Friday 16 November 2018

आरक्षण : मराठा के बाद पाटीदार और जाट चढ़ बैठेंगे

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस ने मराठा आरक्षण के लिए संघर्षरत लोगों से आंदोलन स्थगित करने की अपील करते हुए कह दिया कि 1 दिसम्बर को वे जश्न मनाने के लिए तैयार रहें । उनके इस सुझाव को मराठा आरक्षण की घोषणा का पूर्व संकेत समझा जा रहा है । राज्य विधानसभा के आगामी सत्र में तत्संबधी ऐलान की अटकलें तेज हो गई हैं । मराठा समुदाय महाराष्ट्र में वही सामाजिक , राजनीतिक और आर्थिक हैसियत रखता है जो गुजरात में पाटीदार और हरियाणा तथा प. उत्तरप्रदेश में जाटों की कही जा सकती है । आरक्षण की उनकी मांग यूँ तो काफी पुरानी है लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा समुदाय का जबरदस्त दबदबा रहा है जिसका प्रमाण आधा दर्जन से ज्यादा मराठाओं का मुख्यमंत्री बनना है । केंद्र की राजनीति में भी मराठा वर्ग के अनेक नेताओं ने प्रभावशाली भूमिका का निर्वहन किया और आज भी कर रहे हैं । इसी वजह से जब शुरू - शुरू में मराठा आरक्षण की मांग उठी तब उसके औचित्य पर प्रश्न उठाए गए किन्तु आखिरकार राजनीति उसमें घुस गई और फिर पूरा का पूरा आंदोलन वोट बैंक में उलझ गया । ऐसा होते ही कांग्रेस , भाजपा और शिवसेना जैसे प्रमुख दलों ने उस आंदोलन का समर्थन कर दिया लेकिन मराठा मुख्यमंत्रियों के रहते हुए भी वह मांग अधूरी ही रही क्योंकि सर्वोच्च  न्यायालय ने आरक्षण की अधिकतम सीमा जो तय कर रखी है और फिर एक जाति या समुदाय को आरक्षण मिलते ही दूसरा दाना - पानी लेकर चढ़ बैठता है । इस वजह से जब देर हुई तब मराठा समाज ने आंदोलन शुरू किया जिससे राज्य में काफी नुकसान हुआ और तनाव भी बढ़ा ।  वर्तमान फणनवीस सरकार पहले भी आंदोलन के जोर पकडऩे पर किसी न किसी तरह का आश्वासन बांटकर आग पर पानी डालती रही किन्तु 2019 में लोकसभा और उसके कुछ महीनों बाद ही राज्य विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं । शिवसेना के साथ भाजपा के सम्बंध पहले से ही तनावपूर्ण बने हुए हैं । उद्धव ठाकरे एनडीए से अलग चुनाव लडऩे की घोषणा काफी पहले ही कर चुके थे। लोकसभा चुनाव में मराठा आंदोलन भाजपा के लिए सिरदर्द बन सकता है । हो सकता है यही सब सोचकर श्री फणनवीस ने  मराठा आरक्षण को मंजूरी देने का मन बना लिया होगा । विधानसभा में वे जो घोषणा करने वाले हैं उससे आंदोलनकारी कितने सन्तुष्ट होंगे ये अभी से कहना कठिन है लेकिन जैसे ही मराठाओं को आरक्षण मिलेगा गुजरात , हरियाणा तथा प.उप्र भी जलने लगेंगे । हरियाणा का पिछला जाट आंदोलन जो यादें छोड़ गया वे आज भी डरा देती हैं । गुजरात के पाटीदार आंदोलन ने तो पूरे देश की राजनीति को प्रभावित कर दिया । चूंकि मराठा , पाटीदार और जाटों का नेतृत्व सम्पन्न लोगों के हाथ है इसलिए वे पलक झपकते ही राज्य की शांति भंग करने की ताकत रखते हैं । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शायद इसीलिए सतर्क होकर काम कर रहे हैं और हो सकता है उन्हें भाजपा के साथ ही रास्वसंघ की स्वीकृति भी इस बारे में प्राप्त हो गई हो । उल्लेखनीय है श्री फणनवीस नागपुर के ही हैं और संघ से उनके बड़े ही निकट संबंध रहे हैं । ऐसे में वे इतना बड़ा निर्णय अकेले दम पर शायद ही लें । लेकिन महाराष्ट्र में भले ही आग ठंडी पड़ जाए किन्तु उसका असर पड़ोसी गुजरात और फिर हरियाणा , प.उप्र तथा राजस्थान में भी पड़े बिना नहीं रहेगा । ये सवाल भाजपा के सामने आकर खड़ा हो जायेगा कि जब मराठा समुदाय को आरक्षण की सुविधा दी जा सकती है तब पाटीदारों और जाटों को किस आधार पर उससे वंचित रखा जाना चाहिए । स्मरणीय है कि इसी तर्ज पर आंध्र की एक ताकतवर कृषक जाति ने भी कुछ वर्ष पूर्व आरक्षण के लिए हिसंक आंदोलन कर चंद्रबाबू नायडू सरकार की मुसीबतें बढ़ा दी थीं । ये आशंका भी है कि मराठा , पाटीदार और जाट समुदायों को आरक्षण मिलते ही अन्य राज्यों में भी उनकी समकक्ष जातियों द्वारा भी ऐसी ही मांगें उठेंगी । इसके पीछे सामुदायिक कल्याण कम और राजनीतिक महत्वाकांक्षा कहीं ज्यादा है । महाराष्ट्र सरकार यदि मराठा आरक्षण की घोषणा कर देती है तब बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी वाली स्थिति बने बिना नहीं रहेगी और पूरे देश में नए - नए दबाव समूह उभरकर सामने आने लगेंगे तथा बड़ी बात नहीं कि लोकसभा चुनाव आते - आते तक देश एक बार फिर नए सिरे से जातीय हिंसा की आग में घिर जाए । आरक्षण नामक व्यवस्था एक पवित्र उद्देश्य से शुरू की गई थी जिसका उद्देश्य वंचित वर्ग को विकास की दौड़ में आगे लाना था किंतु सियासत के गंदे खेल ने उसे सामाजिक विद्वेष और विघटन का कारण बनाकर रख दिया । इसे लेकर तदर्थ सोच अपनाए जाने का ही दुष्परिणाम है कि आरक्षण अब हनुमान जी की पूंछ की तरह बढ़ता ही जा रहा है । नई - नई जातियां और उपजातियां निकलकर सामने आने लगी हैं जिनके पीछे कोई न कोई राजनीतिक दिमाग जरूर रहता है । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बेहद सुलझे और समझदार नेता हैं लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं कि वे 1 दिसम्बर को मराठा समाज को जो खुशखबरी देने जा रहे हैं उससे वह पूर्णरूपेण खुश और संतुष्ट हो ही जायेगा । उल्टे महाराष्ट्र की हवा दूसरे राज्यों में भी फैल गई तो देश नई मुसीबत में फंस सकता है  क्योंकि सभी की नजर लोकसभा चुनाव पर जो है । और हमारे देश में चुनाव के समय जो मांगोगे वही मिलेगा का माहौल रहता है ।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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