Monday 18 July 2022

प्रधानमंत्री द्वारा मुफ्त रेवड़ी बांटने पर रोक लगाने के संकेत



पहले झारखंड के देवघर और उसके बाद उ.प्र में बुंदेलखंड एक्सप्रेस हाइवे का उद्घाटन करते हुए प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने शॉर्ट कट राजनीति को नुकसानदेह बताते हुए कहा कि इसके कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं | उन्होंने कहा कि  मुफ्त बिजली जैसे वायदों के आधार पर चुनाव जीतना तो आसान हो जाता है लेकिन ऐसे आश्वासन बाँटने वालों की  नए बिजलीघर बनवाने में कोई रूचि नहीं होती | प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय राजमार्गों का उदाहरण देते हुए कहा कि देश की तरक्की के लिए इस तरह के कामों का तेजी से होना जरूरी है क्योंकि जिस शहरों के पास से एक्सप्रेस हाइवे निकले हैं वहां आर्थिक विकास भी अपने आप होने लगा है | लेकिन ये तभी संभव है जब ऐसे कार्यों के लिये सरकार के पास पर्याप्त आर्थिक साधन भी हों | दरअसल श्रीलंका में उत्पन्न अभूतपूर्व आर्थिक संकट के बाद से राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव जीतने के लिये बांटी जाने वाली खैरातों के विरोध में अनेक आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा चेतावनी दी जा चुकी है | हालांकि अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने इस बारे में अपना नजरिया स्पष्ट नहीं किया किन्तु पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा एक जुलाई से 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने संबंधी चुनावी वायदे को पूरा करते हुए देश के अनेक राज्यों में पूरे पृष्ठ का विज्ञापन देकर वाहवाही बटोरी गई | वस्तुतः म.प्र , छत्तीसगढ़ और राजस्थान  में आगामी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव पर आम आदमी पार्टी की नजर है | गुजरात , कर्नाटक और हिमाचल में भी निकट भविष्य में चुनाव होंगे | चूंकि पार्टी इन राज्यों में अपने पाँव ज़माने का प्रयास कर रही है इसलिए  दिल्ली और पंजाब सरकार की मुफ्त योजनाओं का प्रचार करते हुए वह मतदाताओं को लुभाने का दांव चल रही है | वैसे अपने राज्य से बाहर समाचार पत्रों में सरकारी खर्च पर  सत्तारूढ़ दल का प्रचार करने का कार्य भाजपा और बाकी राज्य सरकारें  भी करती हैं लेकिन आम  आदमी पार्टी द्वारा मुफ्त बिजली जैसे वायदे का सीधा असर जनमानस पर पड़ता है | यद्यपि इसकी शुरुवात काफी पहले स्व. अर्जुन सिंह ने म.प्र और बाद में कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा पंजाब में की गई थी | किसानों को सस्ती बिजली देने का चलन भी अनेक राज्यों में है | लेकिन इस कारण उनका खजाना खाली होता चला गया | पंजाब और म.प्र पर अरबों रूपये का कर्ज है जिसे चुकाने के लिए उन्हें नया कर्ज  लेना पड़ता है | श्री मोदी ने इसे शॉर्ट कट राजनीति बताते हुए चेतावनी दी कि इससे शॉर्ट सर्किट हो सकता है | मुफ्त रेवड़ी बांटने पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने  कर दाताओं में बढ़ रही नाराजगी का भी संकेत दिया |  प्रधानमंत्री चूंकि दूरगामी सोच रखने वाले राजनेता हैं इसलिए ये मानकर चला जा सकता है कि दो – तीन दिन के भीतर दो बार मुफ्त उपहारों को रेवड़ी बताने संबंधी उनका भाषण किसी कार्ययोजना का हिस्सा है | संसद भवन की कैंटीन में सस्ते भोजन पर रोक लगाने जैसा साहसिक कदम उठाकर श्री मोदी ने अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए  थे | इसी तरह दिल्ली में चुनाव हारे हुए सांसदों से निश्चित समय – सीमा के भीतर सरकारी आवास खाली कराने संबंधी व्यवस्था भी उनकी सरकार की मंशा स्पष्ट करती है | खबर ये भी है कि पूर्व सांसदों को मिलने वाली पेंशन भी उनके निशाने पर है | हालांकि करोड़ों लोगों को मुफ्त अनाज और आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत पांच लाख तक के इलाज की सुविधा भी मुफ्तखोरी ही है और उसके पीछे भी कहीं न कहीं चुनाव जीतने का मकसद छुपा हुआ है और  किसी भी राजनीतिक दल में ये साहस नहीं है कि इनका विरोध करे | वैसे   सस्ते अनाज की सार्वजनिक वितरण प्रणाली तो दशकों पुरानी हो चुकी है | लेकिन मुफ्त बिजली जैसे चुनावी वायदे देश को बहुत महंगे पड़ रहे हैं | कुछ समय पहले पत्रकारों ने जब परिवहन मंत्री नितिन गाड़करी से उनको टोल टैक्स में छूट दिलवाने की मांग की तो उन्होंने तो टूक मना करते हुए कहा कि वे इस मुफ्त संस्कृति के सख्त  खिलाफ हैं | मंत्री महोदय ने बिना संकोच किये ये भी कहा कि अच्छी सड़कों पर चलना है तो टैक्स तो देना ही पड़ेगा | उस दृष्टि से प्रधानमंत्री द्वारा दियें जा रहे संकेत इस दिशा में उठाए जाने क़दमों की आहट लगती  है | श्रीलंका में जो स्थितियां बनीं वे रातों - रात बन गई हों ऐसा नहीं है | लेकिन विदेशों से कर्ज लेकर उसे अनुत्पादक कार्यों में लुटाने का  दुष्परिणाम ही है कि कहाँ तो उसकी अर्थव्यवस्था तेजी से उछाल मारने की स्थिति में आ रही थी और कहाँ एक ही झटके में वह औंधे मुंह गिर पड़ीं | श्रीलंका तो खैर, छोटा सा देश है जिसकी आबादी हमारे देश के अनेक राज्यों से भी कम है | ऐसे में 135 करोड़ की आबादी वाले भारत को बहुत ही सावधानी के साथ उसकी गलतियों का विश्लेषण करते हुए इस बात की सावधानी रखनी होगी कि हमारे देश में वैसा न हो जाए | हालाँकि मुफ्तखोरी या रेवड़ी संस्कृति पर प्रहार करना खतरे से खाली नहीं होगा लेकिन इस बारे में ये उक्ति ध्यान में रखनी होगी कि राजनीतिक नेता जहां अगले  चुनाव  के बारे में  सोचते हैं वहीं राजनेता अगली पीढ़ी की भलाई को ध्यान में रखते हुए नीतिगत निर्णय करते हैं | उस दृष्टि से श्री मोदी ने बीते आठ साल में अनेक जोखिम उठाये जिनके कारण कुछ समय तक तो ये  लगा कि उन्हें बड़ा  नुकसान हो सकता है लेकिन हुआ उसका उलटा | ऐसा लगता है उस सबसे प्रधानमंत्री का हौसला बुलंद हुआ है और सांकेतिक शैली में ही सही उनकी तरफ से रेवड़ी संस्कृति की विरुद्ध आवाज उठाये जाने की शुरुवात की जा चुकी है | चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक अवसरों पर मुफ्त उपहार वाले चुनावी वायदों पर ऐतराज जताते हुए ये कहा कि इस तरह के वायदों के लिए संसाधन कहाँ से आएंगे ये भी चुनाव घोषणापत्र में स्पष्ट किया जाना चाहिए | इस बारे में पंजाब का उदाहरण उल्लेखनीय है | वहां के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने प्रधानमंत्री से मिलकर राज्य के लिए एक लाख करोड़ रु. के पैकेज की मांग की | इस पर जब ये सवाल उठा कि पंजाब पहले से ही जब तीन लाख करोड़ के कर्ज में डूबा हुआ है तब उसे मुफ्त – बिजली और पानी जैसे क़दमों से बचना चाहिए | इस बारे में जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द   केजरीवाल से पूछा गया कि राज्य द्वारा मुफ्त योजनाओं के जरिये खजाना उलीच दिया जावे तो उसका हर्जाना केंद्र क्यों भरे तब उन्होंने व्यंग्य किया कि केंद्र के  पैसे पर भी तो राज्यों का अधिकार है | संघीय व्यवस्था के लिहाज से उनका कथन सही है लेकिन ये बात भी उतनी सच  है कि मुफ्त के वायदों के लिए धन की व्यवस्था के बारे में राजनीतिक दलों को बताना चाहिए | प्रधानमंत्री ने छोटे से  अंतराल में दो बार शॉर्ट कट और रेवड़ी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए मुफ्तखोरी को प्रोत्साहित करने वाली राजनीति पर विराम लगाने की तैयारी का इशारा तो कर दिया है |  इस बारे में उनके अगले कदम का इन्तजार है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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