिणाम ये हुआ कि लोकतंत्र एक ही परिवार की कैद में चला गया | इसके साथ ही श्रीलंका  आय के स्रोत बढ़ाये बिना ताबड़तोड़ कर्ज लेता चला गया | बावजूद इसके किसी तरह उसका काम चल रहा था | 2009 में लिट्टे के खात्मे के बाद ये टापूनुमा देश तेजी से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनने लगा था | उसके कारण अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ ही  विदेशी निवेश आने की रफ्तार बढ़ी | श्रीलंका में वैसे औद्योगिक उत्पादन न के  बराबर होता है लेकिन चाय और मसालों के निर्यात में वह अग्रणी था | वैश्विक मंदी और  कोरोना ने दुनिया के साथ – साथ इस देश को भी झकझोरा। लेकिन इसी दौरान सरकार ने खेती को पूरी तरह से जैविक बनाने का फैसला लेकर रासायनिक खाद और कीटनाशकों का आयात रोक दिया | इसके कारण कृषि उत्पादन में बड़ी गिरावट आई और किसान गुस्से से भर उठे | कोरोना ने पर्यटन उद्योग को तबाह कर दिया किन्तु सरकार ने स्थिति से निबटने के लिए समुचित कदम नहीं उठाने के बजाय देश के खजाने को खाली करने वाले प्रकल्पों पर बेतहाशा धन खर्च किया | विदेशों से लिए गए कर्ज का उपयोग अनुत्पादक कार्यों में किये जाने की वजह से भुगतान संतुलन की स्थिति बुरी तरह गड़बड़ा गई और देश दिवालियेपन की तरफ बढ़ता गया | महंगाई आसमान पर जाने लगी , पेट्रोल डीजल के अलावा बाकी जरूरी चीजों का आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा का अभाव हो गया | राष्ट्रीय मुद्रा का अवमूल्यन होने से अंतर्राष्ट्रीय साख भी लगभग खत्म हो गयी | जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तब विपक्षी दल ,  बुद्धिजीवी और सामाजिक  संगठन सामने आये और देश अस्थिरता की ओर बढ़ चला | जो महिंद्रा राजपक्षे  लिट्टे का खात्मा करने के लिए वैश्विक विरोध को दरकिनार करते हुए नरसंहार  करने तक से नहीं डरे उनको न सिर्फ प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बाद किसी गुप्त स्थान पर  अपनी जान बचाने के मजबूरी झेलनी पड़  रही है | कुछ लोग उनके विदेश भाग  जाने की बात भी कह  रहे हैं | गत दिवस उनके भाई गोटबाया राजपक्षे भी राष्ट्रपति भवन छोड़कर भागे वहीं उनके सरकारी निवास पर भीड़ ने कब्ज़ा कर लिया | कार्यवाहक प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने भी इस्तीफा दे दिया और उनका निजी आवास भी जनता ने आग के हवाले कर दिया | कुल मिलाकर श्रीलंका इस समय अराजकता , अनिश्चितता और अव्यवस्था के चरमोत्कर्ष पर है | वहां सरकार नाम की कोई चीज नहीं है | पेट्रोल – डीजल के दाम अकल्पनीय ऊंचाई पर हैं | पेट्रोल पम्पों पर सेना तैनात है | लाखों लोग दो समय के भोजन से वंचित हैं | महंगाई अनियंत्रित होने से जनता का धैर्य जवाब दे चुका है | जिसकी परिणिति राष्ट्रपति भवन में जनता के घुसने के रूप में हुई | संकट प्रारंभ होते ही श्रीलंका के तमिल भाषी , तमिलनाडु आने लगे थे | कुछ तो ऐसे भी हैं जो 2009 के संकट के समय से भारत में बतौर शरणार्थी रह रहे हैं | दूसरा बड़ा खतरा श्रीलंका में तमिल राष्ट्र के आन्दोलन का  पुनर्जन्म होने का है जिसका नुकसान भारत को होना तय है क्योंकि तमिलनाडु में शासन कर रही द्रमुक और कुछ अन्य पार्टियां उस  मांग को समर्थन देती रही हैं | द्रमुक नेता डी. राजा तो कुछ दिन पहले ही इस आशय की धमकी भी केंद्र सरकार को दे चुके हैं | इसके अलावा श्रीलंका भारत से आर्थिक सहायता के आलावा सैन्य मदद भी मांग सकता है क्योंकि वहां बड़ा वर्ग ऐसा है है जिसे चीन के हस्तक्षेप का डर है | यद्यपि अभी तक चीन ने श्रीलंका के मामले में हस्तक्षेप नहीं किया लेकिन आगे भी वह निर्लिप्त रहेगा ये सोचना गलत है क्योंकि उसने  बहुत बड़ा निवेश वहां कर रखा है | यहाँ ये भी याद रखने वाली बात है कि पृथक तमिल राष्ट्र का आन्दोलन जिस लिट्टे नामक आतंकवादी संगठन द्वारा चलाया गया वह भी चीन द्वारा ही पालित – पोषित था | इस प्रकार चीन ने श्रीलंका को लेकर दोगली नीति बनाई जिसका दुष्परिणाम सामने है | भारत के लिए वहां के हालत विभिन्न दृष्टियों  से खतरनाक हैं | शरणार्थी समस्या के अलावा तमिल राष्ट्र की नई मांग के अलावा चीन के वहां जाकर बैठ जाने जैसी अनेक बातें हमारी अर्थव्यवस्था के अलावा आन्तरिक और बाहरी सुरक्षा के साथ ही दक्षिण एशियाई शक्ति संतुलन की दृष्टि से बेहद संवेदनशील और चिंता पैदा करने वाली हैं | भारत की  अमेरिका , जापान और आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वाड नामक संगठन में सक्रियता से नाराज चीन मौका पाते ही हमें घेरने का प्रयास  कर सकता है जिसका अवसर  श्रीलंका संकट से  उसको मिल सकता है | हालाँकि  वैकल्पिक सरकार बनाने की कोशिशें की जा रही हैं लेकिन उसके बाद भी आर्थिक संकट का समाधान हुए  बिना वहाँ  स्थिरता नहीं आ सकती | भारत को श्रीलंका में लगी आग से खुद को बचाना होगा । हालाँकि केंद्र सरकार ने हालिया महीनों में इस देश की जो मदद की उसका श्रीलंकाई जनमानस पर  सकारात्मक असर है लेकिन उसके बाद भी हमें बहुत ही  संभलकर आगे बढ़ना होगा क्योंकि लिट्टे संकट के दौरान स्व. राजीव गांधी ने श्रीलंका को लेकर  जिस नीति को अपनाया वही अंततः उनके लिए जानलेवा साबित हुई | अतीत की उन्हीं गलतियों से सीखते हुए फैसला न लिया गया तो फिर वहाँ की आग बुझाने के फेर में हमारे हाथ भी जल सकते हैं | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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