Saturday 24 November 2018

कश्मीर : चुनाव से ज्यादा अलगाववाद का सफाया जरूरी

कश्मीर घाटी के अनन्तनाग जिले में सुरक्षा बलों ने घर में छिपे 6 आतंकवादियों को मार गिराया। उनमें वह आतंकवादी भी शामिल था जिसने कुछ समय पूर्व एक पत्रकार की हत्या की थी। सुरक्षा बलों ने सर्जिकल स्ट्राइक शैली में उस घर को ही उड़ा दिया जिसमें वे छिपे थे। यद्यपि फुटकर-फुटकर इक्का दुक्का आतंकवादी तो आए दिन मारे जाते रहे हैं लेकिन एक साथ आधा दर्जन को मार गिराना उल्लेखनीय सफलता है। इस कार्रवाई में किसी भी नागरिक को जान माल का नुकसान नहीं हुआ। जबसे जम्मू कश्मीर निर्वाचित सरकार की जगह राज्यपाल शासन के रूप में केंद्र सरकार के नियंत्रण में आया तबसे सुरक्षा बलों ने बड़ी संख्या में आतंकवादियों को ढूँढ़ ढूंढकर मार गिराया। इस वजह से अलगाववादियों के हौसले भी काफी पस्त हुए हैं। हुर्रियत के तमाम नेताओं को नजरबंद कर दिए जाने से भी भारत विरोधी ताकतों की मैदानी हरकतों पर लगाम लगी है लेकिन दूसरी तरफ  ये बात भी सही है कि कश्मीरी जनता के मन में  आतंकवादियों का खौफ  अभी भी खत्म नहीं हुआ। इसका प्रमाण आतंवादियों के जनाजे में होने वाले उग्र प्रदर्शनों से मिलता है। गत दिवस भी अनंतनाग में सुरक्षा बलों के ऑपरेशन की सफलता के बाद काफी जनता सड़कों पर उतरी और कफ्र्यू लगाना पड़ा। ये सब देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि जम्मू कश्मीर में अभी नया विधानसभा चुनाव टाला जाना चाहिए। हालाँकि विधानसभा भंग होने के बाद केंद्र सरकार ने संकेत दिया कि लोकसभा चुनाव के पहले राज्य विधानसभा चुनाव करवाने का विचार है लेकिन ऐसा करने से सुरक्षा बलों के अभियान को धक्का पहुँचेगा। चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ होते ही सुरक्षा बलों की जिम्मेदारी कानून व्यवस्था बनाए रखकर चुनाव सम्पन्न करवाने की हो जाएगी जिससे आतंकवादियों के विरुद्ध चल रहे अभियान में व्यवधान आएगा। बेहतर होगा केंद्र सरकार इस विषय में थोड़ा व्यवहारिक होकर विचार करे और राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने से पहले दूरगामी राष्ट्रीय हितों के बारे में सोचकर फैसला करते हुए सेना और उसके सहयोगी बलों की सलाह और जरूरतों को प्राथमिकता दे। यद्यपि नेशनल कांफे्रंस, पीडीपी और कांग्रेस विधानसभा चुनाव टालने का समर्थन नहीं करेंगी वर्तमान हालातों में वहां चुनाव करवाने से कुछ नेताओं और दलों के राजनीतिक हितों का पोषण भले हो जाए लेकिन ऐसा राष्ट्रहित की कीमत पर होगा और इसलिये उसे टालना चाहिए। अतीत में भी जम्मू कश्मीर विधानसभा लम्बे समय तक भंग रही जिस कारण वहां  राष्ट्रपति शासन की अवधि छह माह के बाद और बढ़ाई जाती रही। अगले साल मई के अंत तक केंद्र में नई सरकार बन जायेगी। उसी के बाद जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव सम्बन्धी फैसला किया जाए तो अच्छा रहेगा। इस दौरान सुरक्षा बलों को खुलकर आतंकवादियों की कमर तोडऩे की छूट मिलनी चाहिए जो राज्य सरकार के रहते नामुमकिन है क्योंकि वहां जो भी सरकार बनेगी वह होगी तो अब्दुल्ला या मुफ्ती परिवार की ही पार्टी की। ये दोनों कहें कुछ भी लेकिन कश्मीर की तथाकथित स्वायत्तता के नाम पर ये अलगाववाद की जड़ों को सींचने में ही लगी रही हैं। फारुख और उमर अब्दुल्ला की तरह ही महबूबा मुफ्ती भी अलगाववादियों से बातचीत करने का दबाव बनाती रहती हैं। इनकी निगाह में सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने वाले और आतंकवादियों को बचकर निकलने में सहायता करने वाले तो भटके हुए नौजवान हैं जबकि उनकी देशविरोधी गतिविधियों को रोकने वाले जवान मानवाधिकारों का हनन करने वाले। दुर्भाग्य से कांग्रेस और भाजपा दोनों राष्ट्रीय पार्टियां होने के बाद भी उक्त क्षेत्रीय दलों की कुटिल चालों में फंसकर राष्ट्रहित से खिलबाड़ कर चुकी हैं। भले ही इसके पीछे उनकी इच्छा बड़ी नेक रही हो किन्तु अंतत: वह सांप को दूध पिलाने वाली गलती ही सिद्ध हुई। विधानसभा चुनाव होने पर कांग्रेस और भाजपा अपने दम पर सरकार नहीं बना सकेंगे। त्रिशंकु सदन की स्थिति में ज्यादा से ज्यादा वे उनके साथ कनिष्ठ सहयोगी बनकर सत्ता का हिस्सा बन सकते हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि उस स्थिति में भी अलगाववादियों को संरक्षण मिलता रहेगा और सुरक्षा बलों का हौसला तोडऩे की शरारत भी जारी रहेगी। इसलिए बेहतर यही रहेगा कि इस समस्याग्रस्त राज्य में नई सरकार चुनने की जल्दबाजी न की जाए और घाटी को सुरक्षाबलों की निगरानी और नियंत्रण में रखा जावे। ऐसा होने से उन्हें आतंकवादियों के सफाये का पर्याप्त अवसर मिलेगा तथा वे जरूरत के मुताबिक उचित निर्णय ले सकेंगे। कश्मीर समस्या के हल हेतु हुर्रियत अथवा अन्य किसी अलगाववादी संगठन से बतियाने की बात करने सम्बंधी सुझाव सिवाय समय गंवाने के और कुछ भी नहीं है। घाटी में अलगाववाद की कमर तोडऩे के लिए वही करना पड़ेगा जो श्रीलंका में तत्कालीन राजपक्षे सरकार ने तमिल उग्रवादियों को जड़ से उखाड़ फेंककर अपने देश को आतंकवाद से स्थायी मुक्ति दिलवाने के लिए किया। चीन सरकार  भी इन दिनों अपने देश में इस्लामी आतंकवाद की जड़ों में मठा डालने के लिए हरसम्भव कड़े कदम उठाने की इच्छाशक्ति दिखा रही है। भारत को भी इसी शैली का प्रयोग करना चाहिए। जम्मू कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया से ज्यादा जरूरी राष्ट्र की सुरक्षा और सम्प्रभुता के लिए खतरा बने गद्दारों का सर्वनाश करना है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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