Monday 26 November 2018

राम मंदिर : भावनात्मक विस्फोट के पूर्व समाधान जरूरी

अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित धर्म संसद शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो गई। राम मंदिर के निर्माण के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से साधु-संतों के अलावा लाखों हिन्दू धर्मावलंबी अयोध्या में एकत्र हुए। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी परिवार सहित अयोध्या आए। उनके समर्थन में शिव सैनिक भी बड़ी संख्या में इस पवित्र शहर में जा पहुंचे जिससे शांति व्यवस्था खतरे में पडऩे की आशंका व्यक्त की जाने लगी। मायावती और अखिलेश यादव ने इसी आधार पर सेना तैनाती की मांग भी कर डाली। लेकिन लाखों हिंदुओं के जमावड़े के बावजूद सब कुछ सामान्य तरीके से निबट गया। श्री ठाकरे भी देवदर्शन के साथ ही सियासी बयानबाजी करते हुए मुंबई लौट गए और विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर एकत्रित हुए संत गण भी मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार की तरफ  से मिले कथित आश्वासन के उपरांत सन्तुष्ट हो गए। हालांकि सरकार और सर्वोच्च न्यायालय पर दबाव बनाने के मकसद से तीखी बयानबाजी से परहेज नहीं किया गया। कई संतों ने भाजपा को ये चेतावनी भी दे डाली कि मंदिर निर्माण शुरू नहीं हुआ तो 2019 के लोकसभा चुनाव में उसका फट्टा साफ  हो जाएगा। उक्त आयोजन ऐसे समय रखा गया जब अनेक राज्यों में विधानसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है। विपक्ष का आरोप है कि भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए संघ परिवार ने विहिप के संयोजकत्व में अयोध्या में बड़ा जलसा किया चुनाव वाले राज्यों में भाजपा के पक्ष में हिन्दुओं का धु्रवीकरण किया जा सके। ये उद्देश्य कितना पूरा होगा ये तो 11 दिसम्बर की दोपहर तक स्पष्ट होगा लेकिन इसके कारण पूरे देश में राम मंदिर एक बार पुन: मुख्य एजेंडे में आ गया। सरकार पर अध्यादेश के जरिये मंदिर निर्माण की राह प्रशस्त करने का जो दबाव बीते कुछ दिनों में बनाया गया वह परोक्ष रूप से सर्वोच्च्च न्यायालय को भी इस बात का इशारा है कि यदि उसने अयोध्या विवाद सम्बन्धी अपना रवैया नहीं बदला तब सरकार कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार रखते हुए अपने स्तर पर कोई निर्णय कर देगी। ये भी सर्वविदित है कि वैसा नहीं होने पर लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और भाजपा को जवाब देना कठिन हो जाएगा। चूंकि सर्वोच्च न्यायालय इस बारे में अपना रुख स्पष्ट कर चुका है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई तो मंदिर मसले को अपनी प्राथमिकता मानने से इंकार करते हुए  नियमित सुनवाई से पहले ही मना कर चुके थे। लेकिन बीते कुछ दिनों में श्री गोगोई की टिप्पणी के विरोध में जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आईं उन्होंने भाजपा का मनोबल बढ़ा दिया। उसे एक बार पुन: ये एहसास हो गया कि मंदिर मुद्दा अभी भी प्रासंगिक और हिन्दू जनमानस को प्रभावित करने वाला है। शायद अयोध्या में धर्म संसद नहीं हुई होती यदि विपक्ष मंदिर मुद्दे पर भाजपा को रोज़ाना उलाहना देते हुए उसका उपहास नहीं करता। मंदिर निर्माण शुरू होने की तिथि नहीं बता पाने को लेकर राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे दोनों भाजपा का आए दिन मजाक उड़ाया करते है। इसलिए मजबूर होकर भाजपा को मंदिर मुद्दे को नए सिरे से गर्माने का निर्णय करना पड़ा। एक संत ने तो ये तक कह दिया कि केंद्र के एक बड़े मंत्री ने उन्हें 11 दिसम्बर के बाद मंदिर निर्माण सम्बन्धी बड़े निर्णय का आश्वासन दिया है। क्या सच है क्या गलत ये तो कोई नहीं जानता लेकिन भाजपा के लिए भी ये मुद्दा उगलत निगलत पीर घनेरी बन गया है। सर्वोच्च न्यायालय का ताजा रुख देखकर जल्द फैसले की आशा खत्म होने से  ही पार्टी धर्मसंकट में आ गई। अधिकतर देश पर राज और केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली सरकार के अलावा नरेंद्र मोदी जैसे हिन्दूवादी प्रधानमन्त्री के रहते भी यदि मंदिर बनना शुरू नहीं हो सका तब लोकसभा चुनाव में उप्र में भाजपा के बुरे दिन आना तय है जहां योगी आदित्यनाथ के रूप में एक हिन्दू सन्यासी सत्तासीन है। कुल मिलाकर समय आ गया है जब केंद्र सरकार को साहस दिखाते हुए कोई ठोस निर्णय  लेना ही चाहिए क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय और विपक्ष की प्राथमिकताओं में भले न  हो किन्तु देश की बहुसंख्यक आबादी के लिए राम मंदिर का निर्माण बेहद भावनात्मक विषय है। छद्म धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हिंदुओं की जो उपेक्षा इस देश के राजनीतिक नेताओं ने की उससे बहुसंख्यक समुदाय में बेहद गुस्सा है। यदि इसकी गंभीरता को नहीं समझा गया तो किसी बड़े भावनात्मक विस्फोट की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। बेहतर है उसके पहले कोई समाधान निकाल लिया जावे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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