Monday 19 November 2018

पंजाब में आतंकवाद की आहट नए खतरे का संकेत

अमृतसर के समीप एक गांव में निरंकारी भवन पर हुए आतंकी हमले ने पंजाब में आतंक की वापसी का खतरा उत्पन्न कर दिया है। ये माना जा रहा है कि घटना के पीछे पाकिस्तान पोषित कश्मीर के किसी आतंकवादी संगठन का हाथ है। ये सन्देह भी व्यक्त किया गया है कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद के पैर उखड़ते देख पाकिस्तान एक बार फिर खालिस्तान के नाम पर पंजाब को आतंक की आग में धकेलने का षडय़ंत्र रच रहा है। स्मरणीय है नब्बे के दशक में जब पंजाब में पाकिस्तान प्रवर्तित खालिस्तानी आतंकवाद की कमर टूटने लगी तब उसने कश्मीर में आतंकवाद को दाना-पानी देकर भारत के लिए ऐसी समस्या खड़ी कर दी जिसकी वजह से पूरे देश की आंतरिक सुरक्षा खतरे में पड़ी हुई है।  हालांकि पंजाब में सैन्य ठिकानों पर भले आतंकवादी हमले होते रहे किन्तु निरंकारी भवन पर हुआ ताजा हमला किसी दूसरी रणनीति की तरफ  इशारा कर रहा है। एनआईए ने जांच शुरू कर दी है लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि खुफिया एजेंसियों द्वारा आगाह किए जाने के बाद भी आतंकवादी कामयाब हो गए। हमले के लिए अपनाए गए तरीके से ये लगता है कि वे बड़ी वारदात करने में सक्षम नहीं थे लेकिन हथगोला फेंककर तीन लोगों की जान लेकर उन्होंनें दहशत तो फैला ही दी जो आतंकवाद का प्राथमिक उद्देश्य होता है।  इस घटना को लेकर न तो राजनीति  होनी चाहिए और न ही सुरक्षा एजेंसियों पर उंगली उठाने की कोशिश ही सही होगी। लेकिन केंद्र और पंजाब के साथ ही जम्मू-कश्मीर में तैनात सुरक्षा एजेंसियों को मिल बैठकर ये निष्कर्ष निकालना चाहिए कि उक्त घटना की जड़ , उद्देश्य और आगामी योजना क्या है? ये अवसर इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि लोकसभा चुनाव का माहौल देश में बनने लगा है।  जम्मू-कश्मीर में फिलहाल केंद्र का शासन है इसलिए वहां भी नए चुनाव या फिर कोई वैकल्पिक सरकार बनने की प्रक्रिया राजनीतिक स्तर पर चल रही है। घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियों के विरुद्ध सुरक्षा बलों की सुनियोजित और आक्रामक रणनीति की वजह से आतंकवादी संगठन बौखलाए हुए हैं।  हाल के कुछ दिनों में उन्होंने स्थानीय पुलिस वालों की हत्या करने के अलावा नौजवानों का अपहरण कर उनकी नृशंस हत्या करने का तरीका अख्तियार कर रखा है।  कश्मीर घाटी की जनता भी अब आतंकवादियों की गतिविधियों से त्रस्त होकर उनको पहले जैसा सहयोग नहीं दे रही।  पत्थरबाजी की घटनाओं में भी कमी आई है।  सुरक्षा बलों द्वारा सघन तलाशी अभियान चलाकर छिपे हुए आतंकवादियों के सफाये का जो अभियान चलाया गया उसके अनुकूल परिणाम निकले जिसकी वजह से पाकिस्तान भी अपनी रणनीति बदलकर पंजाब में नया मोर्चा खोलने का दांव चल सकता है।  पंजाब में नशे के कारोबार को भी आतंकवादी गतिविधियों से जोड़कर देखा जाता रहा है।  यूूं भी आतंकवादियों के लिए कश्मीर के बाद पंजाब ही सबसे उपयुक्त जगह है क्योंकि वहां से सीमा पार करना आसान है।  लेकिन देखने वाली बात ये होगी कि मुस्लिम आतंकवादी संगठनों का खालिस्तान समर्थक तत्वों से गठबंधन किस तरह आकार लेगा क्योंकि बिना पाकिस्तान के सक्रिय सहयोग के ये सम्भव नहीं होगा। नब्बे के दशक में भी पंजाब के आतंकवाद को पूरी तरह से पाकिस्तान का समर्थन था।  जानकार सूत्र कहते हैं कि 1971 में बांग्ला देश के निर्माण का बदला लेने हेतु पाकिस्तान के तत्कालीन फौजी तानाशाह जिय़ाउल हक ने पंजाब में अलगाववाद के बीज बोए और बड़ी संख्या में सिख युवकों को लालच देते हुए  सीमा पार बुलाकर वैसे ही आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जैसे वह कश्मीरी युवकों के साथ करता है। खालिस्तान की उस मांग को कुछ पश्चिमी ताकतों का भी अंदरूनी समर्थन हासिल था जो भारत को अस्थिर करने के लिए हमेशा पाकिस्तान को प्रेरित और प्रोत्साहित करते रहे।  ये कहना पूरी तरह से सत्य है कि यदि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश पाकिस्तान को दूध पिलाकर नहीं पालते तो वह अपने अंतद्र्वंद में उलझकर कभी का टूट चुका होता। यहां उल्लेखनीय है कि भारत का विभाजन करते समय अंग्रेजों ने सिख होमलैंड बनवाने का कुचक्र भी रचा था। लेकिन पाकिस्तान बनने की हलचल शुरू होते ही पश्चिमी हिस्से सहित सीमांत क्षेत्रों में मुसलमानों ने जिस तरह से सिखों और हिंदुओं का क़त्लेआम शुरू किया उससे अलग देश का ख्वाब देखने वाले सिख नेता चौकन्ने हो गए और भारत के साथ रहने को राजी हो गए किन्तु ये भी सही है कि अलग देश का ज़हरीला बीज पंजाब की मिट्टी में दबा रहा जो रह-रहकर अंकुरित होने की कोशिश करता रहा और कालान्तर में भिंडरावाला के रूप में सामने आ गया।  हालांकि इसके पीछे हमारे देश की राजनीति भी कम जिम्मेदार नहीं थी जिसका दर्दनाक चर्मोत्कर्ष अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार और फिर इंदिरा गांधी की हत्या के रूप में देखने मिला।  धीरे-धीरे देश उस दौर को भूल चुका था। कश्मीर घाटी में आतंकवाद के उदय के साथ ही पूरा ध्यान वहां केंद्रित होता गया।  लेकिन गत दिवस अमृतसर के पास निरंकारी भवन में हुआ हादसा नये खतरे का इशारा है।  इसके दूरगामी उद्देश्य को समझकर तत्काल उचित कदम उठाये जाने की जरूरत है। विशेष ध्यान रखने वाली बात ये है कि उक्त घटना को राजनीति का चश्मा उतारकर राष्ट्रीय सुरक्षा और उससे जुड़ी चिंताओं के संदर्भ में देखना चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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