Thursday 29 November 2018

करतारपुर कॉरिडोर : सतर्कता जरूरी


भारत-पाक सीमा से चंद किलोमीटर दूरी पर स्थित करतारपुर  साहेब गुरुद्वारे के लिए सड़क मार्ग से आवागमन का रास्ता खोलने के लिए दोनों देशों की रजामंदी वैसे तो स्वागतयोग्य है । अभी सिख श्रद्धालु भारतीय सीमा पर लगी दूरबीन से उस पवित्र स्थान का दर्शन लाभ लेते हैं जहां गुरुनानक देव का अवसान हुआ था । बीते दो - तीन.दिनों के भीतर दोनों देशों में इस कॉरिडोर के निर्माण का शुभारम्भ भी हो गया । भारत में जहां उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू समारोह में उपस्थित रहे तो पाकिस्तान में गत दिवस प्रधानमंत्री इमरान खान और उनके न्यौते पर पूर्व क्रिकेटर पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू  गए । भारत  सरकार में मंत्री हरसिमरन कौर ने भी सीमा पर जाकर भारत और सिख समाज का प्रतिनिधित्व किया । बेहद खराब रिश्तों के बीच इस तरह की पहल से द्विपक्षीय रिश्ते सुधरने की उम्मीद करना गलत नहीं है लेकिन श्री सिद्धू के वहां जाने के बाद भी पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन करने पर लताड़ते हुए वहां जाने से मना कर दिया । बची  हुई कसर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की बातचीत से मना करते हुए कर दी । दरअसल सार्क सम्मेलन का आयोजन भारत के कारण रुका हुआ है । नई दिल्ली का साफ  कहना है कि पाकिस्तान जब तक आतंकवादी संगठनों को संरक्षण देकर भारत में उपद्रव मचाता रहेगा तब तक उसके साथ दुआ-सलाम का कोई लाभ नहीं। भारत के इस रुख का अन्य सार्क देशों ने भी समर्थन किया । इमरान खान ने करतारपुर कॉरिडोर खोलकर  भारत की सद्भावना अर्जित करने की कोशिश तो कर डाली किन्तु कश्मीर का जिक्र वे लगभग हर मौके पर करते हुए भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं । गत दिवस भी वे इससे बाज नहीं आये । ऐसे में चाहे श्री सिद्धू उनसे कितना भी याराना दिखाएं किन्तु पाकिस्तान से किसी समझदारी की उम्मीद यदि करते हों तो फिर वे मूर्खों के स्वर्ग में विचरण कर रहे हैं । इस उपलब्धि का श्रेय नवजोत भले ले लें किन्तु इस सदाशयता के पीछे पाकिस्तान की क्या योजना है इसे समझ लेना ज्यादा जरूरी है । कॉरिडोर के जरिये खलिस्तानी आतंकवाद भारत में न घुस आएं इसकी चिंता नहीं की गई तो धोखा हो सकता है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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