Friday 8 July 2022

रोम जलता रहा और नीरो बांसुरी बजाता रहा की उक्ति चरितार्थ हो रही कांग्रेस पर



महाराष्ट्र की राजनीति से फुरसत मिलते ही भाजपा ने नए लक्ष्यों की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं | जिसके तहत हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर तेलंगाना में पैर ज़माने का पैंतरा दिखाया गया | वहां के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करने में प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी से आगे निकलने की कोशिश में  दिल्ली में कई दिनों डेरा डालकर  विपक्षी  गठबंधन बनाने में जुटे रहे किन्तु राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को उतारकर विपक्षी खेमे को बिखरने मजबूर कर दिया | यहाँ तक कि ममता भी ये कहने लगीं कि भाजपा पहले बता  देती वे भी श्रीमती मुर्मू का  संमर्थन करतीं | दरअसल उन्हें अपने राज्य में अनु. जनजाति के मतदाताओं की नाराजगी  का डर सता रहा है | इस तरह एनडीए के पास 2 फीसदी मतों की कमी का लाभ उठाते हुए  विपक्षी एकता के जरिये गैर भाजपाई राष्ट्रपति बनाकर श्री मोदी की नाक  में नकेल डालने का सपना एक झटके में टूट गया | इससे उत्साहित भाजपा ने राज्यसभा के लिए दक्षिणी राज्यों से चार सदस्यों का मनोनयन करते हुए बड़ा दांव खेल दिया | जिन हस्तियों को नामित किया गया उन पर कोई भी उंगली  नहीं उठा सकता | मसलन केरल से पी.टी. उषा , तमिलनाडु से इलैया राजा , कर्नाटक से वीरेंद्र हेगड़े और आंध्र से के.वी. विजेंद्र प्रसाद का चयन करते हुए  महिला , दलित और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय को प्रतिनिधित्व देने के साथ ये भी ध्यान रखा गया कि वे अपने – अपने क्षेत्र में कामयाब और लोकप्रिय हों | महाराष्ट्र में शरद पवार की रचना कही जाने वाली शिवसेना , राकांपा और कांग्रेस की गठबंधन सरकार भविष्य में विपक्षी एकता का आधार बन सकती थी | लेकिन भाजपा ने उस संभावना की भ्रूण हत्या कर दी | शिवसेना में हुई टूटन के कारण उद्धव ठाकरे तो बुरी तरह कमजोर हुए ही लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एकनाथ शिंदे के रूप में मराठा को बिठाकर भाजपा ने श्री पवार के पावर में भी कटौती का दांव चल दिया | दूसरी ओर देश भर में हो रही राजनीतिक उठापटक के बीच कांग्रेस में छाई मुर्दानगी से न सिर्फ जनता अपितु विपक्षी दल भी परेशान हैं | राष्ट्रपति चुनाव में पहले ममता और बाद में श्री पवार ने अगुआई की जबकि राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते इसकी पहल कांग्रेस से अपेक्षित थी | महाराष्ट्र में  सरकार बचाने के लिए भी श्री पवार ही सक्रिय दिखे जबकि कांग्रेस  उदासीन  बनी रही  | राहुल गांधी से दिल्ली में ईडी द्वारा पूछताछ के विरोध में कांग्रेस के तमाम छोटे – बड़े नेता सड़क पर उतरे किन्तु केरल स्थित उनके संसदीय क्षेत्र वायनाड में सत्ताधारी सीपीएम से जुड़े स्टूडेंट  फेडरेशन आफ इण्डिया के कार्यकर्ताओं द्वारा उनके कार्यालय में की गई तोड़फोड़ का विरोध करने का साहस न श्री गांधी में हुआ और न पार्टी में | उलटे राहुल ने लड़के बताकर हमलावरों को माफ़ कर दिया | इससे ऐसा लगता है कांग्रेस अपनी धार खोती जा रही है  | बीते माह राजस्थान के उदयपुर में हुए नव संकल्प चिन्तन शिविर में ऐसा दिखाया गया जैसे पार्टी  नई ऊर्जा के साथ  कूदेगी किन्तु शिविर के दौरान पंजाब में सुनील जाखड़ और उसके बाद गुजरात में हार्दिक पटेल ने उसे छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया | राष्ट्रपति चुनाव में श्रीमती मुर्मू के पक्ष में  विपक्षी खेमे से  समर्थन आने का क्रम जारी है | कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी तो अस्वस्थ हैं लेकिन राहुल चाहते तो यशवंत सिन्हा के पक्ष में प्रयास करते हुए कांग्रेस को जीवंत दिखा सकते थे | लेकिन ताजा खबर ये है कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत के आसार देखते हुए कांग्रेस ने अपनी पार्टी के किसी नेता को उतारने तक से इंकार कर दिया है | झारखंड में हेमंत सोरेन के श्रीमती मुर्मू के पक्ष में नजर आने के बाद बड़ी बात नहीं , देर - सवेर वहां भी सत्ता पलट जाए | ऐसे में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस का झंडा फहराता नजर आयेगा | लेकिन  राजस्थान में अशोक गहलोत और साचिन पायलट के बीच गतिरोध को उलझाए रखने के कारण कांग्रेस अपने पांव  पर कुल्हाड़ी मारने जैसी मूर्खता कर रही है | उदयपुर में मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा कन्हैया नामक हिन्दू दर्जी को नूपुर शर्मा का समर्थन किये जाने पर जिस नृशंस तरीके से मौत के घाट उतारा गया उसकी प्रतिक्रियास्वरूप राज्य में हिंदु भावनाएं उफान पर हैं जिनका सीधा लाभ भाजपा के खाते में जायेगा | यदि श्री पायलट को गांधी परिवार इसी तरह वायदों का झूला झुलाता रहा तब वे भी ज्योतिरादित्य सिंधिया का अनुसरण कर लें तो चौंकाने वाली बात नहीं होगी | वहीं छत्तीसगढ़ में बाहरी प्रत्याशियों को राज्यसभा भेजे जाने से उत्पन्न नाराजगी के साथ ही अनु. जनजाति के अनेक कांग्रेस विधायकों द्वारा  श्रीमती मुर्मू को समर्थन देने की इच्छा जताए जाने से भी  खतरा नजर आने लगा है | भूपेश बघेल सरकार के वरिष्ट मंत्री टी.एस.सिंहदेव भी ढाई – ढाई साल तक मुख्यमंत्री रहने  वाले समझौते के उल्लंघन से भन्नाए हुए हैं और चुनाव के पहले बड़ा धमाका कर सकते हैं | कुल मिलाकर कांग्रेस अब बिना राजा की फौज बनती जा रही है | गत दिवस राज्यसभा से हाल ही में निवृत्त हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री और जी - 23  नामक असंतुष्ट समूह के सदस्य आनंद शर्मा ने भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात कर हलचल मचा दी | इसे  हिमाचल प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है | हालाँकि श्री शर्मा ने ये कहते हुए उस मुलाकात के उद्देश्य पर पर्दा डाले रखा कि वे  दोनों एक ही राज्य के होने से मिलते रहते हैं परन्तु इसके पूर्व इन नेताओं की भेंट की इतनी चर्चा शायद ही हुई हो | ऐसे में राज्यसभा से बाहर होने के बाद श्री शर्मा भी श्री नड्डा से निकटता का लाभ लेते हुए भाजपाई बन जाएँ  तो बड़ी बात नहीं होगी | वैसे भी  त्रिपुरा में मानक साहा और असम में हिमंता बिस्वा सर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने कांग्रेस से आने वालों को सत्ता रूपी प्रसाद का लालच तो दे ही दिया है  | ताजा उदाहरण महाराष्ट्र में श्री शिंदे की ताजपोशी है | ऐसे में यदि हिमाचल में श्री शर्मा को सुरक्षित भविष्य नजर आ रहा हो तो वे भाजपा में आने में संकोच शायद ही करें | इन सब बातों से लगता है कांग्रेस अपना आकर्षण खोती जा रही है | राष्ट्रीय परिदृश्य में भाजपा उस पर बहुत भारी नजर आने लगी है जबकि  ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों ने उसे हाशिये पर धकेल दिया है | पता नहीं गांधी परिवार को ये सब दिखता है या वह रोम जलता रहा और नीरो बान्सुरी बजाता रहा वाली उक्ति को चरितार्थ कर रहा है ?

-रवीन्द्र वाजपेयी

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