Thursday 6 June 2019

कश्मीर का परिसीमन : सिरदर्द के स्थायी इलाज की पहल

दूसरी बार मोदी सरकार बने हफ्ता भर बीतने जा रहा है। सभी मंत्रियों ने पदभार भी ग्रहण कर लिया। प्रधानमंत्री के साथ अमित शाह के भी सरकार का हिस्सा बन जाने से उसकी निर्णय क्षमता में निश्चित तौर पर वृद्धि हुई है। ये भी स्पष्ट है कि श्री शाह गृह विभाग के साथ ही अन्य मंत्रियों के भी सम्पर्क में रहकर प्रधानमंत्री का बोझ थोड़ा हल्का करेंगे। पदभार ग्रहण करते ही उन्होंने अपने विभागीय अधिकारियों के साथ ही मंत्रियों की जो बैठक ली उससे काफी कुछ संकेत मिल गए हैं। कश्मीर समस्या को लेकर की गई पहल से भी काफी आशाएं बंधी है। चूंकि श्री शाह और प्रधानमंत्री के बीच काफी अच्छा समन्वय है इसलिये ये माना जा रहा है कि कश्मीर अब प्रयोग नहीं परिणाम की तरफ  आगे बढ़ेगा। गृहमंत्री द्वारा घाटी में सक्रिय बचे-खुचे आतंकवादियों को ठिकाने लगाने की जो पहल की वह उनके दृढ़ इरादों को व्यक्त करती है किन्तु उन्होंने जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय और राजनीतिक संतुलन को ठीक करने की दिशा में जो कदम उठाने की शुरुवात की है  यदि वह मूर्तरूप ले सकी तब ये मानकर चला जा सकता है कि उन्होंने बीमारी की नब्ज पर हाथ रख दिया है। अलगाववाद की समस्या से जूझ रहा ये राज्य तीन अंचलों में बंटा है। जम्मू जहां हिन्दू बहुल क्षेत्र है वहीं कश्मीर घाटी में लगभग 95 प्रतिशत मुस्लिम हैं। सबसे कम आबादी वाले लद्दाख में बौद्ध और हिन्दू मिलाकर 52 फीसदी होते हैं। विधानसभा की सीटों के हिसाब से देखें तो जम्मू संभाग में 37, कश्मीर घाटी में 46 तथा लद्दाख में महज 4 सीटें हैं। इस हिसाब से राजनीतिक दृष्टि से घाटी शेष दोनों अंचलों पर भारी पड़ जाती है। पाक अधिकृत कश्मीर की 24 सीटें रिक्त रखी जाती हैं। जम्मू-कश्मीर में अब तक नेशनल कांफे्रंस और पीडीपी ही मुख्य राजनीतिक ताकतें रहीं। कांग्रेस का थोड़ा बहुत आधार कश्मीर और लद्दाख में  रहा है जबकि भाजपा जम्मू तक सिमटी थी। लेकिन 2014 में कश्मीर की राजनीति में बड़ा बदलाव आया जब भाजपा ने जम्मू अंचल में अधिकांश सीटें जीत लीं जबकि घाटी में दोनों क्षेत्रीय पार्टियों में बंटवारा होने से त्रिशंकु विधानसभा उभरी जिसके बाद भाजपा ने पीडीपी से मिलकर सरकार बना ली जो पूरी तरह से बेमेल विवाह जैसा था। वह सरकार कैसे चली और उसका क्या फायदा-नुकसान देश और भाजपा को हुआ ये सारी दुनिया के सामने है। लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद भाजपा के ऊपर ये दबाव आ गया है कि वह किसी भी तरह से कश्मीर की समस्या को हल करे। जहां तक बात धारा 370 हटाने की है तो वह इतना आसान नहीं है। शायद इसीलिए अमित शाह ने गृहमंत्री बनते ही इस राज्य के सियासी पलड़े का इकतरफा झुकाव खत्म करने का दांव चलने का संकेत दिया जिसके तहत विधानसभा की सीटों का परिसीमन नए सिरे से करने के बाद विधानसभा चुनाव कराया जावेगा। ऐसा करने के पीछे  निश्चित रूप से भाजपा की सोच जम्मू-कश्मीर की सियासत से अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार का वर्चस्व समाप्त करने की हो सकती है और तभी यह सम्भव है जब जम्मू अंचल के हाथ में राज्य का सियासी संतुलन आ जाए और वहां घाटी से ज्यादा सीटें हों। मोदी सरकार जिस धमाकेदार अंदाज में लौटी है उससे न सिर्फ  समर्थकों अपितु विरोधी भी मन ही मन चाहते हैं कि कश्मीर में अलगाववाद की जड़ों में मठा डाल दिया जाए। अमित शाह की प्रचलित छवि  लक्ष्य आधारित कार्य करने की रही है। चुनावी चाणक्य के तौर पर विख्यात श्री शाह ने एक बात तो साबित कर दी है कि वे चुनौतियों से घबराते नहीं वरन सामना करते हुए उन पर विजय हासिल करने का भरपूर प्रयास करते हैं। इससे भी बड़ी बात ये है कि वे सफलता और विफलता दोनों में एक जैसे रहकर अगली कार्ययोजना में जुट जाते हैं। जम्मू कश्मीर विधानसभा की सीटों का नए सिरे से  परिसीमन भारी राजनीतिक उथलपुथल का कारण बने बिना नहीं रहेगा जिसकी बानगी उमर अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ्ती के नाराजगी और चेतावनी भरे बयानों से मिलने भी लगी है। यदि श्री शाह ने वाकई इस दिशा में कदम आगे बढ़ाए तब मुमकिन है घाटी के भीतर आग लगाने का खेल हो लेकिन पूरा देश ये मानकर चल रहा है कि मोदी और शाह की जोड़ी ने जिस तरह से देश के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह अपने रंग में रंग दिया ठीक वैसा ही करिश्मा वे जम्मू-कश्मीर में भी कर दिखाएंगे। बीते पांच वर्ष के दौरान कश्मीर को लेकर मोदी सरकार और भाजपा को इतना शर्मसार होना पड़ा कि उसके परंपरागत समर्थक भी मन ही मन भन्नाए हुए थे। पीडीपी के साथ गठजोड़ के चलते भाजपा की पूरी पुण्याई सवालों के घेरे में आ गई थी। ऐसा लगता है नरेंद्र मोदी अपने इस कार्यकाल में कश्मीर की समस्या के स्थायी हल की तरफ ठोस कदम उठाएंगे। परिसीमन एक जोखिम भरा दांव हो सकता है लेकिन अमित शाह ने जब इसका जिक्र छेड़ा है तब पूरे देश में ये भरोसा जागा है कि जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुए कश्मीर की समस्या का स्थायी हल सम्भव होगा और  भारत के सिर का दर्द स्थायी रूप से दूर हो सकेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

1 comment: