Wednesday 12 June 2019

विजयवर्गीय का बड़बोलापन पार्टी के लिए नुकसानदेह

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय अत्यंत वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं। मप्र की राजनीति में लम्बा समय गुजारने के बाद वे राष्ट्रीय राजनीति में उतरे और बंगाल के प्रभारी बनकर पार्टी को चमत्कारिक सफलता दिलवाई। इन्दौर को विकास की ऊँचाइयों पर ले जाने में श्री विजयवर्गीय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रदेश शासन में बतौर मंत्री भी वे काफी प्रभावशाली रहे और अक्सर मुख्यमंत्री के लिए उनके नाम की चर्चा भी होती रही। लेकिन कभी-कभी वे ऐसा कुछ बोल जाते हैं जो उनके सियासी कद के लिहाज से बेहद गैर जिम्मेदाराना लगता है। गत दिवस इन्दौर की एक रैली में उन्होंने कह दिया कि दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुरेश पचौरी के लोग उन्हें फोन करके कमलनाथ सरकार गिराने के लिए कहते हैं। राजनीति में विभिन्न दलों के लोगों के बीच तरह-तरह की बातीं होती रहती हैं। वैसे भी आज के दौर में किसी नेता का कोई ईमान धरम नहीं बचा है। कौन, कब पाला बदल ले इसका अनुमान लगाना कठिन है। लेकिन एक परिपक्व नेता से ये आशा रहती है कि वह सार्वजानिक रूप से कुछ भी बोलने के पहले उसके निहितार्थ को समझे। श्री विजयवर्गीय ने ये दावा भी किया कि वे चाहें तो कभी भी प्रदेश सरकार गिरा सकते हैं। यदि उनकी ये बात मान भी लें कि प्रदेश कांग्रेस के कतिपय वरिष्ठ नेताओं से जुड़े लोग उनसे कमलनाथ सरकार को गिराने की गुजारिश कर रहे हैं तब भी एक वरिष्ठ नेता की तरह उनका ये फर्ज था कि वे उस बात को गोपनीय रखते। उनके सार्वजनिक बयान के बाद कांग्रेस उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए उन लोगों का नाम बताने को कहे तब श्री विजयवर्गीय क्या करेंगे? लगता है वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लोकसभा चुनाव के दौरान बंगाल में दिए उस बयान की नकल करना चाह रहे हैं जिसके अनुसार तृणमूल के 40 विधायक भाजपा के संपर्क में होने का दावा किया गया था। लेकिन वहां तो ममता बैनर्जी के दो चार विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में आ भी गये जबकि मप्र में कांग्रेस तो क्या उसे बाहर से समर्थन दे रहे सपा-बसपा और निर्दलीय विधायक तक भाजपा की तरफ  देखने का संकेत तक नहीं दे रहे। उस दृष्टि से श्री विजयवर्गीय का बयान सिवाय आत्मप्रशंसा के और कुछ भी नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा भी अनेक भाजपा नेता आये दिन इस तरह की बयानबाजी करते रहते हैं। राजनीतिक दांवपेंच के अनुसार ऐसा करके वे कमलनाथ सरकार पर मनोवैज्ञानिक दबाव जरुर बना देते हैं लेकिन केवल हवा में ल_ घुमाते रहने से भाजपा की विश्वसनीयता भी कम होती है। मप्र में कांग्रेस की सरकार निश्चित रूप से बैसाखियों पर है। मुख्यमंत्री बनने के पहले कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता थे लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद उनका कद एक झटके में घट गया। पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता उनसे भन्नाए हुए हैं क्योंकि वे सभी तो हार गये लेकिन मुख्यमंत्री अपने पुत्र को जितवा लाये। खबर ये भी है कि मंत्रीमंडल की बैठकों में भी गुटीय मतभेद उभरकर सामने आने लगे हैं। बावजूद इसके सरकार गिराने की पहल पार्टी के भीतर से होने का कोई संकेत दूरदराज तक नहीं दिख रहा। इसकी एक वजह ये है कि 15 वर्ष तक सत्ता से वंचित रहे कांग्रेस विधायक और शेष नेता नहीं चाहेंगे कि वे फिर से सड़क पर आ जाएँ। ये देखते हुए श्री विजयवर्गीय का बयान अनावश्यक और अविश्वसनीय ही लगता है। हो सकता है भाजपा कार्यकर्ताओं को खुश करने के लिए उन्होंने बड़बोलापन दिखाया हो लेकिन ऐसा करने से उनकी अपनी प्रतिष्ठा घटती है। बेहतर हो भाजपा विपक्ष की भूमिका का निर्वहन अच्छे से करे। ये कहना गलत नहीं होगा कि सत्ता सुन्दरी के लम्बे सान्निध्य ने भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को सुविधाभोगी बना दिया है। मप्र में कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खन्डेलवाल और नारायण प्रसाद गुप्ता जैसे नेताओं ने अपना समूचा जीवन पार्टी को खड़ा करने में खफा दिया लेकिन आज के भाजपा नेता चाहे वे रास्वसंघ से आये हुए संगठन मंत्री ही क्यों न हों उन नींव के पत्थरों के विपरीत विलासितापूर्ण जीवनशैली के अभ्यस्त हो चले हैं। पार्टी के कार्यालय बेहद आधुनिक और आरामदेह बन गये हैं। इसके कारण नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच संवाद और सम्बन्ध कमजोर होता जा रहा है। तपे-तपाये ध्येयनिष्ठ लोगों की जगह अवसरवादी और व्यापारिक किस्म के लोगों ने ले ली है। भाजपा, दावा कितने भी करे और उसके सिद्धांत कितने भी अच्छे हों लेकिन सत्ता प्राप्त करने और उसमें बने रहने के लिए वह भी अन्य राजनीतिक दलों की तरह ही आचरण करती है। चूँकि नैतिकता से किसी भी दल का कोई वास्ता नहीं है इसलिए भाजपा के दोष भी छिप जाते हैं। लेकिन श्री विजयवर्गीय जैसे नेताओं द्वारा समय-समय पर दिए जाने वाले अंट-शंट बयानों से पार्टी के उन समर्थकों को दु:ख होता है जो उसकी नीतियों से आकर्षित होकर प्रशंसक बने। मप्र की सरकार अपनी विसंगतियों और अंतर्निहित विरोधाभासों की वजह से गिर जाए तब भाजपा का सत्ता में आने का दावा स्वाभाविक रूप से मजबूत होगा लेकिन सरकार को गिराने के अनुचित प्रयास हुए तब ये मानकर चलना चाहिए कि भाजपा की प्रतिष्ठा गिरेगी। बेहतर हो भाजपा हाईकमान श्री विजयवर्गीय और उन जैसे ही दूसरे बड़बोले नेताओं पर लगाम लगाये जो अपनी शान बघारने के फेर में पार्टी को शर्मसार किया करते हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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