Tuesday 13 November 2018

संघ को छेड़कर गलती कर गई कांग्रेस

कांग्रेस के नेता अब सफाई देते फिर रहे हैं कि पार्टी ने मप्र विधानसभा चुनाव हेतु जो घोषणापत्र जारी किया उसमें सरकारी परिसरों में रास्वसंघ की शाखाएं लगने पर रोक लगाने और शासकीय कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में हिस्सा न लेने सम्बन्धी जो बातें कही गईं हैं उनका उद्देश्य संघ पर प्रतिबंध लगाना कतई नहीं है । दरअसल दो दिन पहले ज्योंही कांग्रेस का घोषणा पत्र वचनपत्र के नाम से आया और उसमें संघ सम्बन्धी उक्त बातों का उल्लेख हुआ त्योंही भाजपा ने उसे लपकते हुए कांग्रेस पर हमले शुरू कर दिए । संघ और उससे जुड़े अनुषांगिक संगठनों ने भी कांग्रेस पर हिन्दू विरोधी होने का आरोप जड़ दिया । पार्टी ने वचनपत्र में हिंदुत्व के राहुल गांधी अवतार को ध्यान रखते हुए तमाम ऐसी बातें कहीं जो अमूमन भाजपा की पहिचान रही हैं । इसलिए ज्योंही संघ खेमे से तीखी प्रतिक्रिया आई त्योंही कांग्रेस का प्रचारतंत्र सफाई  देने में लग गया । गत दिवस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने तो खुलकर कहा कि संघ पर प्रतिबंध लगाने की कोई सोच कांग्रेस की नहीं है । उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह उनके मुंह में शब्द डालने की कोशिश कर रही है । इस मुद्दे पर कांग्रेस की स्थिति हास्यास्पद हो गई है । आए दिन वह संघ को लेकर तीखे आरोप लगाया करती है । उसके प्रवक्ता  घूमा फिराकर गांधी जी की हत्या का आरोप उस पर थोपने का प्रयास करने से भी नहीं चूकते । नाथूराम गोड़से का संघ से रिश्ता प्रमाणित करने में भी पार्टी का प्रचारतंत्र सक्रिय रहता है । ऐसे में संघ की शाखाओं को सरकारी  शिक्षण  संस्थानों में रोकने और सरकारी मुलाजिमों को संघ से दूर रहने जैसे प्रावधानों को अपने चुनाव घोषणापत्र में सम्मिलित करने का कदम कांग्रेस से अनपेक्षित नहीं था लेकिन जिस तरह से उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हिंदुत्व का चोला ओढ़कर घूमने लगे हैं और उनके साथ पार्टी के अन्य नेतागण हिंदुओं के धर्मस्थानों में जा  - जाकर मत्था टेक रहे हैं उससे ये लगने लगा था कि कांग्रेस इस चुनाव में हिन्दू मतों को आकर्षित करने की रणनीति पर चलेगी । पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को पृष्ठभूमि में रखने के पीछे भी यही कारण समझ आया । यहां तक कि खुद श्री सिंह ने स्वीकार किया कि वे इसलिए प्रचार नहीं करेंगे क्योंकि उनके बयानों से कांग्रेस को नुकसान हो जाता है । उल्लेखनीय है हिन्दू आतंकवाद जैसी टिप्पणियों के कारण दिग्विजय कांग्रेस का सिरदर्द बढ़ाते रहे हैं। इन सब कारणों से राजनीतिक प्रेक्षक अनुमान लगा रहे थे कि भाजपा का गढ़ बन चुके मप्र में वापिसी के लिए कांग्रेस ऐसा कुछ भी करने से बचेगी जिससे उस पर मुस्लिम परस्त और हिन्दू विरोधी होने जैसे आरोप लगें लेकिन वचनपत्र के जरिये रास्वसंघ को घेरने की उसकी घोषणा ने सारे किये कराए पर पानी फेर दिया । चुनाव शुरू होने के पहले हल्ला था कि भाजपा के उम्मीदवारों का चयन संघ की निगरानी में होगा । पार्टी के बड़े नेताओं ने जिस तरह  संघ के वरिष्ठ अधिकारियों से बन्द कमरे में मुलाकातें कीं उससे भी लगा कि संघ की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहने वाली है लेकिन जब प्रत्याशी घोषित हुए तब ये बात उजागर हुई कि संघ की सलाह को वैसी वजनदारी नहीं दी गई जैसी अपेक्षा थी । उसके बाद संघ से जुड़े तमाम लोगों में नाराजगी भी महसूस की गई जिससे ये आशंका जोर पकडऩे लगी कि ये हिन्दू संगठन भाजपा के लिए उतना सक्रिय नहीं रहेगा जितना अपेक्षित था । लेकिन कांग्रेस ने अनावश्यक रूप से संघ को छेड़ दिया । ये नादानी है या जानबूझकर की गई शरारत ये पता करना तो मुश्किल है किन्तु इसकी वजह से संघ के साधारण कार्यकर्ता तक सतर्क हो उठे हैं । संघ के जितने भी अनुषांगिक संगठन हैं उनमें भी ये भावना प्रबल हुई है कि कांग्रेस का हिंदुत्व दिखावा है और वह मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति को नहीं छोड़ सकती । ये आशंका गलत भी नहीं है क्योंकि राहुल के जनेऊधारी ब्राह्मण बन जाने के बाद मुस्लिम समुदाय को ये लगने लगा था कि कांग्रेस भी भाजपा की राह पर चलकर उनकी उपेक्षा कर रही है। कांग्रेस की चुनावी व्यूह रचना बनाने वाले नेताओं ने मुस्लिमों को सन्तुष्ट करने के लिए ही सम्भवत: संघ की घेराबंदी का दांव चला लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी उसका उल्टा असर होता दिख रहा है । इसका चुनाव परिणाम पर क्या प्रभाव पडेगा ये आकलन करना फिलहाल तो जल्दबाजी होगी लेकिन ये कहा जा सकता है कि रास्वसंघ सम्बन्धी जो बातें कांग्रेस के वचनपत्र में कही गईं उनसे उसके विरुद्ध एक नया मोर्चा खुल गया है । शायद कांग्रेस को इसकी उम्मीद नहीं रही होगी इसीलिए वह बजाय ऊंची आवाज में बात करने के ये आश्वासन बांटने में जुट गई है कि संघ पर प्रतिबंध लगाने का उसका कोई इरादा नहीं है । और कोई अवसर होता तब कांग्रेस का हर नेता संघ पर प्रतिबन्ध का खुलकर समर्थन करता लेकिन चुनाव सामने देखकर सबकी सिट्टी-पिट्टी गायब है । बावजूद इसके जो तीर तरकश से निकल गया उसे लौटाना सम्भव नहीं है । इस प्रकरण में एक बात स्पष्ट हो गई कि कांग्रेस में पिछली गलतियों से सीखकर सुधार करने की प्रवृत्ति  समाप्त हो चुकी है ।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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