Tuesday 12 July 2022

राहुल खुद भी तो बताएं चीनी दूत और मंत्रियों से उनकी क्या बातें हुईं



विपक्ष का काम है सरकार पर नजर रखना और जनहित तथा देशहित की  उपेक्षा होने पर सवाल पूछना | हालांकि कुछ विषयों के गोपनीय होने से उनकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती | केवल मंत्री ही नहीं अपितु सांसद  भी  ऐसी  जानकारी को  उजागार न करने की शपथ लेते हैं | संसद की  विभिन्न सलाहकार समितियीं के सामने भी कई ऐसी रिपोर्ट आती हैं जिनमें गोपनीयता बनाये रखना जरूरी होता है | इनमें ज्यादातर विदेश नीति और सुरक्षा संबंधी मामले होते हैं | अनेक ऐसे विषय भी होते हैं जिनकी जानकारी सरकार विपक्ष के नेता को दे देती है | सर्वदलीय बैठक बुलाने की परम्परा भी  प्रजातंत्र में प्रचलित है | भारत ने आजादी के बाद से अनेक युद्ध लड़े | इनमें 1962 में चीन से हम बुरी तरह हारे और हमारी हजारों वर्ग किलोमीटर भूमि पर उसने कब्जा कर लिया | आगामी अक्टूबर में उस युद्ध को 60 साल हो जायेंगे | उसके बाद यद्यपि चीन के साथ युद्ध तो नहीं हुआ लेकिन अपनी  विस्तारवादी नीति के चलते वह सीमा पर तनाव बनाये रखता है | इसके अलावा उसने जबरदस्त सैन्य ढांचा तैयार कर लिया है | जवाब में भारत ने भी  लद्दाख से लेकर सिक्किम तक  सड़क – पुल  , हवाई पट्टी के साथ ही आधुनिक युद्ध सामग्री आदि का पर्याप्त इंतजाम कर लिया है | यही वजह है कि चीन 1962 जैसा हमला करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा | वैसे तो उसकी तरफ से घुसपैठ की कोशिश चलती रहती है जिसे हमारी सेना उसे सफल नहीं होने देती | वर्ष  2017 के दौरान भूटान के पठारी क्षेत्र  डोकलाम में हुए संघर्ष और 2020 के जून में लद्दाख की गलवान घाटी में हुई झड़प ही चर्चा में रही | डोकलाम का मामला  तो धक्का – मुक्की तक ही सीमित था किन्तु गलवान में विवाद ज्यादा बढ़ गया | एक स्थान पर चीन के कब्जे को रोकने गई टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे कर्नल की चीनी सैनिकों से  झड़प में हुई मौत के बाद गुस्साए भारतीय सैनिकों ने भी  जमकर धुनाई की जिसमें चीन के दर्जनों सैनिक मारे गये |  उसके बाद से दोनों देशों के बीच दर्जन भर से ज्यादा सैन्य स्तर की बातचीत हो चुकी हैं  | चूंकि सीमा का निर्धारण आज तक नहीं हुआ  इसलिए दोनों  एक दूसरे पर आरोप लगाया करते हैं | चीन लद्दाख के साथ ही अरुणाचल प्रदेश को भी अपना मानता है | यही नहीं तो भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के इस प्रदेश के दौरे तक पर आपत्ति जताता है |  हाल ही में दोनों देशों के विदेश मंत्री भी मिले  और सीमा विवाद हल करने पर चर्चा की | गलवान संघर्ष के बाद शुरू हुई सैन्य वार्ताओं का दौर भी जारी है | हालाँकि उसके बाद से कोई भी बड़ी घटना सुनने नहीं मिली सिवाय इसके कि कभी वायु तो कभी जमीन पर सीमा का उल्लंघन हुआ जिसे हमारी सेना ने विफल कर दिया | लेकिन  कांग्रेस नेता राहुल गांधी समय – समय पर प्रधानमंत्री पर सीधा हमला करते हुए  तथ्य छिपाने और चीन से डरने जैसे आरोप लगाया करते हैं | उनका कहना है कि चीन ने पूर्वी लद्दाख में हमारी काफी जमीन हाल ही के कुछ सालों में कब्जाई है लेकिन उसकी सरकार से इस बारे में बात करने का साहस उनमें नहीं  है | जबकि इस बारे में सेनाध्यक्ष तक सफाई दे चुके हैं | बेहतर होता वे इस बाबत प्रधानमंत्री और रक्षा  मंत्री से व्यक्तिगत मिलकर स्थिति का पता लगाते | चूंकि मामला सुरक्षा से जुड़ा है इसलिए हो सकता है उनके आरोप का जवाब सार्वजनिक तौर पर दिए जाने लायक न हो | और फिर इस बारे में श्री गांधी पर भी तो ये आरोप लगते रहे हैं कि जब डोकलाम में  विवाद चल्र रहा था उसी समय वे दिल्ली स्थित चीन के दूतावास जाकर  राजदूत से मिले | लेकिन आज तक उन्होंने इस बारे में सरकार या संसद को कुछ नहीं बताया | 2019 में  वे  चीन के रास्ते मानसरोवर भी गये थे और वापसी में उन्होंने चीनी नेताओं से बातचीत की | कुछ दिनों पहले ही उनकी काठमांडू यात्रा भी विवादों में घिर गयी जहाँ एक मित्र की विवाह पार्टी में शामिल होने वे एक नाईट क्लब में गये जिसमें नेपाल स्थित चीन की राजदूत भी शरीक थीं | हालाँकि प्रधानमंत्री से प्रश्न पूछने का श्री गांधी को पूरा अधिकार है | लेकिन बतौर सांसद और देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के नेता होने के कारण उनसे ये अपेक्षा रहती है कि सुरक्षा संबंधी मामलों में  गंभीरता बरतें | गौरतलब है  दूतावासों के जनसंपर्क अधिकारी  सांसदों से संवाद और संपर्क बनाये रखते हैं | दूतावास में होने वाली दावतों में भी सांसदों को आमंत्रित करना कूटनीतिक जगत में आम है | लेकिन जब सीमा पर युद्ध की स्थिति हो तब हमलावार देश के  , जो हमारा ऐलानिया दुश्मन माना जाता है , के दूतावास में श्री गांधी क्या करने गये थे इस बात का खुलासा उन्हें करना चाहिये था | इसके उलट वे दूतावास जाने से ही इंकार करते रहे लेकिन बाद में मान गए | यदि वहां हुई बात सार्वजनिक करने योग्य नहीं थी  तब वे प्रधानमंत्री या रक्षा मंत्री से मिलकर  जानकारी दे सकते थे | लेकिन ऐसा करने की बजाय वे प्रधानमंत्री पर चीन से डरने जैसी बात कहें तो उनकी राजनीतिक  परिपक्वता पर संदेह और बढ़ता ही है | 2019 में बीजिंग में श्री गांधी ने चीन सरकार के कुछ मंत्रियों से बातचीत की थी  | लेकिन श्री गांधी ने आज तक इस बारे में मुंह नहीं खोला | ये देखते हुए  प्रधानमंत्री पर चीन से डरने जैसा आरोप लगाकर वे अपने को हंसी का पात्र बना रहे हैं | कांग्रेस में चूंकि उनको रोकने – टोकने वाला कोई है नहीं इसलिए वे जो मुंह में आता है बोल जाते  हैं जिसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ता है | ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि आज कांग्रेस जिस दयनीय हालत में आ गई उसके लिए श्री गांधी ही ज्यादातर जिम्मेदार हैं जिनको राष्ट्रीय  राजनीति में  लंबा समय बीतने के बाद भी ये समझ नहीं आई की कब , कहां और क्या बोलना है ? वायनाड स्थित अपने कार्यालय में चीन समर्थित सीपीएम की छात्र इकाई एसएफ़आई द्वारा की गई तोड़फोड़ का विरोध करने का साहस तक तो उनमें हुआ नहीं | ऐसे में  वे प्रधानमंत्री के साहस पर उँगलियाँ उठाकर ये साबित करने का ही प्रयास कर रहे हैं कि उनके प्रति अक्सर प्रयुक्त होने वाला संबोधन गलत नहीं है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी



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