Monday 17 June 2019

जनता को भी नेताओं जैसी चिकित्सा मिले

बिहार का मुजफ्फरपुर लीची नामक फल के लिए प्रसिद्ध है। गर्मियों में आने वाला ये छोटा सा फल अत्यंत रसीला और स्वादिष्ट होता है। लेकिन वहां के बच्चों के लिए ये जानलेवा साबित हो रहा है। पड़ोसी जिले समस्तीपुर और वैशाली को मिलाकर तकरीबन 100 बच्चे अब तक जान से हाथ धो बैठे हैं। राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक इस विपदा से निपटने के दावे कर रही है लेकिन मौतें थमने का नाम नहीं ले रहीं। बीमारी का नाम और उसके लक्षणों की जानकारी  होने का बाद भी उसके बचाव का कोई अग्रिम प्रबंध क्यों नहीं किया गया ये प्रश्न इसलिए जोरदारी से उठ रहा है क्योंकि ये बीमारी इस मौसम में हर साल बच्चों की मौत का कारण बनती रही है। उल्लेखनीय है उप्र के गोरखपुर में भी अनेक वर्षों से हर साल छोटे बच्चे बड़ी संख्या में मारे जाते रहे। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद इसे लेकर खूब हल्ला मचा और उसके बाद से स्थिति पर कुछ हद तक नियंत्रण स्थापित किया जा सका है। आश्चर्य की बात है बिहार सरकार ने इस दिशा में समुचित कदम क्यों नहीं उठाये ? ऐसे मामलों में सियासत अच्छी नहीं लगती लेकिन हमारे देश में हर समस्या का इलाज जब सियासत के ठेकेदारों के हाथों में ही दे दिया गया है तब उन्हीं से ये अपेक्षा की जाती है कि वे आम जनता के स्वास्थ्य की रक्षा के माकूल इंतजाम करें। दुर्भाग्य की बात ये है कि इस तरह की बीमारियों में मरने वाले अधिकतर लोग चाहे  वे किसी भी  उम्र के हों , गरीब वर्ग से आते हैं। उनकी कमजोर आर्थिक स्थिति से ज्यादा वे परिस्थितियाँ इसके लिए जिम्मेदार हैं जिनमें रहने के लिए वे मजबूर हैं। गोरखपुर और उसके निकटवर्ती कस्बे देश के सबसे ज्यादा गंदगी वाले इलाकों में शुमार हैं। वहां सुअरों की संख्या भी बेतहाशा है जो खुलेआम घूमते देखे जा सकते हैं। उनके कारण फैलने वाली बीमारी की वजह से जब थोक में हुई मौतों का मामला देश भर में चर्चित हुआ और अपने गृहनगर में ही योगी जी की थू - थू होने लगी तब जाकर सरकारी अमला जागा वरना वहां के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन तक का प्रबन्ध नहीं था। सुअरों की धरपकड़ और स्वच्छता पर भी ध्यान दिया जाने लगा। लेकिन लीची से होने वाली बीमारी को लेकर बिहार की सरकार ने पूरी तरह से लापरवाही बरती। यदि वह पहले से उसके दुष्प्रभावों को लेकर प्रचार माध्यमों के जरिये लोगों को आगाह करती तब हो सकता है स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती। सरकारी अस्पतालों में आये मरीजों के लिए समुचित इलाज नहीं उपलब्ध होना भी शर्मनाक है। जमीन पर बिना पंखों के पड़े गरीब बच्चों के साथ उनके परिजनों की बदहाली देख - देखकर दु:ख तो होता ही है लेकिन उससे ज्यादा गुस्सा आता है। एक तरफ तो बिहार के सबसे बड़े दलित नेता रामविलास पासवान इलाज करवाने सरकारी खर्चे से अमेरिका जाते हैं वहीं दूसरी तरफ उनके अपने राज्य में दर्जनों बच्चे सस्ते में काल के गाल में समा गए। ये हालात एक दिन में उत्पन्न नहीं हुए और देश के किसी न किसी हिस्से में हर वर्ष इस तरह की महामारी से थोक में लोग मारे जाते हैं। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने पिछले कार्यकाल में आयुष्मान योजना  शुरू करते हुए गरीबों को 5 लाख तक का इलाज सरकारी या निजी अस्पताल में करवाने की सुविधा दी थी। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस योजना ने लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुत लाभ पहुंचाया लेकिन चुनाव खत्म होने के एक माह के भीतर ही बिहार में तकरीबन 100 बच्चों की मौतों से ये सिद्ध हो गया कि योजना चाहे कितनी भी अच्छी हो लेकिन जब तक उसका लाभ देश के आम इंसान तक न पहुंचे उसका कोई मतलब नहीं है। मुजफ्फरनगर हादसे  के बाद पूरे देश  में लीची खाने को लेकर एक डर व्याप्त है। गत दिवस केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। उस दौरान एक बच्चे की मौत तो उन्हीं  के सामने हो गई। बिहार सरकार और उसके मंत्री इस हादसे को लेकर आलोचना का शिकार हो रहे हैं लेकिन ये माहौल  भी तभी तक रहेगा जब तक कोई और बड़ी घटना न घट जाए। इसलिए ये मान लेना गलत होगा कि समाचार माध्यमों में मचे हल्ले के बाद नीतिश सरकार रामराज ले आयेगी लेकिन इससे सीख लेते हुए राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए समयबद्ध कार्ययोजना बननी ही चाहिए। आगामी माह भारत अन्तरिक्ष में बड़ी छलांग लगाने जा रहा है। स्पेस स्टेशन बनाने और चंद्रयान प्रक्षेपण जैसी खबरें हर देशवासी को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान करती हैं लेकिन जब खबर आती है कि इलाज के अभाव और अस्पतालों की बदहाली से दर्जनों लोग और खास तौर पर छोटे बच्चे मृत्यु के आगोश में चले गये तब गौरव की तमाम अनुभूतियाँ आत्मग्लानि में बदल जाती हैं। इसके लिए ताकालिक सोच से उपर उठकर गलतियों से सबक लेने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी। मोदी है तो मुमकिन है का नारा तभी कसौटी  पर खरा उतरेगा जब इस देश के साधारण नागरिक को भी वैसी ही चिकित्सा सेवा उपलब्ध होगी जैसी जनता द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधियों को हासिल होती है। मौजूदा हालात उस दृष्टि से बेहद दर्दनाक या उससे भी बढ़कर तो शर्मनाक हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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