Saturday 17 November 2018

अयोध्या मामले में नया मोड़

अयोध्या विवाद को अपनी प्राथमिकता नहीं मानने वाले सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पर राजनीतिक जमात के साथ - साथ विभिन्न वर्गों से आलोचना के तीर छोड़े गए । उल्लेखनीय है कि पिछले प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के कार्यकाल में इस प्रकरण की सुनवाई नियमित करने का निर्णय हुआ था । जब गत 29 अक्टूबर को श्री गोगोई की अध्यक्षता में सुनवाई हुई तब पूरा देश उम्मीद कर रहा था कि देश की राजनीति में उथल - पुथल मचाये रखने वाले इस मुद्दे पर श्री गोगोई त्वरित गति से सुनवाई करते हुए फैसला कर देंगे किन्तु पहली ही पेशी में उन्होंने बड़ी ही बेरुखी दिखाते हुए कह दिया कि ये प्रकरण उनकी प्रथमिमताओं में नहीं आता और जनवरी में नई पीठ इसकी सुनवाई करेगी किन्तु उसका समय निश्चित नहीं किया जा सकता । इस तरह। प्रधान न्यायाधीश के साथ ही नियमित सुनवाई का सर्वोच्च न्यायालय का अपना फैसला ही रद्दी की टोकरी में चला गया जिससे न्याय की सबसे ऊंची आसंदी को लेकर विधि जगत के अलावा आम लोगों में चलने वाली चर्चाओं को और भी बल मिल गया । बात आई गई हो गई क्योंकि बीच में दीपावली का त्यौहार आ गया लेकिन अचानक एक खबर ने ध्यान खींच लिया । अयोध्या विवाद के दो प्रमुख पक्षकार मंदिर के महंत धर्मदास और मस्जिद के इकबाल अंसारी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर मांग की है कि अयोध्या विवाद के जल्द निराकरण हेतु विशेष पीठ गठित कर नियमित सुनवाई की व्यवस्था की जाए । यहां तक भी बात ठीक थी किन्तु उक्त दोनों पक्षकारों ने महामहिम से ये मांग भी कर दी कि विशेष पीठ में प्रधान न्यायाधीश श्री गोगोई न रहें । इस बारे में जो जानकारी मिली वह और भी चौंकाने वाली कही जा सकती है क्योंकि मंदिर और मस्जिद के पक्षकारों द्वारा राष्ट्रपति से विशेष पीठ का गठन कर नियमित सुनवाई करवाने के अनुरोध से भी आगे बढ़कर उस पीठ में श्री गोगोई को नहीं रखे जाने जैसी मांग का पत्र लिखे जाने संबंधी फैसला अयोध्या में इकबाल अंसारी के निवास पर हुई महंत धर्मदास सहित कुछ हिन्दू और मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक में हुआ। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के रवैये पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा गया कि हम नहीं चाहते कि मंदिर - मस्जिद विवाद को लेकर लोग आपस में झगडें । उसी बैठक में प्रकरण की नियमित सुनवाई हेतु महामहिम से लिखित अनुरोध करने के साथ ही उनसे मिलकर तत्संबंधी मांग करने का निर्णय किया गया । इस प्रकरण में इसे एक सकारात्मक मोड़ कहा जा सकता है । इससे कई बातें साबित हो गईं। पहली तो ये कि अयोध्या विवाद के दोनों ही पक्ष अब लंबी मुक़दमेबाजी से ऊब चुके हैं और जल्द फैसला चाहते हैं । दूसरी बात ये कि दोनों को इस सम्वेदनशील मुद्दे पर प्रधान न्यायाधीश श्री गोगोई की उपेक्षावृत्ति पर जबर्दस्त आपत्ति है जो एक तरह से उनके प्रति अविश्वास में बदल गई वरना दोनों पक्षकार राष्ट्रपति से विशेष पीठ गठित करने के अनुरोध में ये शर्त नहीं जोड़ते कि श्री गोगोई को उसमें शामिल नहीं किया जावे । इसका कारण सम्भवत: प्रधान न्यायाधीश द्वारा अयोध्या विवाद को अपनी प्राथमिकताओं में नहीं रखे जाना हो सकता है । एक बात और भी इस बारे में सामने आ गई कि कांग्रेस नेता और प्रख्यात अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या विवाद की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव तक टालने की जो दलील दी थी वह दरअसल कांग्रेस पार्टी की रणनीति का ही हिस्सा रही होगी। भले ही पूरे देश में भद्द पिटने के बाद पार्टी ने श्री सिब्बल को उस मामले से हटने की सलाह भी दी किंतु  दीपक मिश्रा के विरुद्ध महाभियोग का हल्ला मचाने वालों में श्री सिब्बल की अग्रणी भूमिका रही थी और संयोगवश जिन चार न्यायाधीशों ने गत जनवरी में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश श्री मिश्रा के विरुद्ध सार्वजनिक मोर्चा खोला था उसकी अगुआई श्री गोगोई ने ही की थी । प्रधान न्यायाधीश बनते ही उनके कतिपय फैसले और आदेश केंद्र सरकार के विरुद्ध होने से ये भावना तेजी से फैलने लगी कि सर्वोच्च न्यायालय और सरकार में टकराव की स्थिति बनेगी यद्यपि श्री गोगोई के अलावा एक न्यायाधीश की नियुक्ति को लेकर केंद्र ने टकराव को टाला । इसके पीछे केंद्र की सोच शायद यही होगी कि पिछले प्रधान न्यायाधीश को लेकर जो विवाद की स्थिति बनी उसकी पुनरावृत्ति न हो सके । लेकिन अयोध्या मामले के दो पक्षकारों द्वारा जिस तरह से श्री गोगोई को विशेष पीठ से अलग रखने की मांग राष्ट्रपति से की उससे अब न्यायपालिका को लेकर नई बहस शुरू हो सकती है । कम से कम इतना तो होगा ही कि जो नई पीठ जनवरी में बनाने हेतु श्री गोगोई ने कहा था उसमें नैतिकता की वजह से वे स्वयं नहीं होंगे । ये बहुत ही रोचक मामला हयोग जब इतने चर्चित प्रकरण में दोनों विरोधी पक्षकार प्रधान न्यायाधीश को पीठ में रखे जाने का विरोध कर रहे है। न्यायपालिका को लेकर राजनीतिक जगत में चल रहा विवाद अब पक्षकारों तक भी पहुंचने लगा है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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