Thursday 21 July 2022

जीएसटी की दरों और दायरे को लेकर अनिश्चितता खत्म होनी चाहिए



बीते दिनों जीएसटी काउंसिल की  बैठक में लिए गए कुछ फैसलों की जमकर आलोचना हो रही है | आटा , दाल , चावल , बेसन , दही , लस्सी जैसे अनेक खाद्य पदार्थों पर 5 फीसदी जीएसटी लगाये जाने के फैसले को जनविरोधी माना जा रहा है | इस पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्टीकरण दिया कि खुले में बेचे जाने पर उक्त चीजें कर मुक्त रहेंगीं | साथ ही ये भी बताया कि पहले से ही अनेक राज्य खाद्यान्न पर कर वसूलते आ रहे हैं | वित्त मंत्री द्वारा दी गयी सफाई के बाद भले ही विरोध के स्वर कुछ धीमे पड़े हों लेकिन सरकार की जितनी फजीहत होनी थी वह हो ही गयी | वित्त मंत्री ने ये भी कहा कि सभी फैसले राज्यों के वित्त मंत्रियों को मिलाकर बनाई गई जीएसटी काउन्सिल द्वारा सर्वसम्मति से लिये जाते हैं जिसकी वे अध्यक्ष हैं | ऐसा कहकर उन्होंने अपने साथ – साथ केंद्र सरकार का बचाव करने की कोशिश भी की जो काफी हद तक सही भी है | ये बात पूरी तरह सही है कि जीएसटी काउंसिल में शामिल  राज्यों के वित्त मंत्री जब उसकी बैठक में होते हैं तब उनका  ध्यान  जनता की जेब काटकर सरकार का खजाना भरने पर केन्द्रित रहता है | और इसीलिये किसी राज्य के वित्त मंत्री ने बैठक में लिए गए फैसलों पर नाराजगी नहीं व्यक्त की | हालाँकि उनकी पार्टी राजनीतिक नफे -  नुकसान के लिहाज से आलोचना करने से बाज नहीं आती | जीएसटी काउन्सिल के जिन ताजा फैसलों पर बवाल मचा हुआ है उन पर श्रीमती सीतारमण के स्पष्टीकरण से भले ही लोगों को संतोष  मिला हो लेकिन ये बात पूरी तरह सही है कि पांच साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी जीएसटी की दरें  और दायरा तय न हो पाना सही नहीं है  | बच्चों द्वारा उपयोग की जाने वाली पेन्सिल के शार्पनर पर जीएसटी लगाया जाना जहां हास्यास्पद है वहीं विद्युत शवदाह गृह के संचालन हेतु होने वाले अनुबंध को भी उसके अंतर्गत लाया जाना शर्मनाक कहा जाएगा | इसी तरह की और भी बेवकूफियां जीएसटी काउंसिल द्वारा की जा चुकी हैं जिनके लिये राज्य और केंद्र दोनों एक दूसरे पर दोषारोपण किया करते हैं किन्तु असलियत ये है कि इस मामले में दोनों बराबर के दोषी हैं | जीएसटी नामक कर प्रणाली लागू करने  का उद्देश्य बहुत ही  नेक था | इसके कारण एक तरफ तो कर चोरी पूरी तरह न सही किन्तु काफी हद  थमी है जिससे सरकार को मिलने वाले राजस्व में अच्छी – खासी वृद्धि भी हुई | हर माह की आख़िरी तारीख तक सरकार के खजाने में आये जीएसटी  संग्रह से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की सेहत का जायजा मिल जाता है | लेकिन  सबसे बड़ी विसंगति ये है कि पांच  साल बीत जाने के बावजूद आज तक जीएसटी काउंसिल ये तय नहीं कर सकी कि किन चीजों अथवा सेवाओं पर किस दर से कर लगेगा ? हर माह होने वाली उसकी बैठक में नयी चीजें जीएसटी के दायरे में आ जाती हैं और कुछ पर दरें घटाई – बढ़ाई जाती हैं | आज तक न तो उद्योग – व्यापार जगत और न ही देश का आम उपभोक्ता ये नहीं जान सका कि जीएसटी काउंसिल चाहती क्या है , क्योंकि हर बैठक कुछ बदलाव लेकर खत्म होती है | जीएसटी की दरें और उसके अंतर्गत आने वाली वस्तुएं तथा सेवाओं पर लगाये जाने वाले करों को लेकर व्याप्त अनिश्चितता के अलावा सबसे बड़ी समस्या है इसके रिटर्न संबंधी कायदे – कानून | शुरुवाती एक - दो साल तक तो इनमें  किये  गये परिवर्तन समझ में आने वाले थे क्योंकि व्यवहारिक तौर पर आई परेशानियों के मद्देनजर व्यापार और उद्योग जगत के संगठनों से मिले सुझावों के अनुसार करों की दर और  दायरे के साथ ही रिटर्न भरने के तौर – तरीकों में संशोधन या परिवर्तन लाजमी थे | लेकिन पांच साल बाद भी जीएसटी , टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले उन  धारावाहिकों जैसा बनकर रह गया जिसका कथानक चाहे जब बदल जाता है  | कहने का आशय ये है कि जिस कर प्रणाली को उद्योग – व्यपार के साथ ही जनता की सुविधा और सरकार के लाभ के लिए जोर - शोर से लागू किया गया था वह भूलभुलैयाँ  जैसी होकर रह गई है | यद्यपि  उसका सकारात्मक पक्ष भी काफी है | मसलन जीएसटी के लागू होने के बाद कर चोरी रुकी है | राज्यों की सीमा पर लगे नाकों में होने वाले भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगी है | व्यापारियों को परेशान करने वाला इंस्पेक्टर राज भी दम तोड़ रहा है किन्तु जीएसटी की दरों और दायरे संबंधी अनिश्चितता और रिटर्न दाखिल करने के तरीकों में  आकस्मिक बदलाव से होने वाली परेशानी कम होने के बजाय बढ़ रही है और यही जीएसटी का नकारात्मक  पहलू  है | अब जबकि पांच वर्ष का लम्बा समय बीत चुका है तब ये मान लेना गलत नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस कर प्रणाली की खूबियों और कमियों को अच्छी तरह समझ चुकी होंगी | ऐसे में बेहतर तो यही होगा कि जिन वस्तुओं और सेवाओं को जीएसटी के अंतर्गत लाया गया है उनकी सार्थकता की समीक्षा की जाये | लेकिन सबसे ज्यादा  आवश्यकता है जीएसटी की विभिन्न दरों को खत्म करते हुए  मात्र दो दरें 12 और 18 फीसदी रखी  जावें | ऐसा करने से आम उपभोक्ता को भी पता रहेगा कि किस वस्तु अथवा सेवा पर वह कितना जीएसटी भुगतान कर रहा है | विलासिता की परिधि वाली चीजों पर बेशक 18 फीसदी कर वसूला जा सकता है | इसी तरह छोटे बच्चों के काम आने वाली चीजों पर कर लगाने जैसी मूर्खता बंद होनी चाहिए | करों की कम दरें व्यापार और उद्योग जगत को भी रास आयेंगीं | कुल मिलाकर जीएसटी का सरलीकरण करने के साथ ही उससे जुडी प्रक्रिया को व्यवहारिक बनाये जाने की जरूरत है | केंद्र  और  राज्यों के वित्त मंत्रियों द्वारा  एक दूसरे  पर दोष मढ़ने वाली  नूरा कुश्ती बंद होनी चाहिए |  आखिर पांच साल कम नहीं होते  |

- रवीन्द्र वाजपेयी


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